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Uttarakhand Foundation Day 2023 Know Political History Of Uttarakhand ANN | Uttarakhand Foundation Day: कहां खड़ा है आज उत्तराखंड, जानें


Uttarakhand Foundation Day 2023: उत्तराखंड का स्थापना दिवस हर साल 9 नवंबर को मनाया जाता है. इस बार उत्तराखंड का 24वां स्थापना दिवस मनाया जा रहा है. इस मौके पर देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू भी मुख्य कार्यक्रम में शामिल होंगी. 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ था. उत्तराखंड को अस्तित्व में आए हुए 23 साल पूरे हो गए हैं. इन 23 सालों में उत्तराखंड में अब तक 10 मुख्यमंत्री बने हैं. इनमें से दो मुख्यमंत्री ऐसे रहे जिन्हें दो बार मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ. इनमें से एक पुष्कर सिंह धामी और दूसरे भुवन चंद्र खंडूरी हैं, जिन्होंने उत्तराखंड का दो बार मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त किया.

उत्तराखंड के पहले मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी बने थे. नित्यानंद स्वामी गढ़वाल मंडल विधान परिषद के सदस्य थे. इन्हें 9 नवंबर 2000 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और इन्होंने 29 अक्टूबर 2001 तक मुख्यमंत्री का पद संभाला. इनके बाद भारतीय जनता पार्टी के दूसरे मुख्यमंत्री के रूप में भगत सिंह कोश्यारी ने शपथ ली. भगत सिंह कोश्यारी कुमाऊं मंडल विधान परिषद के सदस्य थे. भगत सिंह कोश्यारी ने 30 अक्टूबर 2001 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और इन्होंने 1 मार्च 2002 तक उत्तराखंड का नेतृत्व किया.

नारायण दत्त तिवारी ने पूरा किया पांच साल का कार्यकाल

इसके बाद उत्तराखंड में विधानसभा के चुनाव हुए और कांग्रेस की सरकार बनी. जिसके बाद नारायण दत्त तिवारी ने रामनगर विधानसभा से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. कांग्रेस ने उनको उत्तराखंड का नेतृत्व करने का मौका दिया. नारायण दत्त तिवारी ने 2 मार्च 2002 से 7 मार्च 2007 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दीं. उत्तराखंड के एकमात्र मुख्यमंत्री नारायण तिवारी ही हैं, जिन्होंने अपने 5 साल का कार्यकाल पूरा किया था.

भुवन चंद्र खंडूरी बने बीजेपी से मुख्यमंत्री

इसके बाद 2007 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी ने कामयाबी हासिल की और धुमाकोट से विधानसभा चुनाव जीतकर आए भुवन चंद्र खंडूरी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री नियुक्त किया. जिसके बाद 8 मार्च 2007 से 23 जून 2009 तक भुवन चंद्र खंडूरी को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला.

इसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने थलीसैंण से विधायक बने रमेश पोखरियाल निशंक को 24 जून 2009 में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. उन्होंने 10 सितंबर 2011 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया, मगर एक बार फिर से भारतीय जनता पार्टी ने अपने मुख्यमंत्री को बदला और दोबारा से सितंबर 2011 में भुवन चंद्र खंडूरी को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई. भुवन चंद खंडूरी ने इस बार 13 मार्च 2012 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया.

2016 में लगा राष्ट्रपति शासन

2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने भारतीय जनता पार्टी को हराकर सत्ता में वापसी की. जिसके बाद सितारगंज से विधायक चुने गए विजय बहुगुणा ने 13 मार्च 2012 को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और लगभग 2 साल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. 13 जनवरी 2014 तक विजय बहुगुणा उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे. कांग्रेस ने एक बार फिर से अपना मुख्यमंत्री को बदलते हुए हरीश रावत को उत्तराखंड का मुख्यमंत्री नियुक्त किया.

हरीश रावत ने 1 फरवरी 2014 को उत्तराखंड के सातवें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण की लेकिन राजनीतिक घटनाक्रम के चलते उन्हें 27 मार्च 2016 को सत्ता से बेदखल कर दिया गया. जिसके बाद उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू हुआ जो लगभग 27 मार्च 2016 से 21 अप्रैल 2016 तक चला. इसके बाद कांग्रेस ने कोर्ट का रुख किया. कोर्ट में जीत हासिल करने के बाद फिर से हरीश रावत ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और एक दिन के सीएम रहे. उसके बाद फिर कोर्ट के चक्कर में उनको हटना पड़ा और 25 दिन तक कोई मुख्यमंत्री नहीं रहा, इस बीच सारा कामकाज राज्यपाल कार्यालय से किया गया.

