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Opinion: भारतीय दर्शन और दर्शन से पहले बांग्लादेश में पीठाध्यक्षों की गिरफ्तारी, वहां खतरे में हिंदू



<p style="text-align: justify;">सनातन, सभ्यता, संस्कृति और संस्कार यह सिर्फ किसी एक भाषा के चार शब्द नहीं है. इन्होंने युग परिवर्तन होते देखा है. भारत की बनती, संवरती और बिगड़ती भौगोलिक परिस्थितियों के साक्षी हैं. कहीं चर्चा में यह शब्द बोले या सुने जा रहे हैं तो तय है, वहां भारत के संदर्भ में बात हो रही है. अलग-अलग खूबियों वाले दुनिया में छोटे बड़े अनेक &nbsp;देश है, मगर अनगिनत विशेषताओं के साथ सिर उठाकर जो इकलौता देश खड़ा है, वह भारत ही है, जो कि सनातन, सभ्यता, संस्कृति और संस्कारों के साथ विविधताओं से परिपूर्ण है. भारत के विषय में अक्सर कहा जाता है यूनान मिश्र रोमन, सब मिट गए जहां से, बाकी मगर है अब तक नामो निशां हमारा, कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन, दौर ए जहां हमारा&hellip;.</p>
<p style="text-align: justify;">आज सनातन धर्म में गहरी आस्था रखने वाले ना केवल दुनिया के हर कोने में बसे हैं. वहां रहते हुए अपनी क्षमताओं और संस्कारों से समाज को नई दिशा दे रहे है. आए दिन दुनिया के किसी ना किसी देश से भारतवंशियों की उपलब्धियों के साथ उच्च पदों पर आसीन होने और नई अहम जिम्मा मिलने की सूचनाएं मीडिया की सुर्खियों में होती है. वह भी बिना किसी जातिवाद, क्षेत्रवाद अथवा अस्थिरता पैदा करने वाली कारगुजारियों के. वजह है वे संस्कार जो सनातन धर्म के अमर वाक्य जीओ और जीने दो में रचे बसे हैं.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया.&nbsp;</strong><br /><strong>सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्.</strong></p>
<p style="text-align: justify;">सभी सुखी हों, सभी रोग मुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और दुःख का भागी न बनना पड़े. इन्हीं मंगलकामनओं के साथ आपका दिन मंगलमय हो. दुनिया में इस तरह की कामना केवल अपनी जाति धर्म के अलावा प्रत्येक के लिए की जाती हो, यह प्रार्थना करने वाला केवल सनातनी ही होगा, दूसरा नहीं. वहीं संपूर्ण विश्व में एक परिवार का सिद्धांत केवल भारतीय दर्शन में ही मिलता है, जिसे महाउपनिषद्&zwnj; में पहली बार &ldquo;वसुधैव कुटुम्बकम&rdquo; के रुप में वर्णित किया गया.</p>
<p style="text-align: justify;">पिछले दिनों कनाडा में जो हुआ और उसके बाद पड़ोसी बांग्लादेश में जो हो रहा है, उसमें उन्माद, अशांति और मानवता विरोधी गतिविधियों का कोलाहल स्पष्ट तौर पर सुनाई देता है. दो दिनों से दुनिया के सबसे पुराने नगरों में से एक महादेव की नगरी काशी में एक महासम्मेलन चल रहा है. इस महा-सम्मेलन में द्वादश ज्योतिर्लिंग और 51 शक्तिपीठों के पीठाध्यक्ष शामिल हुए हैं. इस पवित्र आयोजन में भी कनाडा और बांग्लादेश के घटनाक्रमों पर चिंता के साथ बुद्धिहीनों को सद्बुधि की कामना की गई, ताकि मानवता के विरोधियों का समूल नाश होने से पहले उन्हें अपनी गलती सुधार कर सही दिशा अपना सके.</p>
