SCO Countries Should Respect Each Others Sovereignty, Strictly Follow International Law: Jaishankar – एससीओ देश एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करें, अंतरराष्ट्रीय कानून का सख्ती से पालन करें : जयशंकर
जयशंकर ने यह टिप्पणी उस वक्त की, जब वह किर्गिस्तान के बिश्केक में एससीओ के शासनाध्यक्षों की परिषद के 22वें सत्र को संबोधित कर रहे थे. इस सत्र में किर्गिस्तान, कजाकिस्तान, ईरान, चीन, रूस, ताजिकिस्तान, पाकिस्तान और उज्बेकिस्तान के प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया.
विदेश मंत्री ने अपने संबोधन में कहा, ‘‘एससीओ को अंतरराष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों का सख्ती से पालन करते हुए एक-दूसरे की संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करके, आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करके क्षेत्र में स्थिरता और समृद्धि को बढ़ावा देने के लिए मिलकर काम करना चाहिए.”
उन्होंने कहा कि इस संदर्भ में मध्य एशियाई राष्ट्रों के हितों को केंद्र में रखा जाना महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. उन्होंने यह भी कहा कि भारत स्थायी, पारस्परिक रूप से लाभप्रद और वित्तीय रूप से व्यवहार्य समाधानों के लिए सदस्य देशों के साथ साझेदारी करने का इच्छुक है, क्योंकि यह (भारत) क्षेत्र के भीतर व्यापार में सुधार करने का प्रयास करता है.
उन्होंने कहा, ‘‘क्षेत्र के भीतर व्यापार में सुधार के लिए हमें मजबूत कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे की जरूरत है. भारत ने विकास की अपनी यात्रा में इन पहलुओं को भरपूर तवज्जो दी है. ऐसी पहलों में सभी देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान (अवश्य) किया जाना चाहिए.”
बीजिंग, पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) में अरबों डॉलर का निवेश कर रहा है. भारत ने पाकिस्तान में इस परियोजना का विरोध किया है, क्योंकि यह गलियारा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजर रहा है.
उन्होंने कहा कि भारत एससीओ क्षेत्र के लोगों के साथ गहरे सभ्यतागत संबंध साझा करता है. अभी एससीओ देशों में भारत, ईरान, कजाकिस्तान, चीन, किर्गिज गणराज्य, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान शामिल हैं.
जयशंकर ने कहा, ‘‘क्षेत्र में वस्तुओं के आयात-निर्यात, विचारों के निरंतर प्रवाह और लोगों की सतत आवाजाही ने हमारे रीति-रिवाजों, परंपराओं, भाषा और व्यंजनों पर अमिट छाप छोड़ी है. इन ऐतिहासिक रिश्तों को अब अधिक आर्थिक सहयोग के लिए एक खाका तैयार करना चाहिए.”
विदेश मंत्री ने चीन पर एक बार फिर निशाना साधते हुए कहा, ‘‘ग्लोबल साउथ को अपारदर्शी योजनाओं से उत्पन्न होने वाले अव्यवहार्य ऋण के बोझ तले नहीं दबाया जाना चाहिए.”
ग्लोबल साउथ को अक्सर उन अल्प विकसित या अविकसित अथवा विकासशील देशों के रूप में संदर्भित किया जाता है, जो मुख्य रूप से अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में स्थित हैं.
चीन पर श्रीलंका और पाकिस्तान जैसे देशों में अव्यवहार्य बुनियादी परियोजनाएं शुरू करके उन देशों को ऋण के बोझ तले दबाने का आरोप लगता रहा है. भारत-मध्य पूर्व (अर्थात पश्चिम एशिया)-यूरोप आर्थिक गलियारा (आईएमईसी) और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (आईएनएसटीसी) समृद्धि प्रवर्तक बन सकते हैं.”
आईएमईसी को कई लोग चीन की ‘बेल्ट एंड रोड’ (बीआरआई) पहल के विकल्प के रूप में देखते हैं. आईएमईसी की घोषणा सितंबर में जी20 शिखर सम्मेलन के मौके पर अमेरिका, भारत, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, फ्रांस, जर्मनी, इटली और यूरोपीय संघ के नेताओं द्वारा की गई थी.
आईएनएसटीसी भारत, ईरान, अजरबैजान, रूस, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए जहाज, रेल और सड़क मार्गों का 7,200 किलोमीटर लंबा मल्टी-मोड नेटवर्क है.
पिछले एक दशक में बीजिंग कई देशों के लिए पसंदीदा ऋणदाता रहा है. कइयों ने चीन से भारी उधार लिया. महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड (बीआरआई) बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उपयोग करके चीन द्वारा ऋण का जाल फैलाये जाने और उसके क्षेत्रीय आधिपत्य को लेकर वैश्विक चिंताएं लगातार बनी रही हैं.
जयशंकर ने कहा कि एससीओ की अध्यक्षता के दौरान भारत ने सहयोग के पांच नये क्षेत्रों- स्टार्टअप और नवाचार, पारंपरिक चिकित्सा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी, युवा सशक्तीकरण और साझा बौद्ध विरासत पर ध्यान केंद्रित किया था.
उन्होंने कहा, ‘‘हमने डिजिटल परिवर्तन में सहयोग पर एक पत्रक अपनाया है और हमने स्टार्टअप और नवाचार पर एक विशेष कार्य समूह को भी संस्थागत बनाया है. भारत नियमित आधार पर एससीओ स्टार्टअप फोरम की मेजबानी भी कर रहा है.”
उन्होंने कहा कि दुनिया आसन्न आर्थिक मंदी, बिखरी आपूर्ति शृंखला, खाद्य और ऊर्जा असुरक्षा की चुनौतियों का सामना कर रही है और इस संदर्भ में एससीओ के भीतर घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता है.
यह देखते हुए कि जलवायु परिवर्तन मानवता के सामने आने वाली गंभीर चुनौतियों में से एक है, उन्होंने कहा कि भारत ने अपने साझेदारों के साथ जलवायु कार्रवाई में योगदान देने वाली वैश्विक पहल का नेतृत्व किया है.
उन्होंने कहा कि भारत ऊर्जा सुरक्षा की चुनौती से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है.
उन्होंने कहा, ‘‘हम पवन, ऊर्जा और सौर ऊर्जा में चौथे स्थान पर हैं. हमारी सरकार ने राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन के माध्यम से वैकल्पिक ईंधन के उपयोग को बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं. हम पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा स्रोत की ओर बढ़ रहे हैं. इससे भारत और हमारे सभी भागीदारों को कार्बन उत्सर्जन को शून्य करने में मदद मिलेगी.”
यह रेखांकित करते हुए कि दुनिया के कई हिस्सों में खाद्य सुरक्षा एक चुनौती बनी हुई है, उन्होंने कहा कि भारत वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के एक संभावित साधन के रूप में मोटे अनाज की ताकत का उपयोग करने में विश्वास करता है.
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)