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Two forest guards arrested under UAPA in Kanha National Park MP Officer says dont fear of Tigers bot Police


Kanha Forest Guards Arrested: मध्य प्रदेश के मंडला जिले के कान्हा नेशनल पार्क में पुलिस ने दो वन रक्षकों को माओवादियों से संबंध रखने के आरोप में गिरफ्तार किया है. यूएपीए (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत हुई इस गिरफ्तारी ने वन विभाग के कर्मचारियों के बीच चिंता और असुरक्षा बढ़ा दी है.

माओवादी और पुलिस के बीच फंसे वन कर्मचारी अब खुद को खतरे में महसूस कर रहे हैं और तबादलों की मांग कर रहे हैं. कुछ वन अधिकारियों ने यूएपीए के तहत कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं

क्या है मामला?
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक हाल ही में माओवादियों और पुलिस के बीच हुई मुठभेड़ के दौरान पुलिस ने 28 वर्षीय अशोक कुमार लाल और संतोष कुमार लाल को गिरफ्तार किया. इस मुठभेड़ में एक उग्रवादी मारा गया.

पुलिस का आरोप:
दोनों वन रक्षक माओवादियों को सुरक्षा बलों की गतिविधियों की सूचना दे रहे थे. वे विशेष प्रकार की सीटी बजाकर या पत्थरों को टकराकर माओवादियों को संकेत देते थे. माओवादियों को आवश्यक सामग्री और रसद आपूर्ति में भी मदद कर रहे थे. वहीं, वन अधिकारियों का कहना है कि दोनों वन रक्षक माओवादियों के दबाव में थे. वे सिर्फ माओवादियों के लिए भोजन और राशन इकट्ठा कर रहे थे, न कि किसी खुफिया सूचना के आदान-प्रदान में शामिल थे. वन कर्मचारी माओवादियों और पुलिस दोनों के डर के बीच फंसे हुए हैं.

वन विभाग के कर्मचारियों में डर का माहौल
वन अधिकारी का कहना है, “हमारे लोग बाघों से नहीं डरते, लेकिन पुलिस से डरते हैं.” गिरफ्तारी के बाद, वन विभाग के कई कर्मचारी तबादले की मांग कर रहे हैं क्योंकि माओवादियों से सहयोग करने पर पुलिस कार्रवाई का खतरा है. सहयोग न करने पर विद्रोहियों की हिंसा का डर भी है. पुलिस अब माओवादियों के समर्थकों की वन विभाग में गहरी घुसपैठ की आशंका जता रही है.

माओवादी प्रभाव और सुरक्षा बलों की चुनौती
कान्हा टाइगर रिजर्व भारत के सबसे प्रतिष्ठित बाघ अभयारण्यों में से एक है. पुलिस के अनुसार, कान्हा के मुख्य क्षेत्र के 40% हिस्से में माओवादियों की गतिविधियां देखी गई हैं. बालाघाट की सीमा से लगे इलाकों में उग्रवाद बढ़ रहा है.

बता दें कि मुक्की क्षेत्र में वन और पुलिस के संयुक्त शिविर मौजूद हैं. खटिया क्षेत्र में सुरक्षा ढांचा कमजोर है, जिससे माओवादियों के लिए घुसपैठ आसान हो जाती है. कुछ वन अधिकारियों का मानना है कि बिना गहन जांच के यूएपीए जैसी कड़ी धारा लगाना अनुचित है.

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