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MP News: आंगनबाड़ी महिला कार्यकर्ता को नौकरी से निकाला, कोर्ट ने सरकार के खिलाफ की ये सख्त टिप्पणी



<p style="text-align: justify;"><strong>Madhya Pradesh News:</strong> मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की बर्खास्तगी के मामले में सरकार के खिलाफ बेहद तल्ख टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा कि मात्र एक दिन की अनुपस्थिति पर सेवा से बर्खास्तगी की सजा देने के रवैये से हम आश्चर्यचकित हैं. ये तो ऐसा है, जैसे एक मक्खी को मारने के लिए लोहे के हथौड़े का इस्तेमाल किया गया हो. इस मत के साथ कोर्ट ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता को सेवा से बर्खास्त करने का आदेश निरस्त कर दिया. याचिकाकर्ता की ओर से कोर्ट में दलील दी गई कि एक बार सजा मुकर्रर हो जाने के बाद सेवा से बर्खास्तगी अनुचित है.</p>
<p style="text-align: justify;">मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस सुजय पॉल की एकलपीठ ने अपने आदेश में 60 दिन के भीतर याचिकाकर्ता को बहाल करने और सभी अनुषांगिक लाभ देने के निर्देश दिए. जस्टिस पॉल ने यह भी माना कि जब उक्त कृत्य के लिए पहले 8 दिन के वेतन कटौती का आदेश दे दिया गया था, तो बाद में कलेक्टर के निर्देश पर सेवामुक्त करना पूरी तरह अवैधानिक है.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>काम पर एक दिन नहीं आई तो नौकरी से निकाला</strong></p>
<p style="text-align: justify;">दरअसल,खंडवा निवासी ममता तिरोले ने याचिका दायर कर बताया कि वो आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में पदस्थ हैं. याचिकाकर्ता को 6 जनवरी 2020 को एक शोकॉज नोटिस आया कि वो एक दिन बिना सूचना के अनुपस्थित रहीं, इसलिए जवाब प्रस्तुत करें. याचिकाकर्ता ने जवाब पेश कर बताया कि महिलाओं को होने वाली समस्या के कारण 27 दिसंबर 2019 को कार्य से अनुपस्थित रही थी. इसके बाद प्रोजेक्ट ऑफिसर ने 10 जनवरी 2020 को उसे 8 दिन की वेतन कटौती का दंड और चेतावनी दी कि भविष्य में ऐसी लापरवाही पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी. इसके बाद कलेक्टर के निर्देश पर प्रोजेक्ट ऑफिसर ने 27 जनवरी 2020 को पूर्व के आदेश को वापस लेते हुए याचिकाकर्ता को सेवा से बर्खास्त कर दिया. याचिकाकर्ता ने एडीशनल कलेक्टर और संभागायुक्त के समक्ष अपील पेश की, जो कि निरस्त कर दी गईं.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>कर्ट ने दिया आदेश&nbsp;</strong></p>
<p style="text-align: justify;">मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि एक ही आचरण पर जब एक बार सजा मुकर्रर कर दी गई तो उसी के लिए सेवा से बर्खास्तगी जैसी कार्रवाई अनुचित है.तर्क दिया गया कि प्रोजेक्ट ऑफिसर ने स्वविवेक का इस्तेमाल नहीं किया और केवल कलेक्टर के कहने पर ऐसी सजा दे दी. सुनवाई के बाद कोर्ट ने माना कि सेवा से बर्खास्तगी की कार्रवाई पूरी तरह अवैधानिक है, इसलिए निरस्त करने योग्य है.</p>
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