Nobel Peace Prize 2023 Winner Name Will Be Announced On October 6 For The First Time This Award Was Given To Frederic Passy And Henry Dunant See The List – Nobel Prize 2023: 6 अक्टूबर को नोबेल शांति पुरस्कार के विजेता की घोषणा, पहली बार फ्रेडरिक पैसी और हेनरी डुनेंट को मिला यह पुरस्कार
मार्टिन लूथर किंग
पुरस्कार संस्था के तत्कालीन अध्यक्ष गुन्नार जाह्न के अनुसार, अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता मार्टिन लूथर किंग “पश्चिमी दुनिया के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने हमें दिखाया कि हिंसा के बिना भी संघर्ष किया जा सकता है.” उन्हें अमेरिका का गांदी भी कहा जाता है. गुन्नार ने कहा, “वह अपने संघर्ष के दौरान भाईचारे के प्यार के संदेश को वास्तविकता बनाने वाले पहले व्यक्ति हैं, और उन्होंने इस संदेश को सभी लोगों, सभी देशों और जातियों तक पहुंचाया है.” 35 साल की उम्र में, वह उस समय के सबसे कम उम्र के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता भी थे. पाकिस्तान की शिक्षा प्रचारक मलाला यूसुफजई को साल 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. जब उन्हें ये पुरस्कार दिया गया, तब वह मात्र 17 वर्ष की थी. नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली वे अब तक की सबसे कम उम्र की शख्स हैं.
नेल्सन मंडेला
नेल्सन मंडेला, साउथ अफ्रीका के पहले अश्वेत राष्ट्रपति थे, जिन्हें 1993 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. बता दें कि नोबेल शांति पुरस्कार कई मौकों पर विवादास्पद रहा है,नेल्सन मंडेला के नाम पर भी विवाद हुआ. नॉर्वेजियन नोबेल समिति के तत्कालीन सचिव गीर लुंडेस्टैड बताते हैं कि 1993 में ज्यादातर लोग सहमत थे कि मंडेला का पुरस्कार जीतना “स्वयं-स्पष्ट” था. कारण कि उन्होंने 27 साल जेल में बिताए और दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को समाप्त करने के लिए शांतिपूर्ण परिवर्तन का आह्वान किया.
लुंडेस्टैड ने बताया कि कई लोगों ने कहा कि मंडेला को अकेले ही जीतना चाहिए था, जबकि अन्य ने कहा कि मंडेला किसी समकक्ष के बिना शांति स्थापित नहीं कर सकते. अंत में, लोकतांत्रिक दक्षिण अफ्रीका में शांतिपूर्ण परिवर्तन को प्रोत्साहित करने के लिए दोनों को पुरस्कार दिया गया. नेल्सन मंडेला को भारत सरकार ने 1990 में भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया था. भारत रत्न पाने वाले वे पहले विदेशी नागरिक थे.
ऑन्ग सैन सू की
आंग सान सू की म्यांमार (बर्मा) की एक राजनेता, राजनयिक तथा लेखक हैं. वे बर्मा के राष्ट्रपिता आंग सान की पुत्री हैं. आंग सान सू की ने बर्मा में लोकतन्त्र की स्थापना के लिए लंबा संघर्ष किया है. उन्हें 1991 में लोकतंत्र के संघर्ष के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार से नवाजा गया. उन्हें म्यांमार की आयरन लेडी भी कहा जाता है. 2010 में म्यांमार में आम चुनाव हुए, जिसके बाद आंग सान को नजरबंदी से रिहा कर दिया. वर्ष 2015 में उन्होंने राष्ट्रीय चुनाव में नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी का नेतृत्व कर जीत हासिल की और विरोधी दल की नेता बनीं. साल 2020 के चुनाव में उनकी पार्टी को भारी बहुमत प्राप्त हुआ, लेकिन सेना ने तख्तापलट करते हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया. फिलहाल वे जले में और 32 साल की सजा काट रही हैं.
महात्मा गांधी
लुंडेस्टैड के अनुसार, महात्मा गांधी पांच अलग-अलग ((1937, 1938, 1939, 1947 और 1948) मौकों पर समिति की उम्मीदवारों की आंतरिक सूची में थे. 1948 में, जिस वर्ष उनकी हत्या हुई थी, निकाय ने उन्हें पुरस्कार देने की तैयारी की थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. समिति अभी भी इसे मरणोपरांत उन्हें दे सकती थी, यह उस समय संभव था लेकिन अब नहीं है. लुंडेस्टैड के अनुसार, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि समिति भारत में पूर्व औपनिवेशिक शक्ति, करीबी सहयोगी ब्रिटेन को नाराज नहीं करना चाहती थी. उन्होंने कहा, “यह निश्चित रूप से बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि 20वीं सदी के अहिंसा के अग्रणी प्रवक्ता को कभी नोबेल शांति पुरस्कार नहीं मिला.