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Uttarakhand Tunnel Accident: Know Why It Is Taking So Much Time To Reach The Workers – सुरंग हादसा: भारी मशीन में कंपन से मलबा गिरने का खतरा, जानें श्रमिकों तक पहुंचने में क्यों लग रहा है समय


एनएचआइडीसीएल निदेशक ने बताया कि चौथे पाइप का अंतिम दो मीटर हिस्सा बाहर रखा गया है, जिससे पाचवें पाइप को ठीक तरह से जोड़कर उसे अंदर डाला जा सके. सुरंग में कुल 45 से 70 मीटर तक मलबा जमा है, जिसमें ड्रिलिंग की जानी है.

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यह पूछे जाने पर कि मशीन प्रति घंटा चार-पांच मीटर मलबे को भेदने की अपनी अपेक्षित गति क्यों नहीं हासिल कर पाई, उन्होंने कहा कि पाइपों को डालने से पहले उन्हें जोड़ने में समय लगता है. खाल्को ने ये भी दावा किया कि डीजल से चलने के कारण ड्रिलिंग मशीन की गति भी धीमी है. उन्होंने कहा कि बीच-बीच में ड्रिलिंग को रोकना भी पड़ता है, क्योंकि भारी मशीन में कंपन होने से मलबा गिरने का खतरा हो सकता है.

निदेशक ने कहा कि ये डीजल से चलने वाली मशीन है जो एक बंद जगह पर काम कर रही है. इसे कुछ निश्चित अंतराल पर हवा संचालन भी चाहिए. मशीन चलने से कंपन भी होता है, जिससे आसपास का संतुलन खराब हो सकता है और मलबा गिरने की संभावना हो सकती है.

खाल्को ने कहा, ‘हम एक रणनीति से काम कर रहे हैं लेकिन यह सुनिश्चित करना होगा कि बीच में कुछ गलत न हो जाए.’ उन्होंने कहा कि बैक अप योजना के तहत इंदौर से हवाई रास्ते से एक और ऑगर मशीन मौके पर लाई जा रही है, जिससे बचाव अभियान निर्बाध रूप से चलता रहे.

इस बीच, सूत्रों ने बताया कि मशीन में तकनीकी खराबी आ गयी है और इसलिए इंदौर से नई मशीन मंगाई जा रही है. ड्रिलिंग कार्य भी दोपहर से बंद है. बचाव अभियान में लगे एक अधिकारी ने नाम उजागर नहीं किए जाने की शर्त पर बताया कि इंदौर से हैवी ऑगर मशीन आने के बाद ही फिर से काम शुरू होगा.

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इससे पहले, मंगलवार देर रात एक छोटी ऑगर मशीन से मलबे में ड्रिलिंग शुरू की गई थी, लेकिन इस दौरान भूस्खलन होने तथा मशीन में तकनीकी समस्या आने के कारण काम को बीच में रोकना पड़ा था.

इसके बाद भारतीय वायुसेना के सी-130 हरक्यूलिस विमानों के जरिए 25 टन वजनी बड़ी, अत्याधुनिक और शक्तिशाली अमेरिकी ऑगर मशीन दो हिस्सों में दिल्ली से उत्तरकाशी पहुंचाई गई, जिससे बृहस्पतिवार को दोबारा ड्रिलिंग शुरू की गयी.

योजना यह है कि ड्रिलिंग के जरिए मलबे में रास्ता बनाते हुए उसमें 900 मिमी व्यास के छह मीटर लंबे पाइपों को एक के बाद एक इस तरह डाला जाएगा कि मलबे के एक ओर से दूसरी ओर तक एक ‘वैकल्पिक सुरंग’ बन जाए और श्रमिक उसके माध्यम से बाहर आ जाएं.

मौके पर बचाव कार्यों की निगरानी कर रहे एक विशेषज्ञ आदेश जैन ने बताया कि अमेरिकी ऑगर मशीन को बचाव कार्यों की गति तेज करने के लिए मंगाया गया. उन्होंने कहा कि पुरानी मशीन की भेदन क्षमता मलबे को 45 मीटर भेदने की थी, जबकि उपर से लगातार मलबा गिरने के कारण वह 70 मीटर तक फैल गया है.

इस बीच, अधिकारियों ने बताया कि सुरंग में फंसे श्रमिकों को लगातार खाद्य सामग्री उपलब्ध कराई जा रही है. उन्हें ऑक्सीजन, बिजली, दवाइयां और पानी भी पाइप के जरिए निरंतर पहुंचाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि श्रमिकों से निरंतर बातचीत जारी है और बीच-बीच में उनकी उनके परिजनों से भी बात कराई जा रही है.

इस बीच,झारखंड सरकार की एक टीम अपने श्रमिकों की कुशलक्षेम जानने के लिए मौके पर पहुंची. आईएएस अधिकारी भुवनेश प्रताप सिंह के नेतृत्व में पहुंची तीन सदस्यीय टीम ने झारखंड के मजदूर विश्वजीत एवं सुबोध से पाइप के जरिए बातचीत कर उनका हालचाल लिया.

इस दौरान मीडिया से बातचीत करते हुए सिंह ने केंद्र एवं उत्तराखंड सरकार द्वारा बचाव एवं राहत के लिए चलाए जा रहे प्रयासों की सराहना की और कहा कि प्रशासनिक स्तर पर इस हादसे के प्रबंधन और बचाव कार्य हेतु मुकम्मल इंतजाम किए गए हैं.

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उत्तरकाशी के मुख्य चिकित्सा अधिकारी आरसीएस पंवार ने कहा कि सुरंग के पास एक छह बिस्तरों का अस्थाई चिकित्सालय तैयार कर लिया गया है. मौके पर 10 एंबुलेंस के साथ कई मेडिकल टीम भी तैनात हैं, ताकि श्रमिकों को बाहर निकलने पर उनकी तत्काल चिकित्सकीय मदद दी जा सके.

चारधाम परियोजना के तहत निर्माणाधीन सुरंग का सिलक्यारा की ओर के मुहाने से 270 मीटर अंदर एक हिस्सा रविवार सुबह ढह गया था, जिसके बाद से उसमें फंसे 40 श्रमिकों को निकालने का प्रयास किया जा रहा है.



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