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Lok Sabha Elections 2204 Impact Of Pm Narendra Modi And M Factor Who Benefits And Who Suffers Loss – Explainer : 2024 के रण में बदला M फैक्टर का मतलब, NDA या INDIA किसके आएगा काम?


2024 की चुनावी जंग पर M फैक्टर का रंग चढ़ा हुआ है. सच तो ये है कि इस M से निकले एक फैक्टर की धुरी पर ही पूरी चुनावी लड़ाई लड़ी जा रही है. और वो M है- मोदी. मोदी का M अगर इस चुनाव का सेंट्रल पॉइंट बना हुआ है, तो उसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि नरेंद्र मोदी पिछले 10 साल से लगातार देश के प्रधानमंत्री हैं. लगातार दो बार चुनाव जीतने और पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का रिकॉर्ड 48 साल बाद किसी ने बनाया है, तो वो पीएम मोदी हैं. इसीलिए बीजेपी और एनडीए के सारे उम्मीदवार प्रधानमंत्री मोदी के नाम पर अपनी चुनावी नैया पार लगाना चाहते हैं. दूसरी ओर विपक्ष को लगता है कि अबकी बार मोदी नाम का जादू नहीं चलेगा.

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मोदी फैक्टर सभी M फैक्टक की धुरी क्यों?

अबकी बार किसकी बनेगी सरकार? इस सवाल का जवाब 4 जून को मिलेगा, जब चुनाव के नतीजे आएंगे. लेकिन 18वीं लोकसभा के इस चुनाव में M फैक्टर ही यहां वहां, जहां तहां छाया हुआ है. मोदी अगर धुरी हैं, तो इस धुरी के चारों तरफ M फैक्टर ही मुद्दों के रूप में घूम रहे हैं. ये फैक्टर हैं- मंदिर, मुसलमान, मटन, मछली, मंगलसूत्र, महिला और महंगाई. 

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अगर मंदिर की बात करें, तो 22 जनवरी को पीएम नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में भव्य राम मंदिर राष्ट्र को समर्पित किया गया. तब ये लग रहा था कि राम मंदिर चुनावी मुद्दा जरूर बनेगा. यूं तो प्रभु श्रीराम भारत की मर्यादा के सर्वोत्तम प्रतीक पुरुष हैं, लेकिन मंदिर का निर्माण चुनावी घमासान में उतर ही आया.

पीएम नरेंद्र मोदी ने एक रैली में कहा था, “सपा-कांग्रेस वाले सरकार में आए, तो फिर से रामलला को टेंट में भेज देंगे. ये लोग राम मंदिर पर बुलडोजर चला देंगे. इन्हें योगी जी से ट्यूशन लेना चाहिए कि बुलडोजर कहां चलाना है और कहां नहीं.”

राम मंदिर के आंदोलन से BJP को मिली मजबूती

अयोध्या में राम मंदिर के आंदोलन से बीजेपी को मजबूत बनने का मौका मिला. मंदिर निर्माण बीजेपी का खास चुनावी मुद्दा रहा, जिसको सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने पूरा कर दिखाया. इससे 80% हिंदुओं में अपनी पैठ बढ़ाने में बीजेपी को मदद मिल सकती है.

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वैसे राम का नाम राष्ट्रीय चेतना से जुड़ा है. इसे हम अमेरिका की मशहूर मैगजीन ‘न्यूजवीक’ को दिए प्रधानमंत्री मोदी के इंटरव्यू से समझ सकते हैं. पीएम मोदी ने इस इंटरव्यू में एक सवाल के जवाब में कहा था, “भगवान राम के जीवन ने हमारी सभ्यता में विचारों और मूल्यों की रूपरेखा तय की है. उनका नाम हमारी पवित्र भूमि के हर कोने में गूंजता है. इसलिए 11-दिवसीय विशेष अनुष्ठान के दौरान मैंने उन स्थानों की तीर्थयात्रा की, जहां श्रीराम के पैरों के निशान हैं. जब मुझे समारोह का हिस्सा बनने के लिए कहा गया, तो मुझे पता था कि मैं देश के 140 करोड़ लोगों का प्रतिनिधित्व करूंगा; जिन्होंने रामलला की वापसी के लिए सदियों से धैर्यपूर्वक इंतजार किया है.”

अयोध्या के बाद खोले जा रहे काशी के पन्ने

भले ही राम मंदिर के सवाल पर हिंदू-मुस्लिम नैरेटिव बनाने की कोशिश होती है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने इसको 140 करोड़ लोगों यानी सारे हिंदुस्तानियों के आत्मगौरव से जोड़ा. लेकिन जब मामला 400 पार के दावे का हो, तो उसके लिए अयोध्या के बाद काशी के पन्ने भी चुनावी सभाओं में खोले जा रहे हैं. हाल ही में बीजेपी नेता और असम के सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने कहा कि अगर 400 पार का लक्ष्य पूरा हुआ, तो काशी में जहां ज्ञानवापी मस्जिद है, वहां भव्य मंदिर बनेगा.

