Maha kumbh 2025 Nadi Samvad organized on 20th January in Prayagraj ann
Maha Kumbh 2025: संगम नगरी प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हो रहे महाकुंभ में सिर्फ धर्म और आध्यात्म की गंगा ही नहीं बहेगी, बल्कि तमाम गंभीर मुद्दों पर चिंतन मनन कर लोगों को जागरूक करने की मुहिम भी छेड़ी जाएगी. इसी कड़ी में 20 जनवरी को महाकुंभ क्षेत्र में नदी संवाद कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा. नदियों को बचाने, उन्हें प्रदूषण से मुक्त करने और उनकी धारा को अविरल व निर्मल करने के मुद्दे पर पर्यावरण विदों और संत महात्माओं के साथ संवाद कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा.
इसके साथ ही महाकुंभ में आस्था की डुबकी लगाने के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को भी इस बात के लिए जागरूक किया जाएगा कि गंगा और यमुना समेत दूसरी नदियों का अस्तित्व बचाए रखने में हर किसी को अपना योगदान देना होगा. मोक्षदायिनी और जीवनदायिनी कही जाने वाली गंगा जैसी पवित्र नदियां नहीं बचेंगी तो भविष्य में शायद महाकुंभ जैसे धार्मिक और आध्यात्मिक आयोजन भी नहीं हो सकेंगे. लोग आस्था की डुबकी नहीं लगा सकेंगे और ना ही उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो सकेगी.
20 जनवरी को नदी संवाद कार्यक्रम
प्रयागराज महाकुंभ में 20 जनवरी को नदी संवाद का जो कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा, उसे पर्यावरण विद और संघ व बीजेपी के थिंक टैंक रहे केएन गोविंदाचार्य आयोजित कर रहे हैं. नदी संवाद के संयोजक जीवकांत झा, एटॉमिक एनर्जी के वैज्ञानिक अरुण कुमार तिवारी, पूर्व आईपीएस अफसर जुगल किशोर तिवारी, इलाहाबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डा० प्रमोद शर्मा, डा० प्रियंका श्रीवास्तव और अरुण सिंह के मुताबिक पिछले कुछ सालों में देश में तकरीबन साढ़े चार सौ नदियों का अस्तित्व खत्म हो गया. अगर नदियों को लेकर हम गंभीर नहीं हुई तो आने वाले दिनों में न सिर्फ नदियों के किनारे की सभ्यताएं कमजोर होती जाएगी बल्कि हम बूंद बूंद पानी के लिए भी तरसेंगे.
उनके मुताबिक महाकुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं को नदियों की अहमियत समझाई जाएगी और उन्हें यह बताया जाएगा कि नदियां और जल है, तभी हमारा कल है. जानकारी के मुताबिक नदी संवाद कार्यक्रम में न सिर्फ विशेषज्ञ और पर्यावरणविद शामिल होंगे बल्कि तमाम महामंडलेश्वरों और महाकुंभ में आए दूसरे संतो को भी इसमें बुलाया जाएगा. उनसे अपील की जाएगी कि वह अपने भक्तों और दूसरे श्रद्धालुओं से नदियों को लेकर उन्हें जागरूक करने का काम करें.
श्रद्धालुओं से भी यह गुहार लगाई जाएगी कि वह सिर्फ सरकार के भरोसे ही ना बैठे, बल्कि अपनी जिम्मेदारी को निभाएं. खुद आगे आए और दूसरे लोगों को जागरूक करें. नदियों को अगर साफ रखने में योगदान नहीं दे सकते तो कम से कम उनमें प्रदूषण ना फैलाएं.
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