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Supreme Court dismissed illegal child appeal of biological father DNA test and maintenance


Illegal Child Case: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (28 जनवरी, 2025) को 23 साल पुराने एक मामले में बेहद अहम फैसला सुनाया है. 23 साल के युवक ने कोर्ट में याचिका दाखिल की है कि वह अपनी मां के एक्सट्रा मैरिटल अफेयर से पैदा हुई संतान है. अब उसने बायोलॉजिकल पिता के डीएनए टेस्ट और गुजारा-भत्ता के लिए मांग की है. कोर्ट ने युवक की मांग ठुकरा दी और कहा कि डीएनए टेस्ट से किसी की गरिमा और निजता का उल्लंघन हो सकता है.

याचिकाकर्ता का कहना है कि वह स्वास्थ्य संबंधी गंभीर बीमारियों से जूझ रहा है और वह कई बार सर्जरी भी करवा चुका है. उसने अपने बाायोलॉजिकल पिता से गुजारे-भत्ते की मांग की है. याचिकाकर्ता ने कहा कि उसकी मां का एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर था, जिससे 2001 में उनका जन्म हुआ. 2003 में उसकी मां अपने पति से लग रहने लगी और 2006 में तलाक हो गया. 2007 में महिला ने बेटे के बर्थसर्टिफिकेट में पिता का नाम बदलवाने की कोशिश की.

महिला ने अधिकारियों से कहा कि बच्चा एक्सट्रा मैरिटल अफेयर से पैदा हुआ, जिस पर नगर निगम के अधिकारियों ने अदालत के आदेश की मांग की और मामला कोर्ट पहुंच गया. 2007 में स्थानीय अदालत ने DNA टेस्ट का आदेश दिया, लेकिन इस फैसले को 2008 में हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और यहां डीएनए टेस्ट के आदेश पर रोक लगा दी गई.

मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला
जिसे याचिकाकर्ता अपना बायोलॉजिकल पिता बता रहे हैं, उन्होंने प्राइवेसी और रेप्युटेशन का हवाला देते हुए डीएनए टेस्ट की मांग का विरोध किया है. सुप्रीम कोर्ट ने भी उनकी इस दलील को सही बताया और कहा कि ये व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्जवल भुइयां की बेंच ने कहा कि बायोलॉजिकल पिता से DNA टेस्ट कराना सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से सही नहीं है क्योंकि इससे उस व्यक्ति की प्राइवेसी का उल्लंघन हो सकता है.

कोर्ट ने युवक की याचिका खारिज की
कोर्ट ने कहा कि अगर ये मान भी लिया जाए कि याचिकाकर्ता की मां एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर में थी और उस रिलेशनशिप से बच्चे पैदा हुआ. तब भी ये दलील काफी नहीं है. किसी अन्य या एक से ज्यादा व्यक्ति के साथ संबंध होना ये साबित नहीं करता कि पत्नी के अपने पति से संबंध नहीं थे. ऐसे में बेटे को उसके लीगल पिता की ही संतान माना जाएगा. कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता को अपने असली माता-पिता के बारे में जानने का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार के लिए दूसरे व्यक्ति की निजता के अधिकार का उल्लंघन नहीं किया जा सकता. 

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