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RSS affiliated Organiser magazine article according Mohanlal starrer L2 Empuran not just film spreading anti Hindu and anti BJP narrative


राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़ी एक पत्रिका में प्रकाशित लेख में कहा गया है कि मोहनलाल अभिनीत ‘एल2 एम्पुरन’ महज एक फिल्म नहीं, बल्कि हिंदू विरोधी और भाजपा विरोधी विमर्श फैलाने का जरिया है, जो पहले से ही खंडित भारत को और विभाजित करने का खतरा पैदा करती है.

लेख में आरोप लगाया गया है कि फिल्म में गोधरा कांड के बाद गुजरात में हुए दंगों जैसे संवेदनशील विषय को स्पष्ट और भयावह पूर्वाग्रह के साथ पेश किया गया है. गुरुवार को सिनेमा घरों में दस्तक देने वाली एल2 एम्पुरन 2019 में आई लुसिफर की सिक्वेल है. यह फिल्म दक्षिणपंथी राजनीति की आलोचना और गुजरात दंगों के परोक्ष जिक्र के कारण चर्चा का सबब बनी हुई है.

हालांकि, एल2 एम्पुरन के पटकथा लेखक मुरली गोपी ने विवाद को खारिज करते हुए कहा है कि हर किसी को अपनी तरह से फिल्म की व्याख्या करने का अधिकार है. गोपी ने कहा, ‘मैं विवाद पर पूरी तरह से चुप रहूंगा. उन्हें लड़ने दें. हर किसी को अपनी तरह से फिल्म की व्याख्या करने का अधिकार है’. आरएसएस की साप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइजर की वेबसाइट पर 28 मार्च को प्रकाशित लेख के मुताबिक, फिल्म ने “ऐतिहासिक सच्ची घटनाओं” पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय 2002 के गोधरा कांड के बाद हुए दंगों की पृष्ठभूमि का इस्तेमाल विभाजनकारी, हिंदू विरोधी विमर्श को आगे बढ़ाने के लिए किया है, जो सामाजिक सद्भाव के लिए गंभीर खतरा है. आरएसएस ने कई मौकों पर स्पष्ट किया है कि ‘ऑर्गनाइजर’ उसका मुखपत्र नहीं है.

‘मोहनलाल की आलोचना की गई’
विश्वराजन की ओर से लिखे गए लेख में कहा गया है, ‘मोहनलाल की एल2 एम्पुरन महज एक फिल्म नहीं, बल्कि हिंदू विरोधी और भाजपा विरोधी विमर्श को फैलाने का जरिया है, जो पहले से ही खंडित भारत को और विभाजित करने का खतरा पैदा करती है’. लेख में मोहनलाल की इस तरह की “दुष्प्रचार वाली कहानी” का हिस्सा बनने के लिए आलोचना की गई है. इसमें कहा गया है कि ऐसे विभाजनकारी और राजनीतिक रूप से प्रेरित विमर्श को आगे बढ़ाने वाली फिल्म में अभिनय करने का मोहनलाल का फैसला उनके वफादार प्रशंसकों के लिए किसी विश्वासघात से कम नहीं है.

‘फिल्म के हर फ्रेम में साफ दिखता है राजनीतिक एजेंडा’ 
इसमें दावा किया गया है कि निर्देशक पृथ्वीराज सुकुमारन को लंबे समय से उनके राजनीतिक झुकाव के लिए जाना जाता हैं लेकिन एम्पुरन में इन झुकावों को एकदम स्पष्ट रूप से से दर्शाया गया है. लेख में कहा गया है कि सुकुमारन का राजनीतिक एजेंडा फिल्म के हर फ्रेम में साफ तौर पर दिखता है. इसमें आरोप लगाया गया है कि फिल्म की कहानी न केवल हिंदुओं को बदनाम करती है, बल्कि खासतौर पर हिंदू समर्थक राजनीतिक विचारधाराओं को निशाना भी बनाती है’.

इसमें आरोप लगाया गया है, ‘निर्देशक के तौर पर अपने मंच का इस्तेमाल अपने राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए पृथ्वीराज सुकुमारन की आलोचना की जानी चाहिए. एम्पुरन जैसी मजबूत सियासी रंग वाली फिल्में पहले से ही ध्रुवीकृत माहौल में दरार और बढ़ा सकती हैं तथा समाज को और बांट सकती हैं’. इसमें कहा गया है, ‘यहां तक ​​कि आलोचकों का तर्क है कि फिल्म में जानबूझकर ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ की गई है, जबकि 59 निर्दोष यात्रियों-जिनमें से अधिकांश हिंदू तीर्थयात्री थे की दुखद हत्या को नजरअंदाज किया गया है, जिन्हें दंगाइयों ने 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगाकरर जिंदा जला दिया था’.

लेख के अनुसार, ‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2002 के गोधरा रेल हादसे के दोषियों को अदालत ने दोषी पाया है और उन्हें सजा भी दी है, जबकि दंगों को हथियार के रूप में इस्तेमाल करने के कांग्रेस के राजनीतिक एजेंडे को भारत की जनता ने कई बार खारिज किया है’.

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