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Shankaracharya | Shankaracharya:


Adi Shankaracharya Story: अयोध्या में बन कर तैयार हुए राम मंदिर में रामलाल की प्राण प्रतिष्ठा के भव्य कार्यक्रम का इंतजार पूरा देश कर रहा है. इस बीच राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की टाइमिंग को लेकर कुछ शंकराचार्यों की ओर से सवाल खड़े किए जाने और कुछ के समर्थन में होने की भी चर्चा तेज है.

 ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं आदि शंकराचार्य के जीवन की एक ऐसी कहानी के बारे में जब उन्हें एक सामान्य महिला से शास्त्रार्थ करना पड़ा था. यह भी दावा किया जाता है कि महिला के प्रश्न के जवाब में आदि शंकराचार्य निरुत्तर हो गए थे.

मंडल मिश्र की पत्नी से हुआ था शंकराचार्य का शास्त्रार्थ
प्रचलित कथाओं की माने तो बिहार के मिथिलांचल में कोसी क्षेत्र के एक छोटे से गांव महिषी (वर्तमान में सहरसा जिले में) में मंडन मिश्र अपनी पत्नी उभय‌ भारती साथ रहते थे. मिश्र कितने बड़े विद्वान थे, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके घर का तोता भी संस्कृत का श्लोक बोलता था. मंडन मिश्र की पत्नी उभय भारती भी अपनी विदुषिता के लिए प्रसिद्ध थीं.
 कहते हैं कि एक बार शंकराचार्य मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ के लिए उनके गांव पहुंचे.‌ दोनों के बीच शास्त्रार्थ शुरू होने से पहले शंकराचार्य नहीं मदन मिश्रा की पत्नी को हार जीत का फैसला करने के लिए निर्णायक की भूमिका निभाने को कहा क्योंकि शंकराचार्य जानते थे कि वह भी प्रकांड विद्वान हैं.

महिला ने ऐसा क्या कहा कि शंकराचार्य हो गए निरुत्तर?
  शास्त्रार्थ के पहले चरण में शंकराचार्य ने मंडन मिश्र को तो पराजित कर दिया लेकिन उनकी पत्नी उभय ने कुछ ऐसा कहा कि शंकराचार्य दोबारा शास्त्रार्थ करने को मजबूर हुए. मिश्र की पत्नी भारती ने शंकराचार्य से कहा, मंडन मिश्र विवाहित हैं. हम दोनों मिलकर अर्धनारीश्वर की तरह एक इकाई बनाते हैं. आपने अभी आधे भाग को हराया है, अभी मुझसे शास्त्रार्थ करना बाकी है. कहते हैं कि शंकराचार्य ने उनकी चुनौती स्वीकार की.

दोनों के बीच जीवन-जगत के प्रश्नोत्तर हुए. शंकराचार्य जीत रहे थे, लेकिन अंतिम प्रश्न भारती ने किया. उनका प्रश्न गृहस्थ जीवन में स्त्री-पुरुष के संबंध के व्यावहारिक ज्ञान से जुड़ा था. शंकराचार्य को उस जीवन का व्यवहारिक पक्ष मालूम नहीं था. उन्होंने ईश्वर और चराचर जगत का अध्ययन किया था. वे अद्वैतवाद को मानते थे. भारती के प्रश्न पर शंकराचार्य ने अपनी हार स्वीकार कर ली. अंत में सभा मंडप ने विदुषी भारती को विजयी घोषित किया.

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