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RG Kar Medical College Case Regularly ordering investigation to CBI lowers morale of police Says Supreme Court


RG Kar Medical College Case: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (25 नवंबर) को कहा कि सीबीआई को नियमित रूप से जांच अपने हाथ में लेने का आदेश देने से न केवल जांच एजेंसी पर अकल्पनीय बोझ पड़ता है बल्कि राज्य पुलिस के अधिकारियों को भी मनोबल गिराने वाले बहुत गंभीर एवं दूरगामी प्रभाव का सामना करना पड़ता है. जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने कोलकाता के आरजी कर अस्पताल में एक प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के साथ बलात्कार एवं हत्या की घटना के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन के दौरान गिरफ्तार महिला को पुलिस हिरासत में कथित तौर पर प्रताड़ित किए जाने संबंधी मामले की एसआईटी जांच का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की.

बेंच ने कलकत्ता हाई कोर्ट के छह नवंबर के आदेश में संशोधन किया, जिसके तहत मामले की सीबीआई जांच का आदेश देने के एकल बेंच के आदेश को बरकरार रखा था. उसने कहा, “हमारे लिए उन कारणों पर टिप्पणी करना जरूरी नहीं है, सिवाय यह कहने के कि मामलों की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंपने से न केवल देश की प्रमुख जांच एजेंसी पर अकल्पनीय बोझ पड़ता है, बल्कि राज्य पुलिस के अधिकारियों को भी मनोबल गिराने वाले बहुत गंभीर एवं दूरगामी प्रभाव का सामना करना पड़ता है.” 

तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन

बेंच ने इस आधार पर आगे बढ़ना उचित नहीं समझा कि पश्चिम बंगाल कैडर को आवंटित वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी निष्पक्ष एवं स्वतंत्र जांच करने और सच्चाई का पता लगाने में असमर्थ या अक्षम थे. शीर्ष अदालत ने तीन सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया, जिसमें 2009 बैच के आईपीएस अधिकारी आकाश मघरिया (डीआईजी प्रेसीडेंसी रेंज), स्वाति भंगालिया (एसपी हावड़ा ग्रामीण) और सुजाता कुमारी वीणापानी (हावड़ा की डीएसपी यातायात) शामिल हैं. 

‘SIT को सौंपे जाएंगे सभी रिकॉर्ड’

बेंच ने आदेश दिया, “एसआईटी जांच तत्काल अपने हाथ में लेगी… जांच के सभी रिकॉर्ड आज ही एसआईटी को सौंप दिए जाएंगे और एसआईटी बिना किसी देरी के जांच शुरू कर देगी. अगर आवश्यक हुआ तो एसआईटी कुछ अन्य पुलिस अधिकारियों को भी शामिल करने के लिए स्वतंत्र होगी.” सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से एक विशेष बेंच गठित करने का आग्रह किया, जिसके समक्ष एसआईटी अपनी साप्ताहिक रिपोर्ट पेश करेगी और आगे की जांच के लिए अनुमति मांगेगी. 

पॉक्सो के तहत कड़े प्रावधान लागू

याचिकाकर्ताओं की तरफ से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता नरेंद्र हुड्डा ने अपने मुवक्किलों को सुरक्षा उपलब्ध कराने का अनुरोध किया. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने एक लड़की के खिलाफ यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत कड़े प्रावधान लागू किए हैं. बेंच ने पीड़ितों को एसआईटी से संपर्क करने का निर्देश दिया, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनके जीवन और अधिकारों को कोई नुकसान न हो. उसने जांच दल से बिना किसी देरी के आवश्यक कदम उठाने को कहा. 

‘युवा आईपीएस अधिकारियों पर बहुत भरोसा है’

बेंच ने कहा, “हमें इन युवा आईपीएस अधिकारियों पर बहुत भरोसा है… संवैधानिक लोकाचार के संदर्भ में इन अधिकारियों पर लोगों की आकांक्षाओं और अपेक्षाओं पर खरा उतरने की बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है. इसलिए हमें उम्मीद है कि वे इन बातों को समझेंगे.” हुड्डा ने भी इसी तरह की भावना व्यक्त करते हुए कहा कि उन्हें उम्मीद है कि अधिकारी मामले में खरे उतरेंगे.  सुप्रीम कोर्ट ने 11 नवंबर को कलकत्ता हाई कोर्ट के आठ अक्टूबर के उस आदेश पर रोक लगा दी थी, जिसके तहत पुलिस हिरासत में एक महिला को कथित रूप से प्रताड़ित करने के मामले की केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) से जांच कराए जाने का आदेश दिया गया था. 

बेंच ने पश्चिम बंगाल सरकार से मांगी लिस्ट

बेंच ने पश्चिम बंगाल सरकार से पांच महिलाओं समेत भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के सात अधिकारियों की सूची सौंपने को कहा, जिन्हें हिरासत में यातना मामले की जांच के लिए नए विशेष जांच दल (एसआईटी) में शामिल किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से दायर अपील पर दिया जिसमें कहा गया था कि हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच का निर्देश देने वाला त्रुटिपूर्ण आदेश दिया और राज्य पुलिस जांच करने में सक्षम है. कलकत्ता हाई कोर्ट की एक खंड बेंच ने महिला की ओर से लगाए गए आरोपों की सीबीआई जांच का निर्देश देने वाले एकल न्यायाधीश के आदेश को छह नवंबर को बरकरार रखा था. खंड बेंच ने कहा था कि स्वतंत्र जांच करने के एकल न्यायाधीश के आदेश को गलत नहीं ठहराया जा सकता और इसमें किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है. 

महिला याचिकाकर्ताओं ने लगाया पुलिस हिरासत में उत्पीड़न का आरोप

दो महिला याचिकाकर्ताओं ने पुलिस हिरासत में उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए एकल न्यायाधीश की बेंच का रुख किया था. बेंच ने जेल के चिकित्सक की रिपोर्ट पर गौर किया, जिसमें उनमें से एक के पैरों पर हेमेटोमा (ऊतक के भीतर खून के थक्के जमने से होने वाली सूजन) के लक्षण मिलने की बात कही गई थी. हाई कोर्ट ने कहा था कि शिकायतकर्ता-रेबेका खातून मुल्ला और रामा दास को सात सितंबर को गिरफ्तार किया गया था और अगले दिन डायमंड हार्बर अदालत से उनकी न्यायिक रिमांड का आदेश मिलने तक उन्हें डायमंड हार्बर पुलिस जिले के फाल्टा पुलिस थाने में हिरासत में रखा गया. हाई कोर्ट ने कहा था कि डायमंड हार्बर उप-सुधार गृह के चिकित्सा अधिकारी की रिपोर्ट में दास के दोनों पैरों पर हेमेटोमा बताया गया है, जबकि डायमंड हार्बर मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल के चिकित्सकों ने कोई बाहरी चोट दर्ज नहीं की है.

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