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Once Upon A Time A HC Didnt Even Have Money To Buy Video Conferencing Platform License, Now Has Ample Budget: CJI – कभी एक HC के पास वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म लाइसेंस खरीदने तक के पैसे नहीं थे, अब भरपूर बजट : CJI


कभी एक HC के पास वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म लाइसेंस खरीदने तक के पैसे नहीं थे, अब भरपूर बजट : CJI

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (फाइल फोटो).

नई दिल्ली:

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को अदालत में कहा  कि कोविड​-19 महामारी के दौरान एक हाईकोर्ट के पास वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग प्लेटफॉर्म के लिए आवश्यक लाइसेंस खरीदने तक के पैसे नहीं थे, लेकिन अब ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण के लिए भारी बजट आवंटित किया गया है, जो न्यायपालिका को विशेषकर निचली अदालतों को प्रौद्योगिकी से लैस करेगा.

 

CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं के एक समूह की सुनवाई कर रही थी. पीठ में जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना,जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत शामिल हैं.

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सुप्रीम कोर्ट की पीठ तकनीक-प्रेमी बन गई

याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने अदालत के समक्ष बहस शुरू की और सराहना की कि पीठ तकनीक-प्रेमी बन गई है. अगर इस तकनीक को निचली अदालतों तक पहुंचाया जा सके तो यह एक बड़ा योगदान होगा. 

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कुछ राज्य सरकारें बहुत सहायक हैं. मुझे याद है कि महामारी के समय, मैं उच्च न्यायालय का नाम नहीं लूंगा, उनके पास वीडियो प्लेटफ़ॉर्म के लाइसेंस के लिए भुगतान करने के लिए पैसे नहीं थे. हमने बस कुछ वापस ले लिया सुप्रीम कोर्ट से लाइसेंस और उन्हें स्थानांतरित कर दिया गया. वे बिल्कुल संकट में थे, उस समय लॉकडाउन था. बिना वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के कोर्ट चलाना संभव नहीं था. 

SC को अपना स्वयं का क्लाउड सॉफ़्टवेयर स्थापित करना है

मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “चरण 3 में, हमारे पास एक बड़ा बजट है… हम ऐसा करने की प्रक्रिया में हैं. वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के लिए अपना स्वयं का क्लाउड सॉफ़्टवेयर स्थापित करना है.  

गत 15 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के एक समारोह में अपने स्वतंत्रता दिवस के संबोधन में मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि हम ई-कोर्ट परियोजना के चरण 3 को लागू कर रहे हैं, जिसे 7000 करोड़ रुपये की बजटीय मंजूरी मिली है. यह चाहता है देश भर की सभी अदालतों को आपस में जोड़कर, कागज रहित अदालतों का बुनियादी ढांचा स्थापित करके, अदालती रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण करके, उन्नत ई-सेवा केंद्रों की स्थापना करके क्रांति लाएं. 

फरवरी में केंद्रीय बजट में 7,000 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ ई-कोर्ट परियोजना के तीसरे चरण की शुरुआत की घोषणा की गई थी.



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