Odisha Train Accident: In Last Years Audit Report Serious Concern Was Raised On Rail Safety – ओडिशा ट्रेन हादसा : पिछले साल की ऑडिट रिपोर्ट में रेल सुरक्षा पर जताई गई थी गंभीर चिंता
भारत के शीर्ष ऑडिटिंग निकाय, कंट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल ऑफ इंडिया (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) ने 2022 में ट्रेनों के पटरी से उतरने की घटनाओं को लेकर चिंता जताई थी. उसने रिपोर्ट में यह पता लगाने के लिए कहा था कि रेल मंत्रालय ने ट्रेनों के पटरी से उतरने और ट्रेनों को टकराने से रोकने के स्पष्ट उपाय तय या कार्यान्वित किए हैं या नहीं.
उसने इंस्पेक्शन में भारी कमी, हादसों के बाद जांच रिपोर्ट जमा करने या स्वीकार करने में विफलता, प्राथमिकता वाले कार्यों के लिए तय रेलवे फंड का उपयोग नहीं करना, ट्रैक नवीनीकरण के लिए फंडिंग में कमी और सुरक्षा के लिए अपर्याप्त स्टाफ को लेकर गंभीर चिंता जताई थी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि, “रेलवे पटरियों की ज्योमेट्रिकल और स्ट्रक्चरल कंडीशन का आकलन करने के लिए आवश्यक ट्रैक रिकॉर्डिंग कारों के जरिए इंस्पेक्शन में 30-100 प्रतिशत तक की कमी देखी गई.”
रिपोर्ट में ट्रैक मैनेजमेंट सिस्टम में विफलताओं की ओर भी इशारा किया गया है, जिस पर ओडिशा ट्रेन दुर्घटना के बाद व्यापक रूप से चर्चा हो रही है.
इसमें कहा गया है कि, “ट्रैक प्रबंधन प्रणाली (TMS) ट्रैक रखरखाव गतिविधियों की ऑनलाइन निगरानी के लिए एक वेब-बेस्ड एप्लिकेशन है. हालांकि टीएमएस पोर्टल का इन-बिल्ट मॉनीटरिंग मैकेनिज्म चालू नहीं पाया गया था.”
रिपोर्ट में कहा गया है कि, अप्रैल 2017 से मार्च 2021 तक ‘इंजीनियरिंग विभाग’ के कारण डिरेलमेंट के 422 मामले सामने आए थे. बोगियों के पटरी से उतरने के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारणों में ‘ट्रैक के रखरखाव’ (171 मामले) से संबंधित था. इसके अलावा ‘ट्रैक पैरामीटर का सीमा से अधिक विचलन’ (156 मामले) भी एक कारण था. रिपोर्ट में कहा गया है कि डिरेलमेंट की घटनाओं के पीछे ‘खराब ड्राइविंग/ओवर स्पीडिंग’ भी प्रमुख रूप से जिम्मेदार हैं.
सीएजी ने पाया कि, ‘ऑपरेटिंग डिपार्टमेंट’ के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की संख्या 275 थी. इसके अलावा ‘प्वाइंट्स की गलत सेटिंग और शंटिंग ऑपरेशन में अन्य गलतियां’ 84 प्रतिशत घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि, “अधिकांश डिरेलमेंट की घटनाएं पांच बाधाओं में से किसी एक के कारण हुईं, अर्थात् (i) नियम और संयुक्त प्रक्रिया आदेश (JPOs), (ii) कर्मचारियों का प्रशिक्षण/काउंसलिंग, (iii) संचालन का सुपरवीजन, (iv) विभिन्न विभागों के कर्मचारियों के बीच समन्वय और संचार (v) शेड्यूल्ड इंस्पेक्शन.”
जांच रिपोर्ट जमा करने में समय सीमा का पालन नहीं
63 फीसदी मामलों में ‘जांच रिपोर्ट’ स्वीकार करने वाले अधिकारी के पास निर्धारित समय सीमा में जमा नहीं की गई और 49 फीसदी मामलों में स्वीकार करने वाले अधिकारियों की ओर से रिपोर्ट की स्वीकृति में देरी की गई.
रिपोर्ट में कहा गया है कि राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष से प्राथमिकता वाले कार्यों पर कुल व्यय के लिए एक रिजर्व फंड के तहत 2017-18 से शुरू हुए पांच वर्षों में एक लाख करोड़ रुपये का कोष प्राप्त किया गया. इसमें गिरावट का ट्रेंड देखा गया. कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्रैक नवीनीकरण कार्यों के लिए धन के आवंटन में कमी आई है और पहले से आवंटित राशि का भी पूरी तरह से उपयोग नहीं किया गया है.
रेल सुरक्षा के बजाय गैर प्राथमिकता वाले कामों पर व्यय
रिपोर्ट में कहा गया है कि, “राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष (RRSK) डिपलॉयमेंट फ्रेमवर्क के मार्गदर्शक सिद्धांतों के विरुद्ध गैर-प्राथमिकता वाले कार्यों पर व्यय के प्रति IR (भारतीय रेलवे) का रुझान बढ़ रहा था. सुरक्षा संबंधी कामों के वित्तपोषण के एकमात्र उद्देश्य लिए अलग समर्पित कोष बनाने का उद्देश्य विफल हो गया था. धन की कमी के कारण सुरक्षा संबंधी कार्य रुके हुए थेय.”
कैग की रिपोर्ट में कहा गया है, “2017-21 के दौरान हुईं डिरेलमेंट की 1,127 घटनाओं में से 289 (26 प्रतिशत) घटनाएं ट्रैक नवीनीकरण से जुड़ी हुई थीं.” वर्ष 2018-21 के दौरान मानवयुक्त 2,908 रेलवे क्रासिंग (नौ प्रतिशत) को समाप्त करने के लक्ष्य में से केवल 2,059 (70 प्रतिशत) क्रासिंग को समाप्त किया गया.
कैग ने निष्कर्ष निकाला है कि, “सुरक्षा श्रेणी में पर्याप्त स्टाफ के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, जिसका रखरखाव की गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है.”
कैग ने सिफारिश की है कि रेलवे दुर्घटना से संबंधित इंक्वारी पूरी करने और उसे अंतिम रूप देने के लिए निर्धारित समय-सीमा का कड़ाई से पालन सुनिश्चित करे और ट्रैक का रखरखाव करने के लिए बेहतर टेक्नालॉजी के साथ पूरी तरह से मशीनीकृत तरीकों को अपनाए. रखरखाव गतिविधियों का समय पर कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए एक मजबूत निगरानी तंत्र विकसित करे.
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