<p style="text-align: justify;">आश्चर्य होगा कि बांग्लादेश के हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि जो महासम्मेलन काशी विश्वनाथ में 30 नवंबर से शुरु हुआ और एक दिसंबर तक चलेगा, उस पावन कार्यक्रम में शामिल होने बांग्लादेश से आ रहे शक्तिपीठों के पीठाध्यक्षों को भारत जाने वाले पहले ही गिरफ्तार कर लिया है. हालांकि एक पीठाध्यक्ष यहां पहुंचने में सफल हुए हैं. उनका कहना है कि बांग्लादेश में हालात बद से बदतर है. हिंदू समाज संकट की घड़ी से गुजर रहा है. जिस तरह की परिस्थितियां वहां पैदा हो चुकी है, उसके लिए भारत सरकार को भी उचित कदम उठाना चाहिए. ताकि हिंदू समाज के अधिकार और सुरक्षा सुनिश्चित हो सके.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">इन 51 शक्तिपीठों में से भद्रकाली शक्तिपीठ के पीठाध्यक्ष पंडित सतपाल शर्मा ने बताया कि वाराणसी में यह दूसरा ऐतिहासिक आयोजन हुआ, जिसमें सनातन धर्म की एकता को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया. आयोजन का उद्देश्य सनातन धर्म के विभिन्न तीर्थस्थलों और समुदायों को एक मंच पर लाने का कार्य वाराणसी के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में सेंटर फॉर सनातन रिसर्च और ट्राइडेंट सेवा समिति ट्रस्ट ने किया. इनके आमंत्रण पर भारत समेत श्रीलंका, नेपाल, बांग्लादेश और पाकिस्तान जैसे देशों से सनातन धर्म के प्रतिनिधियों ने भाग लिया.मगर जो हालात बांग्लादेश से आए एक प्रतिनिधि ने बताए है,उससे घोर निराशा होती है,क्योंकि विश्व के कल्याण के लिए कार्य करने वाले सनातनियों के साथ यह व्यवहार स्वीकार्य नहीं हो सकता. इस महासम्मेलन में कनाडा और बांग्लादेश जैसे घटनाक्रमों की निंदा उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम बृजेश पाठक, राज्य मंत्री डॉ. दयाशंकर मिश्र, संत प्रखर महाराज, कश्मीर शंकराचार्य स्वामी अमृतानंद महाराज, विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आलोक कुमार व मध्य प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री धर्मेंद्र सिंह, आयोजक डॉ. रमन त्रिपाठी सहित देश विदेश से आए सनातनियों ने की.&nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और नेपाल में सुशोभित दिव्य 51 शक्तिपीठों से लाई गई मिट्टी से शिव-सती की मूर्ति बनाई इस आयोजना का विशेष आकर्षण रही. इस मूर्ति को अगले 1 वर्ष में देश के विभिन्न प्रसिद्ध मंदिरों में ले जाया जाएगा.यहां चिंताजनक और दुखद पहलू यह है कि जैसे हालात बांग्लादेश में बने हैं,क्या इन दिव्य मूर्तियों को गरिमापूर्ण वातावरण में ले जाने का कभी अवसर प्राप्त होगा या नहीं ? यह भविष्य में बांग्लादेश के हालातों पर निर्भर होगा. निस्संदेह इस प्रकार के आयोजन धार्मिक और सांस्कृतिक मूल्यों को सशक्त बनाते है. विशेषकर पड़ोसी देशों में विराजमान शक्ति पीठों के बीच परस्पर एकता, सहयोग, और समन्वय को. मगर इसके विपरीत चिंता और विचार-विमर्श मुख्य रूप से हिन्दू मंदिरों पर अतिक्रमण और धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा पर हुआ. यहां अन्य विषयों के साथ कनाडा और बांग्लादेश में हिंदू मंदिरों पर हो रहे अत्याचारों की निंदा कर सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित हुआ.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]</strong></p>



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