मुसलमान भी बने चुनावी मुद्दा

M से मंदिर है, जो बन गया. M से ही मुसलमान भी है, जो जाने अनजाने चुनावी मुद्दा बन गया. पहले विरासत टैक्स (इनहेरिटेंस टैक्स) पर मचे घमासान और फिर कांग्रेस की तरफ से आरक्षण की सीमा बढ़ाने के ऐलान ने मुसलमानों को चुनावी विमर्श में ला खड़ा किया है. हाल ही में चुनावी रैली के दौरान पीएम मोदी ने मुसलमानों को लेकर दो बयान दिए. 

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21 अप्रैल को पीएम मोदी ने राजस्थान के बांसवाड़ा की रैली में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के एक पुराने भाषण का हवाला दिया और मुसलमानों पर टिप्पणी की. पीएम मोदी ने अपने भाषण में समुदाय विशेष के लिए ‘घुसपैठिए’ और ‘ज़्यादा बच्चे पैदा करने वाला’ जैसी बातें कहीं.

पीएम मोदी ने कहा था, “पहले जब उनकी सरकार थी तब उन्होंने कहा था कि देश की संपत्ति पर पहला अधिकार मुसलमानों का है, इसका मतलब ये संपत्ति इकट्ठा करके किसको बांटेंगे- जिनके ज़्यादा बच्चे हैं उनको बांटेंगे, घुसपैठियों को बांटेंगे. क्या आपकी मेहनत का पैसा घुसपैठियों को दिया जाएगा? आपको मंजूर है ये?” एक और रैली में पीएम मोदी ने कहा, “कांग्रेस आरक्षण छीनकर मुसलमानों को देना चाहती है.”

राष्ट्रीय स्तर पर OBC, SC और ST तबके को आरक्षण मिला हुआ है. मोदी सरकार में आर्थिक रूप से कमजोर तबके को भी आरक्षण दिया जाने लगा. खास बात ये है कि आरक्षण की परिधि में आने के लिए अलग अलग समुदाय अक्सर आंदोलन करते रहते हैं. ऐसे में मुसलमानों के लिए आरक्षण की बात को बीजेपी के लिए आरक्षण प्राप्त समुदायों को अपने पक्ष में एकजुट करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है. 

मटन-मछली का मुद्दा भी बना M फैक्टर 

मुस्लिम शब्द अक्सर वोटों के ध्रुवीकरण का सबब बन जाता है. उसमें सावन-नवरात्र में मटन-मछली का मुद्दा भी बहुत कुछ कह जाता है. चुनाव मुगलई तब हो गया, जब प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू के उधमपुर से सावन और नवरात्रि में मटन-मछली के वीडियो से मुगल सोच के तहत चिढ़ाने का आरोप लगाया. पीएम मोदी ने किसी का नाम नहीं लिया. लेकिन इसके पहले मटन खाते हुए तेजस्वी यादव का एक वीडियो आ चुका था. वहीं, सावन के महीने में लालू प्रसाद यादव के घर मटन बना, इसके वीडियो में राहुल गांधी मटन बनाना सीखते दिखे. बीजेपी ने इसे मुद्दा बना लिया. बीजेपी और विपक्ष की पार्टियों में मटन-मछली पर बहसबाजी भी हुई.

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M मतलब महिला और मंगलसूत्र फैक्टर भी

ऐसे भावनात्मक मुद्दों के बीच महिलाओं के हित का सवाल भी बड़ा मुद्दा बना. पश्चिम बंगाल के संदेशखाली की पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिलाने के साथ लखपति दीदी बनाने के वादे के बीच बात मंगलसूत्र तक भी पहुंच गई. कांग्रेस के घोषणापत्र को पीएम मोदी ने महिला और मंगलसूत्र की बहस में बदल दिया. अलीगढ़ की एक रैली में पीएम मोदी ने मंगलसूत्र को लेकर एक बयान दिया था. उन्होंने कहा था, “कांग्रेस आपकी संपत्ति लेकर सब लोगों में बांटना चाहती है. कांग्रेस महिलाओं के गहने और मंगलसूत्र लेकर पैसा ऐसे लोगों में बांट देगी जिनके अधिक बच्चे हैं, जो घुसपैठिए हैं.” 

लोकसभा की चुनावी लड़ाई में क्यों नहीं है इस M फैक्टर की चर्चा?  

चुनाव में कुछ मुद्दे भावनात्मक होते हैं, कुछ मुद्दे लोगों के आत्मगौरव से जुड़े होते हैं. जबकि कुछ मुद्दे उनकी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करते हैं. महंगाई लोगों की माली हालत से सीधा संबंध रखने वाला मुद्दा है, जिस पर चुनावी मौसम में बातें नहीं हो रही हैं. लोगों की जेब पर जो मसला सीधा चोट करता है, वो महंगाई है. इस चुनाव से ठीक पहले CSDS ने सर्वे किया था. इसमें पता चला कि बेरोजगारी और बढ़ती कीमतें मतदाताओं के लिए प्रमुख मुद्दे हैं. गांवों, कस्बों और शहरों में किए गए सर्वेक्षण में लोगों का मानना था कि महंगाई बहुत अहम चुनावी मुद्दा है. सर्वे में शामिल करीब 71 प्रतिशत लोगों ने माना कि चीजों की कीमतें बढ़ने से उनकी माली हालत खराब हुई है. ऐसे में चुनाव में M (महंगाई) फैक्टर पर चर्चा न होना, हैरान करता है.

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