Rajasthan Assembly Elections 2023 BJP And Congress Internal Discord Can Effect Election Result
Rajasthan Election 2023 News: राजस्थान की सियासत में इन दिनों अजब-गजब माहौल देखने को मिल रहा है. 25 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव में जीत के लिए कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) दोनों ही पूरी शिद्दत से जुटी हुई हैं. बीजेपी ने जहां इस बार जीत सुनिश्चित करने के लिए अपने सात सांसदों को भी प्रत्याशी बनाया है, तो वहीं कांग्रेस की मौजूदा सरकार ने वादों का पिटारा खोल दिया है. दोनों ही अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं.
पर इन सबके बीच सिक्के का दूसरा पहलू भी है, जो पर्दे के पीछे है और दोनों ही दलों में है. जी हां, हम बात कर रहे हैं पार्टी की अंदरूनी कलह की. इस समस्या से दोनों ही पार्टी परेशान हैं और इससे इनका खेल भी बिगड़ सकता है. हालांकि इनके वरिष्ठ नेता लगातार इस कलह को मैनेज करने में लगे हैं, लेकिन समय-समय पर यह सामने नजर आ जा रहा है. यहां समझते हैं कांग्रेस और बीजेपी में क्या है कलह औऱ कैसे ये पहुंचा सकता है नुकसान.
बीजेपी के अंदर का घमासान
बीजेपी के अंदर का यह घमासान चुनाव की तारीख के ऐलान से 1-2 महीने पहले से नजर आ रहा है. दरअसल, पार्टी ने यहां जबसे चुनावों की तैयारियां शुरू की हैं, तब से ही पार्टी की वरिष्ठ नेता और दो बार सीएम रह चुकीं वसुंधरा राजे साइडलाइन नजर आईं हैं. वह न बीजेपी के पोस्टरों में नजर आती थीं और न ही बड़ी जनसभाओं में.
यह कलह चुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद और बढ़ गई. बीजेपी आलाकमान के इस बार सीएम फेस का ऐलान न करने से वसुंधरा राजे के समर्थक और नाराज हो गए. इसके बाद पूर्व सीएम राजे के खेमे के कई विधायकों के टिकट कटने से मामला और बिगड़ गया. टिकट को लेकर और वसुंधरा राजे को किनारे किए जाने को लेकर राज्य के कई इलाकों में पार्टी कार्यकर्ता विरोध करते नजर आ रहे हैं.
ऐसे पहुंच सकता है नुकसान
- अगर पार्टी की यह आंतरिक कलह समय रहते ठीक नहीं होती है तो वसुंधरा के समर्थक वोटर और पार्टी कार्यकर्ता बीजेपी से दूरी बना सकते हैं. ऐसी स्थिति में बीजेपी के लिए जीत आसान नहीं होगी.
- ऐसा नहीं है कि नतीजे आने के बाद सब कुछ ठीक हो जाएगा. वसुंधरा राजे का खेमा नतीजे आने के बाद भी पार्टी की चिंता बढ़ा सकता है. अगर वसुंधरा को उचित जिम्मेदारी न मिलने की स्थिति में उनके समर्थक विधायक बागी भी हो सकते हैं.
कांग्रेस में भी कलह कम नहीं
अब बात करें कांग्रेस की तो यहां भी स्थिति बीजेपी जैसी ही है. राज्य में सीएम अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की तकरार जगजाहिर है. करीब 2 साल पहले सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों ने जिस तरह बागी होकर मोर्चा खोल दिया था, उससे सरकार संकट में आ गई थी, हालांकि पार्टी आलाकमान ने चीजों को संभाल लिया, लेकिन दोनों की तकरार जारी रही और समय-समय पर दिखती रही. अब भी यह कलह कभी-कभी नजर आती है. अशोक गहलोत जहां सीएम की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते तो वहीं सचिन पायलट के समर्थक अब उन्हें सीएम देखना चाहते हैं. इसके अलावा टिकट कटने से भी कई नेता नाराज हैं और लगातार पार्टी के खिलाफ विरोध कर रहे हैं.
इस तरह हो सकता है नुकसान
- पार्टी में अगर फिर से सीएम की कुर्सी को लेकर सचिन पायलट और अशोक गहलोत आमने-सामने होंगे तो इस बार फिर से दोनों खेमे के विधायक एक-दूसरे के खिलाफ मोर्चा खोल सकते हैं. यह स्थिति पार्टी को नुकसान पहुंचा सकती है.
- कांग्रेस के लिए भी जीत के बाद भी चीजों को मैनेज करने की चुनौती रहेगी. नतीजे आने के बाद भी अगर पायलट और गहलोत खेमे के विधायक आपसे में लड़ते नजर आए तो यहां मध्य प्रदेश जैसी स्थिति भी नजर आ सकती है, जहां 2019 में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने समर्थक विधायकों के साथ मोर्चा खोलते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया था.
- टिकट कटने से नाराज नेता जो अभी विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं औऱ निर्दलीय लड़ने या दूसरे दल में जाकर चुनाव में उतरने की बात कह रहे हैं, ये लोग भी पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.
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