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Supreme Court Ordered To Pay Compensation Of Rs 1.54 Crore in The Case Of Air Force Officer Being Infected With HIV – वायुसेना अधिकारी के HIV संक्रमित होने के मामले में SC का बड़ा फैसला, मुआवजे में 1.54 करोड़ देने का आदेश



फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सशस्त्र बल कर्मियों के जीवन की रक्षा करना प्राधिकरण का कर्तव्य है. सशस्त्र बल में शामिल होने वाले सभी कर्मियों की अपेक्षा होती है कि उनके साथ गरिमा और सम्मान के साथ व्यवहार किया जाए.

दरअसल ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान ड्यूटी पर बीमार पड़ने पर रक्त चढ़ाने के दौरान वायु सेना अधिकारी एचआईवी से संक्रमित हो गया था. जस्टिस एस रविन्द्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि अधिकारी को हुई चिकित्सकीय परेशानी के लिए भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना उत्तरदायी है, इसलिए वो चिकित्सीय लापरवाही के कारण 15473000 रुपये मुआवजे का हकदार है.

पीठ ने कहा कि चूंकि व्यक्तिगत दायित्व नहीं सौंपा जा सकता है, इसलिए भारतीय वायु सेना और भारतीय सेना को संयुक्त रूप से और अलग-अलग रूप से जिम्मेदार ठहराया जाता है. भारतीय वायुसेना, भारतीय सेना से मुआवजे की आधी राशि मांगने के लिए स्वतंत्र है. दिव्यांगता पेंशन से संबंधित सभी बकाया राशि छह सप्ताह के भीतर वितरित कर दी जानी चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में न केवल विशिष्ट मामले को संबोधित किया, बल्कि एचआईवी अधिनियम, 2017 के ढांचे के तहत सरकार, अदालतों और अर्ध-न्यायिक निकायों के लिए महत्वपूर्ण निर्देश भी दिए. धारा 34 एड्स से पीड़ित सभी व्यक्तियों के मामलों को प्राथमिकता देती है.

पीठ राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग यानी NCDRC के फैसले के खिलाफ एक अपील पर सुनवाई कर रही थी. NCDRC ने प्रतिवादी की ओर से हुई चिकित्सा लापरवाही के कारण अपीलकर्ता द्वारा किए गए मुआवजे के दावे को नकार दिया था.

जम्मू-कश्मीर में ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के दौरान का वाकया

दरअसल जम्मू-कश्मीर में ‘ऑपरेशन पराक्रम’ के तहत ड्यूटी के दौरान अपीलकर्ता अधिकारी बीमार पड़ गए और उन्हें जुलाई 2002 में 171 सैन्य अस्पताल, सांबा में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनके शरीर में एक यूनिट रक्त चढ़ाया गया. 2014 में वह फिर बीमार पड़ गए, तब पता चला कि वह HIV से पीड़ित हैं. उन्होंने जुलाई 2002 के दौरान अस्पताल में भर्ती होने की व्यक्तिगत घटना रिपोर्ट के बारे में जानकारी मांगी. उन्हें मेडिकल केस शीट प्रदान की गई.

इसके बाद, 2014 और 2015 में मेडिकल बोर्ड गठित किए गए. बोर्ड ने पाया कि जुलाई 2002 में एक यूनिट रक्त के संक्रमण के कारण वो एचआईवी संक्रमित हुए. इसके बाद अफसर के सेवा विस्तार को अस्वीकार करते हुए 31 मई, 2016 को सेवा से मुक्त कर दिया गया.

अपीलकर्ता ने दिव्यांगता प्रमाणपत्र की आपूर्ति के लिए एक आवेदन भी किया, जिसे इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया कि इसके लिए कोई प्रावधान नहीं है. इससे दुखी होकर उन्होंने 95 करोड़ के मुआवजे का दावा करते हुए NCDRC का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन उनकी मांग खारिज कर दी गई.

इस फैसले के खिलाफ सेवानिवृत वायुसेना अधिकारी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने सशस्त्र बल कर्मियों की गरिमा और भलाई को बनाए रखने के महत्व पर भी जोर दिया. पीठ ने कहा कि लोग काफी उत्साह और देशभक्ति की भावना के साथ सशस्त्र बलों में शामिल होते हैं. इसमें अपने जीवन को दांव पर लगाने और अपने जीवन के बलिदान के लिए तैयार रहने का एक सचेत निर्णय भी शामिल है.

सशस्त्र बलों के पदाधिकारियों सहित सभी राज्य अथॉरिटी पर एक समान कर्तव्य होता है कि सुरक्षा के उच्चतम मानक बनाए रखे जाएं, जिसमें शारीरिक और मानसिक कल्याण भी शामिल है. ये नियोक्ता के लिए न केवल बलों का मनोबल सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है, बल्कि ये भी दर्शाता है कि ऐसे कर्मी कितने मायने रखते हैं और उनका जीवन कितना मायने रखता है.

इन मानकों का कोई भी उल्लंघन न केवल कर्मियों में आत्मविश्वास की कमी लाता है, बल्कि उनके मनोबल को कमजोर करता है. साथ ही ये पूरे बल में कड़वाहट और निराशा की भावना पैदा करता है.

 



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