Lok Sabha Election 2024 What Constitution Says For Muslim Reservation Controversy in Govt Job And Education
Muslim Reservation: लोकसभा चुनाव के बीच मुस्लिम आरक्षण को लेकर सियासत भी गरमा गई है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने पश्चिम बंगाल में ओबीसी कोटा के तहत मुसलमानों को दिए आरक्षण को रद्द कर दिया है. बीजेपी ने इसे मुद्दा बना लिया है, जबकि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कह है कि वह इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाएंगी. उधर, उत्तर प्रदेश में भी अब ओबीसी कोटे के अंदर मुस्लिम जातियों को मिलने वाले आरक्षण की समीक्षा पर विचार किया जा रहा है.
हालांकि, अब यहां सवाल उठ रहा है कि क्या इस पूरे मुद्दे का छठे और सातवें चरण में होने वाले चुनाव से कोई कनेक्शन है? क्या 80-20 वाली वोटबैंक की सियासत फिर करवट ले रही है? सबसे बड़ी बात ये है कि इन सारी बातों को यूपी का मुसलमान कैसे देख रहा है? ऐसे में आइए इन सभी सवालों के जवाब जानने की कोशिश करते हैं और समझते हैं कि मुस्लिम आरक्षण पर हमारा संविधान क्या कहता है?
मुस्लिम आरक्षण पर संविधान में क्या कहा गया?
भारतीय संविधान में समानता की बात की गई है, इसलिए देश में मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है. संविधान का आर्टिकल 341 और 1950 का प्रेसिडेंशियल ऑर्डर धार्मिक आधार पर आरक्षण की व्याख्या करता है. देश में जातियों के आधार पर मिलने वाले आरक्षण के तहत, अनूसचित जाति में सिर्फ हिंदू ही शामिल हो सकते हैं. मगर बाद में 1956 में सिख और 1990 में बौद्ध धर्म के लोगों को भी इसमें शामिल कर दिया गया. हालांकि, मुसलमान और ईसाई इस कैटेगरी में आरक्षण नहीं ले सकते हैं.
मुसलमानों को आरक्षण कैसे मिलता है?
दरअसल, केंद्र और राज्य स्तर पर मुस्लिमों की कई जातियों को ओबीसी लिस्ट में आरक्षण दिया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 16(4) के मुताबिक राज्य को पिछड़े वर्ग के नागरिकों के पक्ष में आरक्षण का प्रावधान करने में सक्षम बनाता है. इसी तरह अनुच्छेद 15(1) राज्य को नागरिकों के विरुद्ध धर्म और जाति के आधार पर भेदभाव करने से रोकता है. अनुच्छेद 16(1) अवसर की समानता प्रदान करता है और अनुच्छेद 15 (4) राज्य नागरिकों के किसी भी सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिए प्रावधान कर सकता है.
यहां गौर करने वाली बात ये है कि अब जिन मुस्लिम जातियों को ओबीसी कोटे में आरक्षण मिला है, उन्हें ये चीज इसलिए नहीं मिली कि वो मुसलमान थे, बल्कि उन्हें आरक्षण दिया गया, क्योंकि वे सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े थे. राज्य ने इन जातियों की समीक्षा की और आरक्षण दिया. हालांकि, अब फिर समीक्षा की बात से वोटर के कान खडे हो गए हैं.
सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में क्या है आरक्षण की व्यवस्था?
देश में सरकारी नौकरी और शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जातियों को 15 फीसदी आरक्षण दिया जाता है. अनुसूचित जनजातियों को 7.5 फीसदी और ओबीसी वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण मिलता है. बाद में आर्थिक तौर पर पिछड़ों को 10 फीसदी अलग से आरक्षण की व्यवस्था की गई. कुल 12 राज्य/केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां ओबीसी श्रेणी की केंद्रीय सूची के तहत मुसलमानों को आरक्षण दिया जाता है. मगर चूंकि राज्यों को ओबीसी की समीक्षा का अधिकार है. इस हिसाब से कुछ राज्यों में 27 फीसदी वाली लिमिट पार हो गई.
उदाहरण के लिए कर्नाटक में 32% ओबीसी कोटा के भीतर मुस्लिमों को 4% उप-कोटा मिला हुआ है. केरल में 30% ओबीसी कोटा में 12% मुस्लिम कोटा है. तमिलनाडु में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को 3.5% आरक्षण मिलता है. यूपी में 27 फीसदी ओबीसी कोटा के अंदर ही मुस्लिमों के लिए आरक्षण की व्यवस्था है.
क्यों हो रही है मुस्लिम आरक्षण पर सियासत?
दरअसल, बीजेपी नेताओं के मुस्लिम आरक्षण पर दिए बयान के बाद इस बात की चर्चा हो रही है कि क्या इस व्यवस्था पर समीक्षा की जाएगी. यूपी के मुस्लिमों के मन भी आरक्षण की समीक्षा की बात घूम रही है. एक सवाल तो ये भी है कि यूपी में मुस्लिम आरक्षण की समीक्षा पर चर्चा इस वक्त ही क्यों हो रही है. इसका एक जवाब है, छठे और सांतवें चरण की वो सीटें, जिनमें मुस्लिम वोटर की संख्या ठीकठाक है
असल में छठे और सातवें चरण में बाकी राज्यों के अलावा बिहार यूपी और पश्चिम बंगाल की 60 सीट पर चुनाव होना है. इनमें बिहार की 16, यूपी की 27 और बंगाल की 17 सीट है. गौर करने वाली बात ये है कि इन 60 में से 16 सीट पर मुस्लिम आबादी 20 फीसदी है, यानी हार जीत का फैक्टर मुसलमान बन सकते हैं. हो सकता है इसीलिए शायद नेता अब आरक्षण, संविधान, हिंदू-मुसलमान जैसी बातों पर फोकस ज्यादा कर रहे हैं, ताकि अपने अपने वोट बैंक को क्लियर मैसेज दिया जा सके.
मुस्लिमों के लिए 10 फीसदी आरक्षण की हुई थी सिफारिश
वैसे जहां तक मुस्लिम आरक्षण की बात आती है तो कई बार सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट का जिक्र भी होता है. इनमें कहा गया था कि मुस्लिम कम्युनिटी भी बैकवर्ड है, जबकि रंगनाथ मिश्रा कमेटी ने तो अल्पसंख्यकों के लिए 15 फीसदी रिजर्वेशन देने की सिफारिश की थी, जिसमें 10 फीसदी मुस्लिमों के लिए था. मगर सच यही है कि रिपोर्ट बनती है और बाद में वो सियासत के काम आती है. इस बार भी चुनाव में यही दिखाई दे रहा है.
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