Second marriage is a form of domestic violence! Madras High Court said Muslim women demand compensation | दूसरी शादी करना घरेलू हिंसा का ही रूप! मद्रास हाई कोर्ट बोला
Madras High Court: मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा है कि एक मुस्लिम महिला अपने द्विविवाही पति (जिसने अपनी पहली पत्नी को तलाक दिए बिना ही दूसरी शादी कर ली हो) से क्षतिपूर्ति/मुआवजा पाने की हकदार है क्योंकि पति के इस कृत्य उसे मानसिक क्षति हुई है और यह घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत ‘घरेलू हिंसा’ शब्द की परिभाषा के अंतर्गत आता है.
न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन ने सुनवाई के दौरान कहा कि आगर मुस्लिम महिला अपने अलग हुए पति द्वारा दिए गए तीन तलाक की वैधता पर सवाल उठाती है तो पति को अनिवार्य रूप से न्यायालय में जाना होगा. पति को कोर्ट में कानून के हिसाब से तलाक देना होगा.
जमात नहीं सुना सकती है फैसला
न्यायमूर्ति जी.आर. स्वामीनाथन ने आगे कहा कि शरीयत (कुरान पर आधारित विहित कानून) परिषदें किसी भी जमात (इस्लाम का पालन करने वालों का समूह) के लिए तलाक पर फैसला नहीं सुना सकतीं. उन्होंने जोर देकर कहा, “केवल राज्य द्वारा विधिवत गठित अदालतें ही इस पर फैसला सुना सकती हैं. शरीयत परिषद एक निजी संस्था है, न कि अदालत.”
जानें क्या है पूरा मामला
न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने एक डॉक्टर दंपति के बीच घरेलू विवाद के मामले में यह फैसला सुनाया है. उन्होंने 2010 में इस्लामी रीति-रिवाजों के अनुसार शादी की थी और उनका एक बेटा भी था. 2018 में महिला ने 2005 के अधिनियम के तहत शिकायत दर्ज कराई थी. 2021 में एक न्यायिक मजिस्ट्रेट ने उसकी याचिका स्वीकार कर ली और पति को निर्देश दिया कि वह अपनी पत्नी को घरेलू हिंसा के लिए 5 लाख रुपये का मुआवजा दे. 2022 में एक सत्र न्यायालय ने आदेश को बरकरार रखा था. इसके बाद पति ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने अपनी अलग रह रही पत्नी को दूसरी शादी करने से पहले तीन तलाक नोटिस जारी किए थे. महिला डॉक्टर ने दावा किया कि तीसरा नोटिस उसे नहीं दिया गया और इसलिए उसने दावा किया कि उसकी शादी अभी भी वैध है.