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Supreme Court on exemption to convicts sentenced State government should consider do not impose tough conditions


सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (18 फरवरी, 2025) को कहा कि राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का यह दायित्व है कि वे सभी सजायाफ्ता कैदियों की समयपूर्व रिहाई पर विचार करें और उनके लिए सजा में स्थायी छूट को लेकर आवेदन करना जरूरी नहीं है.

जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने उन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दो महीने के भीतर नीति तैयार करने का निर्देश दिया है, जहां दंड प्रक्रिया संहिता (CrPc) की धारा 432 या भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 473 के तहत सजा में छूट की नीति नहीं है.

बेंच ने कहा, ‘जहां सरकार की समुचित नीति है, जिसमें दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 या बीएनएसएस की धारा 473 के अंतर्गत समयपूर्व रिहाई की छूट पर विचार करने के लिए दिशा-निर्देश निर्धारित किए गए हैं, वहां संबंधित सरकार का यह दायित्व है कि वह सभी सजायाफ्ता कैदियों की समयपूर्व रिहाई के मामलों पर विचार करे, जब वे नीति के अनुसार विचार के लिए पात्र हो जाएं.’

अदालत ने आगे कहा, ‘ऐसे मामले में, सजायाफ्ता कैदी या उसके रिश्तेदारों के लिए सजा में स्थायी छूट प्रदान करने को लेकर कोई विशेष आवेदन करना आवश्यक नहीं है. जब जेल नियमावली या संबंधित सरकार की ओर से जारी किसी अन्य विभागीय निर्देश में ऐसे नीतिगत दिशानिर्देश शामिल हों तो उपरोक्त निर्देश लागू होंगे.’

यह फैसला जमानत देने के मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए लिया गया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संबंधित सरकार के पास सजा में स्थायी छूट देने के आदेश में उपयुक्त शर्तें शामिल करने का अधिकार है और शर्तों को अंतिम रूप देने से पहले विभिन्न कारकों पर विचार करना आवश्यक है.

बेंच ने कहा, ‘शर्तों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि दोषी की आपराधिक प्रवृत्ति, यदि कोई हो, पर नियंत्रण रहे और वह समाज में अपना पुनर्वास कर सके. शर्तें इतनी दमनकारी या कठोर नहीं होनी चाहिए कि सजायाफ्ता कैदी सजा में स्थायी छूट देने के आदेश का लाभ न उठा सके. शर्तें अस्पष्ट नहीं होनी चाहिए और उन्हें पालन करने योग्य होना चाहिए.’

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्थायी छूट देने या न देने के आदेश में संक्षिप्त कारण अवश्य होने चाहिए. कोर्ट ने कहा कि इसे जेल कार्यालय के माध्यम से सजायाफ्ता कैदी को तुरंत सूचित किया जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि इसकी प्रतियां संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरणों के सचिवों को भेजी जानी चाहिए.

कोर्ट ने अपने निर्णय की एक प्रति राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण को भेजने का निर्देश दिया, जो इसे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विधिक सेवा प्राधिकरणों को भेजेगा, ताकि वे इस निर्णय के तहत जारी निर्देशों के कार्यान्वयन की निगरानी कर सकें.

 

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