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RG Kar: आंख के बदले आंख, जान के बदले जान कोई भी सजा पीड़िता के मां-बाप के दुख को… संजय रॉय को फांसी देने पर क्या बोले जज?



<p style="text-align: justify;">कोलकाता के आरजी कर रेप एंड मर्डर केस के दोषी संजय रॉय की सजा को लेकर खूब चर्चा हो रही है. करीब पांच महीने बाद सोमवार (20 जनवरी, 2025) को कोलकाता की सियालदह कोर्ट ने महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या के दोषी संजय रॉय को उम्रकैद की सजा सुनाई है. कोर्ट का फैसला आने के बाद इस बात की चर्चा होने लगी कि ऐसे जघन्य अपराध के लिए दोषी को फांसी क्यों नहीं दी गई. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी इस पर नाराजगी जताई है और अब उन्होंने ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.</p>
<p style="text-align: justify;">सियालदह कोर्ट के एडशिनल सेशन जज अनिर्बान दास ने सुनवाई करते हुए पुलिस और अस्पताल प्रशासन की मामले में लापरवाही बरतने के लिए खूब फटकार लगाई. उन्होंने पुलिस अधिकारियों पर संजय रॉय को पैंपर करने और उसके फोन के साथ छेड़छाड़ करने की आशंका को लेकर आरोप लगाए हैं. उन्होंने कहा कि पुलिस और अस्पताल की लापरवाही की वजह से दोषी बचता रहा. हालांकि, जज ने संजय रॉय को सजा सुनाते हुए कहा कि उनकी ड्यूटी क्रूरता से क्रूरता का मैच करना नहीं बल्कि ज्ञान, करूणा और गहरी समझ के माध्यम से मानवता को ऊपर उठाना है.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने कहा, ‘हमें आंख के बदले आंख, दांत के बदले दांत, नाखून के बदले नाखून या जान के बदले जान की पुरानी प्रवृत्ति से ऊपर उठना होगा.’ जस्टिस अनिर्बान दास ने कहा कि ये केस मौत की सजा के लिए ‘रेयरेस्ट ऑफ रेयर’ के लिए कठोर आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है.</p>
<p style="text-align: justify;">उन्होंने आगे कहा, ‘हमें पीड़िता के माता-पिता के दर्द और दुख का ख्याल है और उस दुख को कोई भी सजा पूरी तरह से सांत्वना प्रदान नहीं कर सकती है. कोर्ट का कर्तव्य ऐसी सजा सुनाना है जो उचित और स्थापित कानूनी सिद्धांतों के अनुसार हो. कोर्ट को जनता के दबाव या भावनात्मक अपीलों के आगे झुकने के प्रलोभन से बचना चाहिए. इसके बजाय ऐसा फैसला दिए जाने पर फोकस करना चाहिए, जो कानूनी प्रणाली की अखंडता को कायम रखता हो और न्याय के व्यापक हितों की पूर्ति करता हो.'</p>
<p style="text-align: justify;">कोर्ट ने कहा कि हम जानते हैं कि अपराध बहुत क्रूर और बरबर्ता पूर्ण था, लेकिन ये ऐसा मामला नहीं था, जिसमें मौत की सजा दी जा सके क्योंकि यह रेयर ऑफ रेयरेस्ट की श्रेणी में नहीं आता है. उन्होंने कहा कि जब सजा सुनाने की बात आती है तो कोर्ट जनता की भावनाओं के साथ नहीं बह सकता है. जज ने कहा, ‘न्यायपालिका की प्राथमिक जिम्मेदारी कानून के शासन को लागू करना और सबूतों के आधार पर न्याय सुनिश्चित करना है, न कि जनता की भावनाओं के आधार पर. ये सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है कि कोर्ट सिर्फ ट्रायल के दौरान प्रस्तुत किए गए सबूतों को ध्यान में रखकर अपनी निष्पक्षता बनाए रखे न कि जनता की राय और इमोश्नल रिएक्शन के साथ बह जाए.’ जस्टिस अनिर्बान दास ने कहा कि हमें इस पर भी ध्यान देना होगा कि दोषी का कोई पिछला क्रिमिनल रिकॉर्ड नहीं है.&nbsp;<br />&nbsp; &nbsp;</p>
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