Supreme Court issues notice to High Courts on Senior Advocates Appoinment
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (25 फरवरी, 2025) को वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति की प्रक्रिया पर पुनर्विचार के मुद्दे पर सभी हाईकोर्ट और अन्य हितधारकों से जवाब मांगा. जस्टिस अभय एस ओका, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एस वी एन भट्टी की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने मामले की सुनवाई 21 मार्च के लिए निर्धारित की और स्पष्ट किया कि अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी और उसके बाद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता मामले में दलीलें पेश करेंगे.
बेंच ने कहा, ‘हम रजिस्ट्रार (न्यायिक) को निर्देश देते हैं कि वे इस आदेश की एक प्रति जितेंद्र कल्ला मामले में आदेश की प्रति के साथ सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को भेजें और उन्हें सूचित करें कि तारीख 19 मार्च तय की गई है और हाईकोर्ट अपने जवाब और सुझाव, यदि कोई हों, पहले ही देने के लिए स्वतंत्र हैं.’
सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि यदि वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति के संबंध में निर्णयों पर पुनर्विचार किया जाता है, तो यह एक बड़ी पीठ द्वारा किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने 20 फरवरी को कहा था कि वकीलों को वरिष्ठ अधिवक्ता के रूप में नामित करने के मामले में गंभीर आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है. उसने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को यह तय करने के लिए भेजा कि क्या एक बड़ी पीठ को इस मामले की सुनवाई करनी चाहिए.
अपना विरोध व्यक्त करते हुए, जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि यह संदिग्ध है कि क्या किसी उम्मीदवार का कुछ मिनटों के लिए साक्षात्कार करके वास्तव में उसके व्यक्तित्व या उपयुक्तता का परीक्षण किया जा सकता है.
पीठ ने कहा था, ‘जिस प्रश्न पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है, वह यह है कि क्या न्यायालय को पदनाम प्रदान करने के लिए आवेदन करने की अनुमति देनी चाहिए, हालांकि कानून में ऐसा नहीं है. यदि विधायिका का इरादा अधिवक्ताओं को पदनाम के लिए आवेदन करने की अनुमति देना होता, तो धारा 16 की उप-धारा (2) में इस न्यायालय या उच्च न्यायालयों को पदनाम से पहले अधिवक्ताओं की सहमति लेने का प्रावधान नहीं होता.’
यह भी पढ़ें:-
‘क्या राज्य प्रशासनिक न्यायाधिकरण होना विवेकपूर्ण है?’, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से पूछा