Supreme Court says Bail is rule and jail is exception principle applies to UAPA cases also
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (13 अगस्त) को संदिग्ध आतंकवादियों को शरण देने के आरोपी व्यक्ति को जमानत देते हुए टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ‘जमानत नियम है, लेकिन जेल अपवाद है’, ये सिद्धांत यूएपीए (UAPA) मामलों पर भी लागू होता है.
इस संबंध में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि एक बार जमानत देने का मामले बने जाने के बाद, राहत देने से अदालतें इनकार नहीं कर सकती. बेंच ने कहा, ‘जब जमानत देने का मामला बन गया है तो अदालतों को इसे देने में बिल्कुल भी हिचकिचाहट नहीं होनी चाहिए.’
‘ये एक स्थापित कानून है’
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा, ‘अभियोजन पक्ष के आरोप बेहद गंभीर हो सकते हैं लेकिन अदालतों का कर्तव्य है कि कानून के मुताबिक जमानत देने के उपलब्ध मामलों पर विचार किया जाए. जमानत नियम और जेल अपवाद, एक स्थापित कानून है.’
कठोर जमानत शर्तों पर कही ये बात
सुप्रीम कोर्ट ने इस कड़ी में कठोर जमानत शर्तों के मुद्दे पर भी बात की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कठोर जमानत शर्तों वाले केसों में भी सिद्धांत नहीं बदलता बल्कि वही रहता है कि अगर कानून में निर्देशित शर्तों को पूरा किया जाता है तो व्यक्ति को जमानत दी जा सकती है.
‘जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नियम का अर्थ तो ये है कि अगर एक बार जमानत देने का मामला बन गया है तो कोर्ट जमानत देने से इनकार नहीं कर सकता. कहा गया कि अगर इन मामलों में अदालतें जमानत देने से इनकार करें तो ये संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन साबित होगा.