The Story Of Seethakka, Who Went From Being A Maoist To A Minister In Telangana, Is Very Interesting And Inspiring – माओवादी से तेलंगाना की मंत्री बनने वाली सीताक्का की कहानी है बेहद दिलचस्प और प्रेरणादायक
हैदराबाद:
तेलंगाना कैबिनेट के सबसे चर्चित सदस्यों में माओवादी से विधायक बनी दानसारी अनसूया शुमार हैं. अनसूया को सीताक्का के नाम से जाना जाता है. मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी उन्हें अपनी “बहन” कहते हैं. सशस्त्र क्रांति से कानून की डिग्री के साथ मंत्री बनने तक की उनकी यात्रा बड़ी दिलचस्प है. पिछले साल अक्टूबर में ही उन्होंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है. गुरुवार को हैदराबाद के एलबी स्टेडियम में नई कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में सबसे ज़ोरदार नारेबाजी उन्हीं के लिए थी.
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मुलुगु की 52 वर्षीय आदिवासी विधायक को तेलंगाना सरकार में तीन महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपे गए हैं. पंचायत राज, ग्रामीण विकास और महिला एवं बाल कल्याण मंत्रालय सीताक्का को दिए गए हैं. मजदूर माता-पिता के घर जन्मी सीताक्का जब महज 14 साल की थीं, तब स्कूल खत्म होने से काफी पहले माओवादी आंदोलन में शामिल हो गई थीं. इन वर्षों में, वह चरमपंथी समूह में एक कमांडेंट सीताक्का बन गईं, जेल गईं और फिर 1997 में सब कुछ छोड़ दिया.
आंदोलन के दौरान उन्होंने एक बेटे को जन्म दिया, जिसे उन्हें और उनके पति को छोड़ना पड़ा. भूमिगत लोगों को बच्चों का पालन-पोषण करने की अनुमति नहीं है. बाद में उनकी मां ने बच्चे को ढूंढ़ निकाला और खुद ही उसका पालन-पोषण किया. बाद में सीताक्का ने वामपंथी उग्रवादी आंदोलन छोड़ दिया और “वैचारिक मतभेदों” के कारण अपने पति से अलग हो गईं.
सीताक्का ने एनडीटीवी को बताया, “मैंने कानून की पढ़ाई की… उसी अदालत में बहस की, जहां मैं एक बार आरोपी के रूप में खड़ी थी.” उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में उस्मानिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और हाल ही में एलएलएम परीक्षा में बैठीं.
सीताक्का का राजनीति में प्रवेश 2004 में हुआ. वह तेलुगु देशम पार्टी में शामिल हो गईं, जहां उनकी मुलाकात रेवंत रेड्डी से हुई. दोनों एक करीबी रिश्ता साझा करते हैं. रेड्डी उन्हें अपनी बहन कहते हैं.
सीताक्का मुलुगु से तीन बार विधायक चुनी गईं हैं. पहली बार 2009 में तेलुगु देशम के टिकट पर और फिर 2018 और 2023 में उसी निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर.
बाढ़ और कोविड महामारी जैसे संकटों के दौरान राज्य के आदिवासी इलाकों में पहाड़ी और दूरदराज के इलाकों में कई किलोमीटर पैदल चलकर लोगों की मदद करने के कारण इलाके में उनका बहुत सम्मान है.