2021 से उत्तराखंड संभाल रहे पुष्कर सिंह धामी

11 मई 2016 में फिर हरीश रावत को मुख्यमंत्री पद की कमान मिली. हरीश रावत 18 मार्च 2017 तक उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे और फिर विधानसभा चुनाव हुए. जिसमें भारतीय जनता पार्टी ने प्रचंड जीत हासिल की और इसके बाद उत्तराखंड की कमान त्रिवेंद्र सिंह रावत को सौंपी गई. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 18 मार्च 2017 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. वह लगभग साढ़े चार साल उत्तराखंड के मुख्यमंत्री रहे. उनको भारतीय जनता पार्टी के द्वारा 10 मार्च 2021 को बदल दिया गया. उनकी जगह तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई गई.

तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च 2021 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ग्रहण की. उनका कार्यकाल लगभग 116 दिन का रहा. 4 जुलाई 2021 को तीरथ सिंह रावत ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी जगह पर मौजूदा मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को शपथ दिलाई गई. तब से अब तक पुष्कर सिंह धामी उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य कर रहे हैं. पुष्कर सिंह धामी 2022 विधानसभा चुनाव में खटीमा से चुनाव लड़े थे और उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. जिसके बाद उन्हें दोबारा से मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई गई और उन्हें चंपावत से उपचुनाव लड़ाया गया जहां से उन्होंने जीत हासिल की और मौजूदा समय में पुष्कर सिंह धामी चंपावत से विधायक हैं.

राज्य की सबसे बड़ी समस्या है पलायन

उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है यहां की सबसे बड़ी समस्या पलायन है. यहां से लोग लगातार पलायन कर रहे हैं. उत्तराखंड में पलायन रोकने के लिए पुष्कर सिंह धामी लगातार प्रयास कर रहे हैं. इसी क्रम में उन्होंने दिसंबर महीने में ग्लोबल इन्वेस्टर समिट रखी है, ताकि यहां पर ज्यादा से ज्यादा व्यापारी निवेश कर सकें और यहां के युवाओं को रोजगार मिल सके. उत्तराखंड में युवाओं को पलायन से रोकने के लिए पलायन आयोग भी बनाया गया था लेकिन पलायन आयोग का खुद ही पलायन हो गया.

आज तक उसका पता नहीं चल पाया कि उसने क्या किया. उत्तराखंड में लगातार लोग पलायन कर रहे हैं, सरकार इन्हें रोकने के लिए और उनके रोजगार के लिए प्रयास तो कर रही है लेकिन यह प्रयास काफी नहीं है. 23 साल पुराने राज्य में आज भी बेरोजगारी अपनी चरम सीमा पर है. उत्तराखंड में लगातार भर्तियां तो निकल रही हैं लेकिन भर्ती में हुए घोटाले के बाद युवाओं का इन भर्तियों से विश्वास उठ चुका है.

राज्य पर लगातार बढ़ रहा कर्ज का बोझ

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भर्तियों में घोटाले को लेकर कई बड़े फैसले किए. उन्होंने कई कड़े कानून भी बनाए हैं लेकिन जिन युवाओं की उम्र इस बीच इन सब मामलों के चलते निकल गई उनकी आखिर क्या गलती थी. उत्तराखंड को बनाने में जिन लोगों ने अपनी जान की आहुति दी आज वह खुद ही उत्तराखंड बनने के बाद भी आंदोलन पर हैं. उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य पर कई हजार करोड़ का कर्ज हर साल बढ़ता जा रहा है. 

उत्तराखंड की आय बहुत सीमित है. उत्तराखंड में खनन और पर्यटन दो ही ऐसे मुख्य काम हैं, जिससे उत्तराखंड सरकार को राजस्व प्राप्त होता है, लगातार बढ़ता कर्ज का बोझ उत्तराखंड को धीरे-धीरे कमजोर कर रहा है. सरकार प्रयास तो जरूर कर रही है कि उत्तराखंड के युवाओं को रोजगार दिया जाए, उत्तराखंड का कर्ज काम किया जाए, लोगों की जीविका सुधारी जाए, लेकिन ठोस रणनीति न होने के चलते लगातार बढ़ता कर्ज उत्तराखंड को धीरे-धीरे कमजोर करता आ रहा है.

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