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क्या तिब्बत पर चीन का दावा हुआ कमजोर? निर्वासित PM अमेरिका के किस कानून से खुश




नई दिल्ली:

China Claim On Tibet : अरुणाचल प्रदेश में स्थानों का नाम बदलना और लद्दाख में युद्ध करना यह चीन की आधिपत्यवादी महत्वाकांक्षा को दर्शाता है और अब जब तिब्बत के बारे में अमेरिकी कानून पारित हो गया है, तो इसने चीन के इस दावे को चुनौती दी है कि कोई भी देश तिब्बत की स्वतंत्रता को मान्यता नहीं देता है. तिब्बत के निर्वासित प्रधानमंत्री सिक्योंग पेन्पा त्सेरिंग ने एनडीटीवी को दिए एक विशेष साक्षात्कार में बताया कि चार दिन पहले ही संयुक्त राज्य अमेरिका में एक कानून बना है. इसे रिज़ॉल्व तिब्बत एक्ट नाम दिया गया है. इस अधिनियम के माध्यम से, अमेरिकी सरकार का कहना है कि वे चीन के इस दावे को स्वीकार नहीं करते हैं कि तिब्बत प्राचीन काल से चीन का हिस्सा रहा है.

चीन सबसे कर रहा दुश्मनी

तिब्बत के निर्वासित प्रधानमंत्री ने कहा, “अब तक, चीनी सरकार कहती रही है कि दुनिया में एक भी देश ऐसा नहीं है, जो तिब्बत की स्वतंत्रता या निर्वासित सरकार को मान्यता देता हो… लेकिन इस अधिनियम के साथ, क्या चीनी सरकार ऐसा कहने में सक्षम होगी? जापान से लेकर ताइवान और फिलीपींस तक सभी पड़ोसी देशों को चीन की रणनीतियों से गंभीर समस्याएं हो रही हैं… मलेशिया, ब्रुनेई, वियतनाम, हर जगह वे सीमा बढ़ा रहे हैं और उनके इस व्यवहार के कारण न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया सहित इन सभी देशों का रक्षा व्यय हर साल बढ़ता जा रहा है.”

सालों बाद अमेरिका समझा चाल

सिक्योंग पेन्पा त्सेरिंग ने आगे कहा, ”लगभग 8-10 साल पहले चीन ने एक हवाई जोन की घोषणा की थी. उस समय, मैंने अपने अमेरिकी मित्रों से कहा था कि जब चीन हवा पर दावा कर सकता है, तो वे उस हवा, समुद्र या जमीन या जो भी हो, उसके तहत हर चीज पर दावा करेंगे. तो इन दिनों, चीन की आधिपत्यवादी महत्वाकांक्षाएं इस बात से भी झलकती हैं कि वे स्थानों का नाम कैसे बदल रहे हैं. अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख इसका उदाहरण हैं.”

अमेरिका ने दिया चीन को संदेश

चीन ने पूर्व हाउस स्पीकर नैन्सी पेलोसी और माइकल मैककॉल के नेतृत्व में एक द्विदलीय प्रतिनिधिमंडल के पिछले महीने भारत आने और दलाई लामा से मुलाकात करने को बड़ी ही सावधानी से देखा था. चीन ने अमेरिका से तिब्बत से संबंधित मामलों पर उसकी संवेदनशीलता का सम्मान करने को कहा था और सुझाव दिया था कि दलाई लामा के साथ बातचीत करने से पहले अपने राजनीतिक प्रस्तावों को “सही” करे. इस बारे में पूछे जाने पर मैककॉल ने कहा था कि चीन को अमेरिका का संदेश है कि “इन लोगों की संस्कृति, उनके धर्म को नष्ट न करें… प्रत्येक लोगों और देश को आत्मनिर्णय का अधिकार है.” चीन को अमेरिका का यह संदेश बीजिंग की कथित आधिपत्यवादी महत्वाकांक्षा की एक मूक आलोचना भी थी, जिससे कुछ लोगों में बेचैनी पैदा हो गई है.





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