News

Petition filed against Worship Act 1991 Supreme Court CJI Sanjiv Khanna refuses to hear | वर्शिप एक्ट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दाखिल, CJI बोले


सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार (1 अप्रैल, 2025) को प्लेसेस ऑफ वर्शिप (स्पेशल प्रोवीजन) एक्ट, 1991 के एक प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली नई याचिका पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. एक्ट में किसी स्थान के धार्मिक चरित्र को 15 अगस्त, 1947 के अनुसार बनाए रखने का प्रावधान है.

पहले से ही 1991 के कानून के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली छह से अधिक याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इनमें एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय की ओर से दायर की गई मुख्य याचिका भी शामिल है. मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की एक पीठ से मंगलवार को कानून के छात्र नितिन उपाध्याय ने अनुरोध किया कि उनकी याचिका भी लंबित याचिकाओं के साथ सुनी जाए.

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, ‘हम संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत एक नई जनहित याचिका पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं.’ बेंच ने हालांकि छात्र को लंबित याचिकाओं में हस्तक्षेप के लिए अंतरिम याचिका दायर करने की अनुमति दे दी. प्लेसेस ऑफ वर्शप (स्पेशल प्रोवीजन) एक्ट, 1991 किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप में परिवर्तन पर रोक लगाता है और किसी भी पूजा स्थल के धार्मिक स्वरूप को उसी रूप में बनाए रखने का प्रावधान करता है जैसा वह 15 अगस्त 1947 को था.

अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद से संबंधित विवाद को हालांकि इसके दायरे से बाहर रखा गया. नितिन उपाध्याय ने कोर्ट से यह निर्देश देने का अनुरोध किया कि अदालतों को किसी उपासना स्थल के मूल धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए उचित आदेश पारित करने की अनुमति दी जाए. इसमें अधिनियम के अनुच्छेद 4(2) को चुनौती दी गई है, जो धार्मिक स्वरूप बदलने की कार्यवाही पर रोक लगाने के साथ ही इसके लिए नए मामले दायर करने पर भी रोक लगाता है.

याचिका में कहा गया, ‘केंद्र ने न्यायिक उपचार पर रोक लगाकर अपनी विधायी शक्ति का अतिक्रमण किया है, जो कि संविधान की एक बुनियादी विशेषता है. यह अच्छी तरह से स्थापित है कि सक्षम न्यायालय में मुकदमा दायर करके न्यायिक उपचार के अधिकार को बाधित नहीं किया जा सकता और न्यायालयों की शक्ति को कम नहीं किया जा सकता है और इस तरह के इनकार को संविधान की मूल विशेषता का उल्लंघन माना गया है, जो विधायी शक्ति से परे है.’

अधिवक्ता श्वेता सिन्हा के माध्यम से दायर याचिका में कहा गया है कि कानून इन स्थानों में संरचना, भवन, निर्माण या इमारत में परिवर्तन पर रोक लगाए बिना पूजा स्थलों के धार्मिक चरित्र के संरक्षण और रखरखाव को अनिवार्य बनाता है. याचिका में कहा गया, ‘स्थान के मूल धार्मिक चरित्र को बहाल करने के लिए संरचनात्मक परिवर्तन की अनुमति है.’

याचिका में कहा गया है कि अधिनियम में स्थान के धार्मिक चरित्र का पता लगाने के लिए किसी भी वैज्ञानिक या दस्तावेजी सर्वेक्षण पर रोक नहीं लगाई गई है. फरवरी में सुप्रीम कोर्ट ने 1991 के अधिनियम पर अनेक याचिकाएं दायर किए जाने पर नाराजगी व्यक्त की थी.

 

यह भी पढ़ें:-
‘संभल मस्जिद की रंगाई-पुताई का आदेश देना गलत’, हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, CJI बोले- हम नहीं…



Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *