Sports

फौज में महिला कमांडिंग अफसरों से हो रही मुश्किलें? एक रिपोर्ट के विवादित आकलन से उठे सवाल



नई दिल्ली:

एक ऐसे समय में जब हर क्षेत्र में महिलाएं पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं, सेना में भी महिलाओं की भूमिका बढ़ी है. हालांकि ये भी आसान काम नहीं था. महिलाओं को सेना में कमांड से जुड़ी भूमिका के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी और अंत में सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फ़ैसले से ये रास्ता भी खुला. इस बीच एक ऐसी रिपोर्ट आई है जो उनके हौसले, दृढ़ता, नेतृत्व क्षमता, समझदारी और साहस के साथ न्याय करती नहीं दिखती.

ये रिपोर्ट सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने 8 महिला अफ़सरों के कामकाज के अपने व्यक्तिगत विश्लेषण के आधार पर तैयार की है, जिस पर काफ़ी सवाल खड़े हो गए हैं. सेना की 17 माउंटेन स्ट्राइक कोर के कमांडर रहे ले. जनरल राजीव पुरी ने ये रिपोर्ट सेना की ईस्टर्न कमांड के जनरल ऑफ़िसर कमांडिंग ले. जनरल राम चंद्र तिवारी को भेजी है. जिसमें 17 कोर जिसे ब्रह्मास्त्र कोर कहा जाता है उसकी आठ महिला कमांडिंग अफ़सरों के काम की आलोचनात्मक समीक्षा की गई है. पांच पन्नों की इस रिपोर्ट में महिला कमांडिंग अफ़सरों की कार्यक्षमता पर गंभीर सवाल खड़े किए गए हैं.

Latest and Breaking News on NDTV

पारस्परिक चुनौतियां

रिपोर्ट में कहा गया है कि महिला अधिकारियों द्वारा कमांड की गई यूनिटों में Interpersonal Challenges हैं, यानी पारस्परिक चुनौतियां हैं. आपसी रिश्तों को लेकर गंभीर चिंता की ओर इशारा करता है. अधिकतर मामलों में यूनिट के जवानों और अफ़सरों की व्यक्तिगत ज़रूरतों को लेकर समझ की कमी दिखती है.

केंद्रीकृत नेतृत्व

रिपोर्ट के मुताबिक महिला कमांडिंग अफ़सरों के नेतृत्व का तरीका बहुत ही केंद्रीकृत है, यानी Centralised Leadership Style. फ़ैसले लेने का तरीका ऐसा है जिसके कारण जूनियर अधिकारी और कंपनी कमांडर खुद को फ़ैसलों में शामिल महसूस नहीं करते. रिपोर्ट के मुताबिक इस ‘My Way or Highway’ तरीके से अफ़सरों में विश्वास की कमी हुई है.

समानुभूति की कमी

फैसले लेने में कठोर दिखने की कोशिश और जवानों के आग्रहों के प्रति संवेदनहीनता का भी रिपोर्ट में ज़िक्र है. कहा गया है कि महिला कमांडिंग अफ़सरों को नरम दिल के बजाय कठोर समझा जाए, ये अहसास पैदा करने के लिए वो मानव संसाधन यानी HR से जुडे़ मामलों में अपने पुरुष साथियों के मुक़ाबले ज़्यादा सख़्ती से पेश आती हैं. इससे संतुलित नेतृत्व की कमी होती है.

Latest and Breaking News on NDTV

पक्षपात और अविश्वास

इस रिपोर्ट के मुताबिक हाल के कुछ मामलों में पक्षपात और अविश्वास बहुत ही साफ़ दिखा है. इससे यूनिटों के अंदर काफ़ी तनाव है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि जूनियर अफ़सरों को उत्साहित करने के बजाय श्रेय लेने के लिए जूनियर अफ़सरों के प्रति अपमानजनक टिप्पणियों की प्रवृत्ति दिखी है.

अक्सर शिकायतें

ये भी कहा गया है कि महिला कमांड अफ़सरों में शिकायत करने की प्रवृत्ति बहुत ज़्यादा है. जहां छोटी मोटी शिकायतें भी अंदरूनी तौर पर सुलझाने के बजाय सीधे सीनियर कमांडरों तक भेज दी जाती हैं.

छोटी-मोटी कामयाबियों पर खुशी

रिपोर्ट में छोटी -मोटी कामयाबियों पर ज़रूरत से ज़्यादा खुशी मनाने की महिला कमांडिंग अफ़सरों की प्रवृत्ति का भी ज़िक्र है.

ले. जनरल पुरी ने अपनी रिपोर्ट में Gender Equality के बजाय Gender Neutrality पर ध्यान देने की बात कही है. उन्होंने कहा है कि इन महिला अफ़सरों की पोस्टिंग्स ने उन्हें बड़ी ज़िम्मेदारी वाली कमांड भूमिका के लिए तैयार नहीं किया है. उन्हें सेना के ऑपरेशनल कमांड की ज़िम्मेदारी नहीं मिली है, जिसकी वजह से उन्हें इन कामों में शामिल जवानों के काम की कठिनाई का अहसास नहीं होता, जिसकी वजह से उनमें जवानों के प्रति सहानुभूति भी नहीं होती.

Latest and Breaking News on NDTV

कुल मिलाकर ले. जनरल पुरी द्वारा 17 कोर की 8 महिला अफ़सरों से जुड़ी इस रिपोर्ट में अहम के टकराव, लगातार शिकायतों और सहानुभूति की कमी जैसे कई मुद्दे उठाए गए हैं.

एनडीटीवी ने सेना के सूत्रों से इस रिपोर्ट पर बात की तो बताया गया कि जनरल पुरी का अनुभव सेना की 17 कोर की सिर्फ़ आठ महिला कमांडिंग अफ़सरों के काम पर आधारित है, जबकि सेना में सौ से ज़्यादा महिलाएं कमांडिंग अफ़सरों की ज़िम्मेदारी संभाल रही हैं. ये विचार ले. जनरल पुरी के व्यक्तिगत अनुभवों पर आधारित हैं.

सेना के सूत्रों के मुताबिक सेना में कमांड भूमिका में महिलाओं का ये पहला बैच है. महिला अधिकारियों की ट्रेनिंग एक सतत प्रक्रिया है और नेतृत्व की भूमिका के लिए सालों के अनुभव की ज़रूरत होती है. जो सुझाव दिए गए वो सेना में प्रशिक्षण के मापदंडों में सुधार के लिए हैं, ताकि महिलाओं को सेना के साथ और क़रीबी से जोड़ा जा सके.

Latest and Breaking News on NDTV

बदलाव में थोड़ा समय लगता है- रिटायर्ड मेजर जनरल संजय सोई

इस पूरे मुद्दे पर सेना के वरिष्ठ अधिकारी रहे रिटायर्ड मेजर जनरल संजय सोई ने कहा कि बदलाव में थोड़ा समय लगता है. पहले महिलाओं को ज्यादा फील्ड में नहीं भेजा जाता था, उन्हें प्रोटेक्टिव एनवायरमेंट में रखा जाता था. अब जहां उन्हें कमांड दिया जा रहा है वहां कई तरह के अनुभव की जरूरत होती है, तो ऐसे में सेना को बिना जेंडर देखे अब सभी तरह की ट्रेनिंग में महिलाओं को भी शामिल करना चाहिए. ताकि उनको हरह के फील्ड का अनुभव मिले. उन्होंने कहा कि इन अनुभवों और समय के साथ वो भी इसमें पूरी तरह निपुण हो जाएंगी.

वहीं करगिल युद्ध में शामिल रहीं सेना की पूर्व महिला अधिकारी कैप्टन याशिका एच त्यागी ने कहा कि ये लेफ्टिनेंट जनरल राजीव पुरी की निजी राय हो सकती है, लेकिन ये कुछ महिला कमांडिंग अफसरों के साथ अनुभव को, वो पूरी महिला समुदाय के ऑफिसरों के साथ जोड़कर नहीं देख सकते. कैप्टन याशिका ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद महिलाओं को कमांडिंग ऑफिसर बनाया गया, लेकिन सेना ने शुरू में उन्हें वो जरूरी ट्रेनिंग नहीं दी, वो कोर्स नहीं कराए, क्योंकि उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं था कि महिलाओं को भी कमांडिंग ऑफिसर बनाया जा सकता है. 
Latest and Breaking News on NDTV

सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फ़ैसले के बाद सेना में महिलाओं को मिला स्थायी कमीशन

बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 2020 में अपने एक ऐतिहासिक फ़ैसले से सेना में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने का रास्ता साफ़ किया. इससें महिलाओं को सेना में कमांड रोल मिलने की शुरुआत हुई थी. इसके बाद फरवरी 2023 में सेना के एक स्पेशल सेलेक्शन बोर्ड ने 108 महिला अफ़सरों को कर्नल के रैंक पर प्रमोट किया. सेना में महिला अफ़सर अब मेडिकल कोर ही नहीं बल्कि एयर डिफेंस, सिग्नल्स, ऑर्डनेंस, इंटेलिजेंस, इंजीनियर्स और सर्विस कोर में भी कमांड रोल में सक्रिय हैं. कमांड रोल्स में महिला अफ़सरों की भूमिका को अभी और कई आसमान देखने बाकी हैं.




Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *