Why Did BJP Give Preference To Chirag Paswan Over Pashupati Paras – Analysis : आखिर कहां चूके पशुपति पारस? चिराग की चाह में BJP ने क्यों कर दिया खाली हाथ
नई दिल्ली:
लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections) की तारीख के ऐलान के बाद अब एनडीए (NDA) में सीटों का बंटवारा भी लगभग पूरा होता दिख रहा है. सोमवार को बिहार की 40 सीटों पर गठबंधन की घोषणा हो गयी. इस ऐलान के साथ ही एनडीए की तरफ से लोजपा के एक ही गुट को मान्यता दी गयी. चिराग पासवान की नेतृत्व वाली लोजपा (रामविलास) को गठबंधन के तहत 5 सीटें दी गयी है. वहीं पशुपति पारस की पार्टी राष्ट्रीय लोकजन शक्ति पार्टी को एक भी सीट नहीं दी गयी है. दिवंगत रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) 3 साल पहले टूट गई थी.
यह भी पढ़ें
लोजपा के पांच सांसदों- पशुपति कुमार पारस (चिराग के चाचा), चौधरी महबूब अली कैसर, वीणा देवी, चंदन सिंह और प्रिंस राज (चिराग के चचेरे भाई) ने मिलकर राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान को सभी पदों से हटा दिया था.
BJP की परीक्षा में हमेशा सफल रहे चिराग
पिछले 5 साल चिराग पासवान की राजनीति के लिए बेहद कठिन रहा. 2020 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उनके पिता रामविलास पासवान का निधन हो गया. इसी बीच एनडीए में जदयू के विरोध के कारण लोजपा को उचित सीटें नहीं मिली. जिसके बाद चिराग पासवान ने विद्रोह कर अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. जदयू के उम्मीदवारों के खिलाफ पूरे राज्य में उन्होंने अपने उम्मीदवार उतार दिए. जिसका नुकसान नीतीश कुमार की पार्टी को उठाना पड़ा. इस दौरान भी चिराग पासवान ने बीजेपी के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारा था.
नीतीश के करीबी बताए जाते रहे हैं पशुपति पारस
पशुपति पारस बिहार की राजनीति में लगभग 50 साल से सक्रिय रहे हैं. रामविलास पासवान के साथ उस दौर में उन्होंने कार्य किया है जब रामविलास बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ राजनीति करते थे. पशुपति पारस के नीतीश कुमार के साथ भी रिश्ते अच्छे रहे हैं. लोजपा में टूट के लिए भी जानकार जदयू को जिम्मेदार मानते रहे हैं. पशुपति पारस नीतीश कुमार के कैबिनेट का भी हिस्सा रह चुके हैं. हालांकि जब नीतीश कुमार ने एनडीए से नाता तोड़ा था फिर भी वो एनडीए में बने रहे थे लेकिन जदयू से उनकी नजदीकी बीजेपी की तुलना में अधिक रही है. ऐसे में पशुपति पारस के साथ बीजेपी और आरएसएस के नेताओं के रिश्ते बहुत मजबूत नहीं रहे हैं. जिसका नुकसान पारस को उठाना पड़ा.
महागठबंधन से चिराग पासवान को मिल रहा था न्योता
चिराग पासवान की सक्रियता और रामविलास पासवान की विरासत उनके काम आ गयी. बिहार की राजनीति में माना जाता रहा है कि रामविलास पासवान वोट ट्रांसफर करवाने के मामले में सबसे बड़े नेता थे. लंबे समय तक यह कहा जाता रहा था कि रामविलास पासवान जिधर जाते हैं जीत उस गठबंधन की ही होती है. चिराग की सभाओं में उमड़ रही भीड़ के बाद हाल के दिनों में चर्चा थी कि उन्हें महागठबंधन की तरफ से भी बड़े ऑफर दिए जा रहे हैं.
चिराग ने पूरे बिहार में खड़ा किया संगठन
पार्टी में बड़ी टूट के बाद चिराग पासवान ने दिल्ली से लेकर बिहार तक जमकर मेहनत की. चिराग पासवान पूरे बिहार की यात्रा पर निकले. जगह-जगह चिराग पासवान के द्वारा सभा की गयी. इस दौरान उनकी सभाओं में युवाओं की भारी भीड़ उमड़ी. चिराग पासवान ने विधानसभा चुनाव में लगभग 130 उम्मीदवारों को उतार कर अपनी पार्टी का एक संगठन खड़ा कर लिया. चिराग पासवान ने पार्टी में टूट के बाद भी पीएम मोदी के समर्थक मतदाताओं के बीच अपनी पकड़ बनाकर रखी. ‘बिहार फर्स्ट बिहारी फर्स्ट’ जैसे मुद्दों पर वो लगातार मुखर रहे हैं. नीतीश कुमार की सरकार पर भी वो हमलावर रहे हैं.
BJP नेताओं के साथ चिराग के अच्छे रिश्ते
चिराग पासवान की राजनीति में एंट्री फिल्मी दुनिया से हुई थी. राजनीति में उनके आने के कुछ ही दिनों बाद रामविलास पासवान राजद से गठबंधन तोड़कर एनडीए में शामिल हो गए थे. रामविलास पासवान के इस फैसले में भी चिराग पासवान की भूमिका बतायी जाती रही है. बिहार बीजेपी के नेताओं के साथ उनके बेहद अच्छे रिश्ते रहे हैं. साल 2020 में जब जदयू के साथ विवाद के बाद चिराग ने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया था तो बीजेपी और आरएसएस से जुड़े कई नेताओं ने उनकी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़ा था.
भविष्य की राजनीति में बीजेपी के लिए अधिक उपयोगी हो सकते हैं चिराग
बिहार में बीजेपी अपने दम पर सरकार बनाने के लिए लंबे समय से प्रयास करती रही है. चिराग पासवान बीजेपी के ऐसे सहयोगी हैं जो पीएम मोदी और अमित शाह के दौर में लगातार साथ बने हुए हैं. बिहार की राजनीति में माना जाता है कि लोजपा के पास 5-6 प्रतिशत वोट है. ऐसे में बिहार की सत्ता तक पहुंचने के लिए चिराग पासवान बीजेपी के लिए एक मजबूत आधार हो सकते हैं.
ये भी पढ़ें- :