Sports

आखिर आग के गोले क्यों बरसा रहा सूरज? 8 आसान प्वाइंट्स में समझिए…



देश में गर्मी ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं. अभी जून का महीना बाकी है और मई का महीना जाते-जाते पुराने रिकॉर्ड टूट रहे हैं. भारत का बड़ा इलाका भारी गर्मी की चपेट में है. अब सवाल ये है कि भारत में इतनी गर्मी क्यों पड़ रही है और क्या ये भारत तक ही सीमित है? तो आइए जानते हैं इस गर्मी के पीछे की असली वजह क्या है.

क्या है गर्मी के पीछे की असली वजह…

  1. वैज्ञानिकों के मुताबिक गर्मी की एक वजह है अल नीनो इफेक्ट…ये नाम आपने कई बार सुना होगा, जिसके कारण वैश्विक स्तर पर मौसम का मिजाज बदल रहा है. अल नीनो को आसान शब्दों में ऐसे समझिए…जब दुनिया के सबसे बड़े महासागर प्रशांत महासागर के कई इलाकों में समुद्र का तापमान बढ़ता है, तो इससे गर्म होने वाली हवा पूरी दुनिया के मौसम को गर्म करती है. अल नीनो का ये साइकिल 2023 में शुरू हुई थी और इसका असर जून 2024 तक रहने के आसार हैं. इसी वजह से गर्मी का ये सीजन बहुत गर्म होता दिख रहा है. हालांकि, अल नीनो इफेक्ट इसके बाद कमजोर पड़ेगा और ला नीना इफेक्ट अमल में आएगा, जिससे इस बार भारत में अच्छा मॉनसून रहने के आसार जताए गए हैं.
  2. अब हमारे यहां जो लू यानी हीटवेव चलती हैं तो वो क्यों चलती हैं? दरअसल हमारे वातावरण और समुद्र में होने वाले कई परिवर्तन उत्तर-मध्य और पूर्वी भारत में हीट वेव्स यानी लू को जन्म देते हैं. इन इलाकों में लगातार गर्म और सूखी स्थितियां ऐसी हीटवेव्स को तेज करती हैं.
  3. गर्मी की एक और भी बड़ी वजह है. वो है बढ़ता औद्योगीकरण और हमारे कई शहरों का कंक्रीट के शहर में बदलते जाना. इससे अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट बढ़ रहा है. अर्बन यानी शहरी इलाकों में ईंट सीमेंट कंक्रीट का जाल बिछ चुका है. सीमेंट, तारकोल की सड़कें बन गई हैं. ये तमाम पक्का निर्माण, कुदरती निर्माण जैसे जंगल, तालाब, झील, घास के मैदानों के मुकाबले सूरज की गर्मी को ज्यादा अवशोषित करता है और फिर उसे वापस छोड़ता है, जो इलाके इस पक्के निर्माण के आसपास होते हैं वहां तापमान बाहरी इलाकों के मुकाबले ज्यादा होता है और रात में भी यही स्थिति होती है. उन तमाम इलाकों में जहां पक्का निर्माण बेतहाशा हो चुका है और हरियाली सिमटती जा रही है, वहां हम इस अर्बन हीट आइलैंड इफेक्ट को अधिक महसूस करते हैं और गर्मी से बेचैन होते हैं.
  4. भारतीय मौसम विभाग के हाल के एक विश्लेषण से ये बात सामने आई है कि भारत में बीते 40 साल में यानी 1980 से 2020 के बीच बढ़ते तापमान के साथ उमस की वजह से हीट स्ट्रेस में 30 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है. इस दौरान मध्य भारत, उत्तर पश्चिम भारत और देश के पूर्वी तटीय इलाकों में औसत हीट इंडेक्स गर्मियों के सामान्य तापमान से 4 से 5 डिग्री सेल्सियस बढ़ा है.
  5. यूरोपियन यूनियन के Copernicus Climate change service (CCCS)के वैज्ञानिकों ने इस साल की शुरुआत में ही अपने अध्ययन से बता दिया है कि साल 2023 जिस तरह से गर्म रहा, उससे इस बात की आशंका है कि 2024 में दुनिया का औसत तापमान 1.5 डिग्री की उस सीमा को तोड़ देगा जो 2015 के पेरिस समझौते में तय की गई थी.
  6. पिछला साल 2023 बीते एक लाख साल में सबसे गर्म साल रहा है. बीते साल 15 अगस्त से 8 दिसंबर तक दुनिया में लगातार 116 दिन ऐसे रहे जब हर दिन सबसे ज़्यादा गर्म दिन रहा. यानी उस दिन विश्व का औसत तापमान बीते एक लाख सालों में ठीक उसी दिन के मुक़ाबले ज़्यादा रहा. वो भी छोटे-मोटे अंतर से नहीं बल्कि बड़े अंतर से. और ये सारा असर क्लाइमेट चेंज का है. पेड़ों की छांव के मुकाबले एसी के भरोसे होती जा रही दुनिया के सामने और भी ख़राब दिन आने वाले हैं.
  7. क्लाइमेट चेंज के मुद्दे पर हुए पेरिस समझौते में ये सीमा तय की गई थी कि दुनिया का औसत तापमान औद्योगिक क्रांति शुरू होने से ठीक पहले के औसत तापमान से 2 डिग्री कम रहना चाहिए और कोशिश हो कि 1.5 डिग्री सेल्सियस से कम ही रहे. ये सीमा इसलिए तय की गई थी कि अगर इससे ऊपर गए तो जो नुक़सान होगा उसकी भरपाई नहीं हो पाएगी और जिसका असर देखने को मिल रहा है.
  8. पेरिस समझौते में तय उस सीमा को 2023 का साल किस तरह तोड़ता गया है. पिछले साल मार्च के महीने के कई दिन, फिर जून से लेकर दिसंबर तक के हर दिन डेढ़ डिग्री की सीमा लगातार टूटती चली गई. इसमें भी खास बात ये है कि 17 और 18 नवंबर, 2023 को दुनिया के औसत तापमान ने दो डिग्री की सीमा को भी तोड़ दिया.



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *