mehul choksi only holds single citizenship of india extradition process will get hampered by any problem ann
Extradition of Mehul Choksi : भगोड़े हीरा कारोबारी मेहुल चोकसी को भारत वापस लाने के प्रयास में एक बड़ी सफलता मिलती हुई नजर आ रही है. ईडी के सूत्रों का दावा है कि एंटीगुआ और बारबुडा सरकार ने बेल्जियम और भारत दोनों देशों के अधिकारियों को सूचित किया है कि वह बेल्जियम में चल रही प्रत्यर्पण प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.
सूत्रों ने दावा किया है, “चोकसी एक ऐसा व्यक्ति है जिसके पास पूरे विश्व में किसी भी अन्य देश की नागरिकता नहीं है. फिलहाल उसकी पहचान यही है वो सिर्फ भारतीय मूल का व्यक्ति है. एंटीगुआ ने साफ किया है कि गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण का मामला पूरी तरह से बेल्जियम के अधिकार क्षेत्र में आता है और वह किसी भी तरह से हस्तक्षेप नहीं करेगा.
चोकसी ने एंटीगुआ और बारबुडा के हाई कोर्ट में क्या किया दावा?
चोकसी ने एंटीगुआ और बारबुडा के उच्च न्यायालय में अपनी एंटीगुआ की नागरिकता रद्द करने को चुनौती दी है. जिसमें दावा किया गया कि वह राजनीतिक उत्पीड़न का शिकार है और इसमें उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.
एंटीगुआ के अधिकारियों ने भारत को दी जानकारी
ED के सूत्रों ने यह भी दावा किया कि एंटीगुआ के अधिकारियों ने भारतीय समकक्षों को यह स्पष्ट कर दिया है कि क्योंकि उसकी नागरिकता आधिकारिक रूप से रद्द कर दी गई है और न्यायिक कार्यवाही चल रही है, इसलिए बेल्जियम की अदालती कार्यवाही में उसे कोई नागरिक अधिकार नहीं दिया जाएगा.
2023 में एंटीगुआ सरकार ने चोकसी की नागरिकता को किया था रद्द
उल्लेखनीय है कि 13,500 करोड़ रुपये के पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) घोटाले में मुख्य आरोपी मेहुल चोकसी ने 2017 में देश के इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम माध्यम से एंटीगुआ की नागरिकता प्राप्त की थी. हालांकि, एंटीगुआ सरकार ने नागरिकता के लिए प्रोसीजर करते समय तथ्यों को छिपाने और अपने क्रिमिनल बैकग्राउंड के बारे में उचित जानकारी न देने का हवाला देते हुए 2023 में उसकी नागरिकता रद्द कर दी.
ईडी के सूत्रों के मुताबिक, चोकसी की नागरिकता रद्द करने का फैसला तब आया जब एंटीगुआ और बारबुडा के अधिकारियों ने निष्कर्ष निकाला कि उसने कथित तौर पर भारत में अपनी लंबित आपराधिक जांच का खुलासा करने में विफल रहा है और दूसरा पासपोर्ट हासिल करने के दौरान उसने उचित प्रक्रिया में हेराफेरी की है.
चोकसी की प्रत्यर्पण पर एंटीगुआ सरकार ने अपनाया न्यूट्रल रुख
एंटीगुआ सरकार ने न्यूट्रल रुख अपनाया है. एंटीगुआ ने संकेत दिया है कि वह बेल्जियम में भारतीय अधिकारियों की ओर से किए जा रहे प्रत्यर्पण का न तो समर्थन करेगा और न ही विरोध करेगा. एंटीगुआ के बाहर होने और अब मामला पूरी तरह से बेल्जियम के अधिकार क्षेत्र में आने के कारण, चोकसी के प्रत्यर्पण को सुरक्षित करने का रास्ता राजनीतिक रूप से कम संवेदनशील हो सकता है और कानूनी सहयोग और कागजी प्रक्रिया पर अधिक निर्भर हो सकता है.
बेल्जियम ने प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू करने से पहले की गहन जांच
ईडी का यह भी दावा है कि प्रत्यर्पण प्रक्रिया शुरू करने से पहले बेल्जियम में मेहुल चोकसी की गिरफ्तारी और प्रत्यर्पण से संबंधित सभी संभावित पहलुओं की गहन जांच की गई. पिछले साल जुलाई-अगस्त के आसपास चोकसी के बेल्जियम में होने का पता लगने के बाद ही इस मामले में नोडल अथॉरिटी CBI ने ED के साथ मिलकर आगे की कार्रवाई की.
मुंबई की एक अदालत की ओर से जारी गिरफ्तारी वारंट के आधार पर बेल्जियम के अधिकारियों को प्रत्यर्पण अनुरोध भेजा गया था. इसके बाद केंद्रीय एजेंसियों की एक टीम स्थानीय अधिकारियों से बातचीत करने और यह सुनिश्चित करने के लिए बेल्जियम रवाना हुई कि कोई कानूनी खामियां न हों, जैसे कि 2021 में डोमिनिका से चोकसी को वापस लाने के पिछले प्रयास में थीं.
मेहुल के वकील कर रहे प्रत्यर्पण और गिरफ्तारी को चुनौती देने की तैयारी
सूत्रों ने आगे यह भी बताया कि मेहुल चोकसी की लीगल टीम अब उसकी गिरफ्तारी और बेल्जियम में चल रही प्रत्यर्पण कार्यवाही दोनों को चुनौती देने की तैयारी कर रही है. उम्मीद है कि उनके वकील उनके खराब स्वास्थ्य और चल रहे कैंसर उपचार का हवाला देते हुए चिकित्सा आधार पर उनकी रिहाई की अपील दायर करेंगे. उनके अनुसार, डोमिनिका की अदालत ने पहले चोकसी को विशेष चिकित्सा देखभाल के लिए एंटीगुआ और बारबुडा लौटने की अनुमति दी थी और बेल्जियम में उनका वर्तमान प्रवास केवल एडवांस ट्रीटमेंट के लिए था – स्थानीय समुदाय के निवासी या सदस्य के रूप में नहीं.
चोकसी के बचाव में प्रत्यर्पण संधि के प्रावधानों को लागू करने की भी उम्मीद है, जिसके अनुसार कथित अपराध को दोनों देशों में अपराध के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए. इसके अतिरिक्त कानूनी चुनौती में मानवाधिकार संबंधी चिंताएं शामिल हो सकती हैं, जिसमें टीम यह तर्क दे सकती है कि भारत में जेल की स्थितियां अंतरराष्ट्रीय मानकों को पूरा नहीं करती हैं और इससे उनके स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है.