MP News: न सड़क, न पानी और न ही बिजली, ऐसी है आदिवासी इलाके उतानी पाठ गांव की कहानी, ग्रामीणों ने बयां किया दर्द
<p style="text-align: justify;"><strong>MP News:</strong> मध्य प्रदेश का सिंगरौली जिला यूं तो पावर हब,कोयले की खान और खनिज संपदाओं की बाहुल्यता के लिए जाना जाता है. यहां की बिजली देश में रोशनी करती है और यही वजह है कि इस उर्जाधानी शहर से प्रदेश सरकार को इंदौर के बाद दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा राजस्व मिलता है. लेकिन विडम्बना देखिए उर्जाधानी सिंगरौली जिले के कई गांव आज भी अंधेरे में है. आजादी के कई दशक गुजर जाने के बाद भी यहां के लोगों को बिजली नसीब नहीं हुई है. एबीपी न्यूज की टीम ऐसे ही एक गांव उतानी पाठ में पहुंची.</p>
<p style="text-align: justify;">इस गांव तक पहुंचने के लिए पक्की सड़क तक नहीं है. 3 से 4 किलोमीटर दूर तक पैदल पगडंडियों के रास्ते से होकर गांव में पहुंचना पड़ता है. यहां जाकर एबीपी न्यूज की टीम ने यहां रहने वाले बैगा आदिवासियों का हाल जाना.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>गांव में न बिजली, न पानी, न ही सड़क</strong><br />सड़क न पानी और न ही बिजली एक ओर भीषण गर्मी का प्रकोप दूसरी ओर इन समस्याओं की मार, जिला जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूरी पर बसा उतानी पाठ गांव मे रहने वाले बैगा आदिवासी टोले की यही कहानी है. इस गांव मे करीब 400 बैगा आदिवासी रहते है. गांव नादों ग्राम पंचायत के अंतर्गत आता है, लेकिन आज भी यह गांव विकास की मुख्यधारा में आने के लिए जदोजहद कर रहा है. इस गांव मे रहने वाले रहवासियों के सामने सबसे बड़ी समस्या पानी की है, अब इस गांव का दुर्भाग्य कहें या फिर शासन प्रशासन की लापरवाही, लोगों को अपनी प्यास बुझाने के लिए 3 से 4 किलोमीटर का सफर तय करके नदी में पानी लाने के लिए जाना पड़ता है, यहां के लोग बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहें है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>3-4 किलोमीटर दूर नदी से लाते है पीने का पानी</strong><br />गांव के सहदेव बैगा ने बताया कि गांव से पानी लाने के लिए 3 से 4 किलोमीटर दूर नदी पर जाते है. गांव मे न तो सड़क है न बिजली और न ही यहां पर किसी प्रकार की कोई व्यवस्था है, जब कोई बीमार होता है तो खाट पर लेकर जाते है क्योंकि यहां कोई भी वाहन नहीं आ पाता. सड़क भी नही है. बच्चों को पढ़ने के लिए एक प्राथमिक विद्यालय है लेकिन वह भी खंडहर में तब्दील हो चुका है. मास्टर साहब भी यहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक महीने में चार से पांच दिन ही आते है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>आज तक नहीं मिला किसी सरकारी योजना का लाभ</strong><br />बैगा परिवार की सीता कुमारी रात के अंधेरे में चूल्हे में खाना बना रही थी. इस दौरान एबीपी न्यूज की टीम से बातचीत करते हुए सीता ने अपना दर्द बयां किया. उसने बताया कि गांव मे आज तक बिजली नसीब नही हुई अंधेरे में ही जिंदगी गुजर रही है, किसी भी सरकारी योजना का लाभ नही मिला, उनकी बेटी भी टार्च के सहारे पढ़ाई करती है. 70 साल की सुकवरिया बैगा बताती है कि उन्हें सरकारी योजना का लाभ तो आज तक नही मिला और इस गांव में पानी की सबसे बड़ी समस्या है. यह कहानी करीब 400 बैगा आदिवासी समुदाय के उस गांव की है जो आज भी विकास की मुख्य धारा में आने के लिए जद्दोजहद कर रहा है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>देवेंद्र पाण्डेय की रिपोर्ट</strong></p>
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