Success Of Indias Women-led Frontline Workers Is A Lesson To Be Learned: UNICEF Chief – भारत की महिला नेतृत्व वाली फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं की सफलता सीख देने वाली : UNICEF प्रमुख
रसेल ने कहा, “भारत में दुनिया की सबसे बड़ी बाल आबादी है. सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में निवेश करके, देश ने बच्चों के टीकाकरण और खसरा और दस्त सहित घातक बीमारियों से लड़ने में प्रभावशाली प्रगति की है, जबकि लाखों बच्चों को कुपोषण से भी बचाया है.” उन्होंने कहा कि, “भारत की महिला नेतृत्व वाली फ्रंटलाइन कार्यकर्ता एक सफलता की कहानी है, जिससे हम सभी सीख सकते हैं. भारत के गांवों में काम करते हुए, वे हर एक परिवार के बच्चों और परिवारों के स्वास्थ्य और कल्याण में सुधार कर रही हैं .
सन 2014 में भारत को पोलियो-मुक्त प्रमाणित किया गया. 2015 में भारत ने मातृ एवं नवजात टेटनस को समाप्त कर दिया. 2011 से 2020 तक शिशु मृत्यु दर में 35 प्रतिशत की कमी आई है.
यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशक ने दो अक्टूबर को महात्मा गांधी की जयंती पर राजघाट में गांधी स्मारक पर श्रद्धांजलि अर्पित करके अपनी भारत यात्रा की शुरुआत की थी.
अपनी इस यात्रा के दौरान रसेल ने भारत सरकार के वरिष्ठ नेतृत्व, बच्चों, युवाओं और स्थानीय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं सहित उनके समुदायों से मुलाकात की. उन्होंने लखनऊ में महिला फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं से मिलने के लिए भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य, उत्तर प्रदेश का दौरा किया और भारत भर में सबसे कठिन पहुंच वाले समुदायों में जीवन बचाने के लिए आवश्यक सेवाओं की एक श्रृंखला प्रदान करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को प्रत्यक्ष रूप से देखा.
रसेल ने लखनऊ के एक प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में फ्रंटलाइन कार्यकर्ताओं सुधात्री (आशा – मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता), और सरोजिनी (आंगनवाड़ी / फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता) से मुलाकात की और देखा कि वे महिलाओं और बच्चों को जीवन रक्षक पोषण सेवाएं प्रदान करने के लिए किस तरह डिजिटल पोषण ट्रैकर का उपयोग करती हैं.
27 वर्षीय ज्योति और उसके 42 दिन के शिशु, अयांश की देखभाल को करीब से जानने के लिए रसेल बाराबंकी ब्लॉक की एक फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ता ललिता के घर भी गईं. ललिता जैसी आशा कार्यकर्ता माताओं को स्तनपान के बारे में बताती हैं और यह सुनिश्चित करती हैं कि नवजात शिशुओं का समय पर टीकाकरण हो. वे नवजात शिशुओं के स्वास्थ्य और समग्र स्थिति का भी मूल्यांकन करती हैं और चेतावनी के संकेतों को साझा करने के साथ स्वास्थ्य समस्याओं को भी सुलझाती हैं.
रसेल ने भारत में युवाओं और विशेष रूप से लड़कियों को भविष्य की नौकरियों और अवसरों का मार्ग प्रदान करते हुए सशक्त बनाने के लिए एक यूथ हब प्लेटफ़ॉर्म का भी शुभारंभ किया. एक अनोखा डिजिटल ऐप, (यूथ) हब कई एसडीजी पर प्रगति को गति देगा, जिसमें असमानता को कम करना और अच्छे कार्य अवसरों को बढ़ावा देना शामिल है.
इसके अलावा, रसेल ने 16 वर्षीय डेफलिंपिक (Deaflympics) विजेता गौरांशी शर्मा को यूनिसेफ भारत की पहला यूथ एडवोकेट और बच्चों के लिए निरंतर चैंपियन के रूप में नियुक्त करने की घोषणा की.
वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ बैठकों में रसेल ने देश के प्रत्येक बच्चे के लिए एसडीजी हासिल करने के लिए भारत की सरकार और लोगों के साथ यूनिसेफ की 74 साल की साझेदारी को जारी रखने की अपनी प्रतिबद्धता भी दोहराई.
रसेल की यह यात्रा पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा के ठीक बाद हुई, जहां वैश्विक नेता सतत विकास लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में बच्चों की महत्वपूर्ण भूमिका पर आम सहमति पर पहुंचे थे. एसडीजी स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण दुनिया को रहने योग्य बनाने से जुड़े विकास के 17 साझा लक्ष्य हैं.
रसेल ने कहा, “भारत ने दुनिया को दिखाया है कि जब बच्चों को प्राथमिकता दी जाती है तो प्रगति की जा सकती है. दुनिया भर के देश भारत के अनुभव से बहुत कुछ सीख सकते हैं.” उन्होंने कहा कि, “हालांकि, हमें मौजूदा चुनौतियों पर काबू पाने और हर बच्चे के लिए बेहतर भविष्य सुनिश्चित करने के लिए इस गति को आगे बढ़ाना चाहिए, क्योंकि इस दिशा में अभी भी हमें काफी लम्बा रास्ता तय करना है.”
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2030 एसडीजी के आधे रास्ते पर बच्चों से संबंधित वैश्विक सूचकांकों में से दो-तिहाई अपने लक्ष्यों को पूरा करने की गति से दूर थे. केवल 11 देशों में रहने वाली केवल 6 प्रतिशत बाल आबादी ही बच्चों से संबंधित 50 प्रतिशत ‘लक्ष्यों’ तक पहुंच पाई है – जो वैश्विक स्तर पर उपलब्धि का उच्चतम स्तर है. यदि अपेक्षित प्रगति जारी रही, तो 2030 तक कुल 60 देश ही अपने लक्ष्य को पूरा कर पाएंगे, जिससे 140 देशों में लगभग 1.9 अरब बच्चे पीछे रह जाएंगे.