Supreme Court says NGT can not outsource its opinion to committees base its decision on such opinions
सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि किसी न्यायाधिकरण को सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करके एक निर्णय पर पहुंचना चाहिए और वह किसी दूसरे की राय लेकर उसे अपने आदेश का आधार नहीं बना सकता.
राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के अप्रैल 2021 के एक आदेश को चुनौती देने वाली अपीलों पर सुनवाई करते हुए जस्टिस भूषण रामाकृष्ण गवई और जस्टिस के वी विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि अधिकरण ने एक स्पष्ट गलतीकी है क्योंकि उसने अपना निर्णय केवल एक संयुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर लिया है.
बेंच ने कहा, ‘किसी न्यायाधिकरण के लिए जरूरी है कि वह अपने समक्ष मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर पूरी तरह से विचार करके एक निर्णय पर पहुंचे. वह किसी दूसरे की राय पर गौर कर उसे अपने निर्णय का आधार नहीं बना सकता.’ सुप्रीम कोर्ट ने एनजीटी के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें एक कंपनी को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के मानदंडों का उल्लंघन करने का दोषी ठहराया गया था और उस पर जुर्माना लगाया गया था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजीटी ने शुरुआत में कंपनी के संयंत्र की जांच राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा किये जाने का निर्देश दिया था, जिसने अपने निष्कर्ष दिए और फिर न्यायाधिकरण ने एक संयुक्त समिति गठित की, जिसकी सिफारिशों पर उसने कार्रवाई की और आदेश पारित किया. पीठ ने 27 नवंबर के अपने फैसले में कहा, ‘एनजीटी द्वारा की गई एक और बड़ी गलती यह है कि उसने अपना फैसला केवल संयुक्त समिति की रिपोर्ट के आधार पर लिया. एनजीटी, राष्ट्रीय हरित अधिकरण अधिनियम, 2010 के तहत गठित एक अधिकरण है.’
रिकॉर्ड पर मौजूद सामग्री का अवलोकन करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कंपनी को न तो एनजीटी के समक्ष कार्यवाही में पक्षकार बनाया गया था और न ही संयुक्त समिति के समक्ष, और जब उसने पक्षकार बनने के लिए आवेदन दायर किया, तो न्यायाधिकरण ने उसे खारिज कर दिया. बेंच ने कहा, ‘यह भी प्रतीत होता है कि एनजीटी द्वारा गठित संयुक्त समिति ने भी अपीलकर्ता को न तो कोई नोटिस दिया और न ही सुनवाई का कोई अवसर दिया.’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह से यह स्पष्ट है कि एनजीटी द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया नैसर्गिक न्याय के स्थापित सिद्धांतों के अनुरूप नहीं थी.
उसने कहा कि न्यायाधिकरण कंपनी को पक्षकार प्रतिवादी के रूप में शामिल किए बिना मामले को प्रारंभिक चरण में भी आगे नहीं बढ़ा सकता था. उसने कहा, ‘एनजीटी द्वारा अपनाया गया दृष्टिकोण उसी तरह प्रतीत होता है जैसा किसी व्यक्ति का पक्ष सुने बिना उसकी निंदा की जाए.’ न्यायाधिकरण के आदेश को रद्द करते हुए, पीठ ने मामले को नये सिरे से विचार के लिए एनजीटी को वापस भेज दिया.
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