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Kurmi unity in Bihar politics raised big question who after Nitish Kumar Nishant kumar demanded ann


Kurmi Unity In Bihar Politics: बिहार की राजनीति में जातीय समीकरणों का हमेशा से प्रभाव रहा है और पटना के मिलर स्कूल मैदान में आयोजित ‘कुर्मी एकता रैली’ इस बात की तस्दीक करती है कि कुर्मी समाज अब भी अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर सजग और सक्रिय है. सिर्फ सजग ही नहीं है बल्कि अपने समाज के नेता के लिए बढ़ चढ़कर आगे आने की बात तक कह दी है. 

 

नीतीश कुमार के नाम पर बुलाई गई इस रैली का संचालन बीजेपी के अमनौर विधानसभा क्षेत्र के विधायक कृष्ण कुमार ‘मंटू’ पटेल कर रहे थे. हालांकि नीतीश कुमार इस कार्यक्रम में मौजूद नहीं थे, लेकिन पोस्टरों और नारों में उनकी छवि छाई रही, यह संकेत देता हुआ कि बिहार की कुर्मी राजनीति का केंद्र अब भी वही हैं, लेकिन क्या यह एकता नीतीश कुमार के समर्थन में थी, या उनके बाद नए नेतृत्व की तलाश का संकेत? 

 

 ‘हमारी एकता हमारी ताकत, नीतीश हमारे विचार’ 

 

 रैली के आयोजक और बीजेपी विधायक कृष्ण कुमार ‘मंटू’ पटेल ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में कहा, ‘हम अपने समाज के लोगों को एकजुट करना चाहते हैं. हमारा समाज पढ़-लिखकर आगे बढ़े, शिक्षित बने और प्रगति करे’ उन्होंने कुर्मी समाज की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर बात करते हुए कहा, “हम सरदार पटेल के वंशज हैं. एकता हमारे खून में है. हम कभी अलग-अलग नहीं बटेंगे. जिस तरह तलवार से देश जीते, उसी तरह हम भी संगठित रहकर आगे बढ़ेंगे.” 

 

नीतीश कुमार को लेकर उन्होंने बड़ा बयान देते हुए कहा, ‘नीतीश कुमार सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक विचारधारा हैं. हमें उसी विचारधारा को आगे लाना है. नीतीश जी मुख्यमंत्री बने, तभी मुझे विधायक बनने का अवसर मिला. हमारे समाज के दस विधायक, मुखिया बने. नीतीश ने जो रास्ता बनाया. उसी को हम आगे ला रहे हैं.’

 

नीतीश कुमार ने कुर्मी समाज को एक पहचान दी

 

अपनी राजनीतिक स्थिति को लेकर भी वे आत्मविश्वास से भरे नजर आए. कहा “मैं एनडीए का विधायक हूं. एकता बनी रहेगी, फिर से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनेंगे. मेरी सीट पक्की है, मैं 2010 से विधायक हूं.” नीतीश कुमार की विरासत और नया नेतृत्व यह कोई रहस्य नहीं है कि नीतीश कुमार बिहार के सबसे प्रभावशाली कुर्मी नेता रहे हैं.

 

उन्होंने 1994 में कुर्मी चेतना रैली से अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराया था और उसके कुछ वर्षों बाद ही मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे. लेकिन अब जब उनकी उम्र और सक्रियता को लेकर सवाल उठ रहे हैं, तो क्या कुर्मी समाज उनके उत्तराधिकारी की तलाश कर रहा है? 

 

रैली में यह बात खुलकर सामने आई कि नीतीश कुमार ने कुर्मी समाज को एक पहचान दी, लेकिन अब वक्त नए नेतृत्व का है. इस दौरान उनके बेटे निशांत कुमार का नाम भी आगे आया, हालांकि, रैली में शामिल कुछ लोगों ने स्पष्ट कहा कि कुर्मी समाज के नेतृत्व के लिए केवल परिवारवाद पर निर्भर नहीं रहना चाहिए.

 

 नीतीश कुमार के बेटे ही क्यों, कोई और क्यों नहीं?

 

राजनीति में वंशवाद को लेकर हमेशा बहस होती रही है. जब रैली में मौजूद लोगों से पूछा गया कि क्या कुर्मी समाज निशांत कुमार को नेता के रूप में देखता है, तो जवाब अलग-अलग मिला. कुछ पक्ष में थे कि निशांत आए राजनीति में जबकि कुछ ने इससे अलग राय रखी. कुछ लोगों ने कहा, “अगर किसान का बेटा किसान बन सकता है, नाई का बेटा नाई बन सकता है, तो मुख्यमंत्री का बेटा मुख्यमंत्री क्यों नहीं? लेकिन वहीं, कुछ ने यह भी कहा कि नेतृत्व केवल वंश से तय नहीं होना चाहिए, बल्कि योग्यता से आना चाहिए.

 

यह बयान दो चीज़ों की ओर इशारा करता है-1. नीतीश कुमार की विरासत को कुर्मी समाज संजोकर रखना चाहता है. 2. समाज में नया नेतृत्व तलाशने की इच्छा भी है.  बिहार में 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं और कुर्मी एकता रैली को एक राजनीतिक संकेत के रूप में देखा जा रहा है. नीतीश कुमार अब भी कुर्मी समाज के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन उनके उत्तराधिकारी को लेकर बहस तेज़ हो गई है.

 

 राजनीतिक संकेत और 2025 के चुनावी समीकरण 

 

कुर्मी समाज ने बिहार की राजनीति में हमेशा एक निर्णायक भूमिका निभाई है. नीतीश कुमार की सफलता ने इसे और मजबूत किया, लेकिन अब जब उनके भविष्य को लेकर सवाल उठने लगे हैं, तो क्या कुर्मी समाज एक नए नेतृत्व के लिए तैयार है? क्या यह रैली सिर्फ एक शक्ति प्रदर्शन थी, या नए नेता की खोज का पहला कदम? आने वाले समय में यह स्पष्ट होगा कि नीतीश कुमार इस चुनौती का सामना कैसे करते हैं और क्या जेडीयू कुर्मी समाज को एक नया नेतृत्व देने के लिए तैयार है.

 



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