Supreme court seeks response on plea for improving tribal health nationwide
सुप्रीम कोर्ट ने देश में जनजातीय आबादी के स्वास्थ्य में सुधार के उपाय करने के अनुरोध संबंधी याचिका पर शुक्रवार (21 फरवरी, 2025) को केंद्र और अन्य से जवाब मांगा है. जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए सहमति जताते हुए केंद्र और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को नोटिस जारी कर याचिका पर जवाब मांगा.
पीठ ने गैर सरकारी संगठन महान ट्रस्ट के अध्यक्ष डॉ. आशीष सातव सहित दो याचिकाकर्ताओं की याचिका पर चार सप्ताह बाद सुनवाई निर्धारित की. एडवोकेट रानू पुरोहित के मार्फत दायर याचिका में कहा गया है कि एनजीओ महाराष्ट्र के मेलघाट क्षेत्र में आदिवासी समुदायों को मुफ्त चिकित्सा सुविधा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान कर रहा है.
इसमें कहा गया है कि ट्रस्ट ने आदिवासी आबादी के समक्ष पेश आने वाली स्वास्थ्य समस्याओं का बारीकी से अवलोकन किया है और उन्हें दूर करने के लिए कुछ समाधान तलाशे हैं. याचिका में घर पर बच्चों की देखभाल, गंभीर कुपोषण के सामुदायिक प्रबंधन, आर्थिक रूप से उत्पादक आयु वर्ग की मृत्यु दर में कमी लाने से जुड़े कार्यक्रम और स्वास्थ्य क्षेत्र में सार्वजनिक निजी भागीदारी सहित अन्य उपायों के कार्यान्वयन का अनुरोध किया गया है.
याचिका में कहा गया है, ‘महाराष्ट्र में इनमें से कई उपायों का कार्यान्वयन बॉम्बे हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के कारण भी संभव हो पाया है, जिसने कई जनहित याचिकाओं और रिट याचिकाओं में आदिवासी कल्याण योजनाओं से संबंधित मुद्दों पर निर्देश जारी किए हैं…’
याचिका में कहा गया है कि 2015 से 2023 तक राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासी समुदायों की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार के लिए ट्रस्ट और प्रतिवादी प्राधिकारों के अधिकारियों के बीच विभिन्न बैठकें और विचार-विमर्श हुए. याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ता ने इस संबंध में अपनी सिफारिशों पर विचार करने के लिए प्रतिवादियों को अभ्यावेदन भी दिया (महाराष्ट्र में लागू किए गए उपायों की तर्ज पर). हालांकि, इसपर कुछ भी नहीं किया गया.’
निर्देश जारी करने का अनुरोध करते हुए, याचिकाकर्ताओं ने अधिकारियों से देश भर में आदिवासी आबादी के स्वास्थ्य में सुधार के लिए उनकी सिफारिशों पर विचार करने और उन्हें उपयुक्त रूप से लागू करने का अनुरोध किया. याचिका में कहा गया है कि सातव द्वारा प्रस्तावित सिफारिशें मेलघाट और महाराष्ट्र के आदिवासी इलाकों में सफलतापूर्वक लागू की गई हैं तथा सभी आदिवासी समुदायों के कल्याण के लिए उन्हें देश भर में लागू किया जा सकता है.
याचिका में कहा गया है, ‘याचिकाकर्ताओं ने उक्त सिफारिशों को लागू करने के लिए बार-बार विभिन्न सरकारी अधिकारियों से संपर्क किया, लेकिन कुछ नहीं किया गया.’ जनजातीय क्षेत्रों के विकास के लिए निर्धारित धनराशि का उपयोग न किए जाने का दावा करते हुए, याचिका में आरोप लगाया गया कि कल्याणकारी योजनाओं के कार्यान्वयन में सरकारी एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी के परिणामस्वरूप लाभों का मनमाना और असमान वितरण हुआ, जिससे समानता के अधिकार और गरिमापूर्ण जीवन के अधिकार का हनन हुआ.
यह भी पढ़ें:-
सुप्रीम कोर्ट ने यासीन मलिक को तिहाड़ से जम्मू अदालत में वर्चुअली से पेश होने का निर्देश दिया