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Who Is Srila Prabhupada, PM Modi Is Releasing Commemorative Stamp And Coin In His Honour – कौन हैं आध्यात्मिक गुरु Srila Prabhupada जिनके सम्मान में पीएम मोदी स्मारक टिकट और सिक्का जारी कर रहे हैं 


कौन हैं आध्यात्मिक गुरु Srila Prabhupada जिनके सम्मान में पीएम मोदी स्मारक टिकट और सिक्का जारी कर रहे हैं 

Srila Prabhupada की 150वीं वर्षगांठ दिल्ली के प्रगति मैदान में आज मनाई जा रही है. 

Srila Prabhupada: आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आध्यात्मिक गुरू श्रील प्रभुपाद जी की 150वीं वर्षगांठ पर दिल्ली के प्रगति मैदान में भारत मंडपम में शामिल हुए हैं. इस भारत मंडपम में विश्व वैष्णव सम्मेलन का आयोजन हो रहा है जिसमें प्रभानमंत्री मोदी (PM Modi) भी शामिल हुए हैं. इस समारोह में पीएम मोदी आध्यात्मिक गुरु श्रील प्रभुपाद (Srila Prabhupada) के सम्मान में स्मारक टिक्ट और एक सिक्का भी जारी करने वाले हैं. आचार्य और आध्यतामिक गुरु ए. सी, भक्तिवेदांता स्वामी श्रील प्रभुपाद जी कौन थे और उनका इस्कोन मंदिर और वैष्णव धर्म के प्रचार-प्रसार में क्या योगदान रहा, जानिए यहां. 

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आचार्य श्रील प्रभुपाद गौड़ीय मिशन के संस्थापक थे और उन्होंने श्रीकृष्ण के संदेशों को सभी तक पहुंचाने के लिए इस्कॉन (ISKON) की स्थापना की थी. आचार्य श्रील प्रभुपाद 17 सितंबर, 1965 में न्यू यॉर्क में कदम रखा लेकिन उनका मकसद वहां का प्रवासी होना नहीं बल्कि धर्म और वेदों का प्रचार करना था. 14 सितंबर, 1977 नें उनका यह मकसद पूरा हुआ. आचार्य श्रील प्रभुपाद ने इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कोंशियसनेस यानी इस्कॉन की स्थापना की और 100 से ज्यादा मंदिर, आश्रम और सांस्कृतिक संस्थानों की स्थापना की. वर्तमान में दुनियाभर में इस्कोन के 5000 से ज्यादा सेंटर्स हैं. वहीं, 42,000 से ज्यादा प्रसारक वैष्णव धर्म का प्रचार कर रहे हैं. आज आचार्य श्रील प्रभुपाद की 150वीं वर्षगांठ का महोत्सव मनाया जा रहा है. 

प्रगति मैदान (Pragati Maidan) में चल रहे कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी ने जगत गुरू श्रील प्रभुपाद के सम्मान में अंगवस्त्र शॉल अर्पित की और महाराज के हस्तों पर स्मृति चिन्ह प्रदान किए. 

गुरू श्रील प्रभुपदा का जन्म अभय चरण डे के रूप में 1 सितंबर, 1896 में कलकत्ता के एक हिंदू परिवार में हुआ था. वे ब्रिटीश अधीन भारत में बढ़े हुए थे और महात्मा गांधी के सविनय अविज्ञा आंदोलन का भी हिस्सा बने थे. 1922 में आध्यात्मिक गुरु श्रील भक्तिसिद्धांता सरस्वती से मिलने के बाद श्रील प्रभुपदा के जीवन का मकसद बदल गया, वे उन आचार्य से अत्यधिक प्रभावित हुए थे. गुरु श्रील भक्तिसिद्धांता गौड़िया वैष्णव संप्रदाय के लीडर थे और श्रील प्रभुपदा के गुरु बन गए. 1933 के बाद अगले 32 वर्ष ए. सी. भक्तिवेदांता स्वामी प्रभुपाद ने अपने गुरु का अनुयायी बनने की तैयारी और पश्चिम की यात्रा की तैयारी में बिताए. उनकी यात्रा की सफलता आज दुनिया के सामने इस्कॉन के रूप में प्रस्तुत है.

(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.) 



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