Katchatheevu : Why Did The Sri Lankan Island Come Into The Center Of Politics Before The Lok Sabha Elections? – लोकसभा चुनाव से पहले राजनीति के केंद्र में क्यों आया श्रीलंकाई द्वीप कच्चातिवु?
उन्होंने तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष के अन्नामलाई को आरटीआई से मिले जवाब पर आधारित टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट पोस्ट करते हुए कहा, “भारत की एकता, अखंडता और हितों को कमजोर करना कांग्रेस का 75 साल से काम करने का तरीका रहा है.”
बाद में उन्होंने उत्तर प्रदेश में भाजपा के चुनाव अभियान का शंखनाद करते हुए मेरठ की रैली में इस मामले को उठाया और इसे श्रीलंकाई बलों द्वारा तमिल मछुआरों को पकड़ने और उनकी नौकाओं को जब्त करने से जोड़ा.
अन्नामलाई की आरटीआई में द्वीप को सौंपने के इंदिरा गांधी सरकार के फैसले को लेकर डिटेल्स मांगी गई थी, जिसे लेकर हमेशा से ही तमिलनाडु में असंतोष रहा है. कांग्रेस के राज्य की सत्तारूढ़ DMK का सहयोगी होने के कारण भाजपा द्रविड़ राजनीति के प्रभुत्व वाले राज्य में राजनीतिक बढ़त हासिल करने की उम्मीद कर रही है.
कच्चातिवु को लेकर क्यों है विवाद?
कच्चातिवु, रामेश्वरम के नजदीक भारतीय तट से करीब 33 किमी की दूरी पर है. यह ब्रिटिश काल से ही भारत और श्रीलंका के बीच विवादित क्षेत्र रहा है. उस वक्त दोनों ही देश ब्रिटिश उपनिवेश थे. अंग्रेजों ने रामनाथपुरम की रामनाथ जमींदारी के पारंपरिक दावों का हवाला देते हुए इसे मद्रास प्रेसीडेंसी से जोड़ा था. हालांकि आजादी के बाद द्वीप के आसपास मछली पकड़ने के अधिकार को लेकर विवाद छिड़ गया था.
यह निर्जन ज्वालामुखी द्वीप 1.6 किमी लंबा और करीब 300 मीटर चौड़ा है. उस वक्त इसका रणनीतिक महत्व बहुत कम माना गया. हालांकि पिछले दशकों में चीन के श्रीलंका पर बढ़ते प्रभाव के कारण स्थिति बदल गई है.
कच्चातिवु तमिलनाडु के लिए क्यों है महत्वपूर्ण?
भारतीय मछुआरे जो इस क्षेत्र में जाते हैं और श्रीलंका के अधिकारियों की कार्रवाई का सामना करते हैं, उनमें से ज्यादातर तमिलनाडु के हैं. 1974 में तमिलनाडु पर शासन करने वाली DMK का दावा है कि कांग्रेस सरकार ने श्रीलंका के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने से पहले उसके विचारों पर ध्यान नहीं दिया था. पार्टी ने उस वक्त कई विरोध प्रदर्शन किए थे.
जे जयललिता के नेतृत्व वाली सरकार ने नियमित रूप से इस मुद्दे को उठाया और यहां तक कि इस मामले को अदालत तक भी लेकर गई.
पिछले साल श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंघे की भारत यात्रा से पूर्व तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक पत्र लिखा था, जिसमें उन्होंने इस मामले को लेकर चर्चा करने के लिए कहा था.
श्रीलंका के अधिकारियों द्वारा कई मछुआरों को गिरफ्तार किए जाने के बाद भी उन्होंने पीएम मोदी को पत्र लिखा था.
स्टालिन ने फरवरी में लिखा, “तमिल मछुआरों ने पारंपरिक रूप से जिस मछली पकड़ने के पानी पर पीढ़ियों से भरोसा किया वह तेजी से प्रतिबंधित होता जा रहा है, जिसने इन समुदायों की आर्थिक स्थिरता पर असर डाला है और उनकी आजीविका को बनाए रखना मुश्किल हो रहा है. इससे क्षेत्र के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को भी खतरा है जो मछली पकड़ने के उद्योग के इर्द-गिर्द घूमता है.”
गिरफ्तारियों की संख्या बढ़ने का दावा करते हुए उन्होंने कहा, “2023 के दौरान श्रीलंकाई नौसेना ने 243 मछुआरों को गिरफ्तार किया और 37 नौकाओं को जब्त कर लिया. हालांकि पिछले 28 दिनों में छह घटनाओं में 88 मछुआरों और 12 नौकाओं को गिरफ्तार किया गया.”
PM की टिप्पणी के बाद BJP-कांग्रेस आमने-सामने
पीएम मोदी की टिप्पणी के बाद बीजेपी और कांग्रेस के नेता कच्चातिवु को लेकर आमने-सामने हैं. डीएमके के वरिष्ठ नेता आरएस भारती ने कहा कि प्रधानमंत्री के पास दिखाने के लिए कोई उपलब्धि नहीं है और वह केवल झूठ फैला रहे हैं. यदि प्रधानमंत्री मोदी कच्चातिवु को लेकर उत्सुक होते तो अपने 10 साल के कार्यकाल में उसे पुन: हासिल कर सकते थे. भारती ने कहा, “उन्होंने कच्चातिवु का मुद्दा क्यों नहीं उठाया?”
इस तर्क का समर्थन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने भी किया है. खरगे ने कहा कि कच्चातिवु द्वीप 1974 में एक मैत्रीपूर्ण समझौते के तहत श्रीलंका को दिया गया था. उन्होंने कहा कि भाजपा नेतृत्व वाली सरकार ने भी सीमा क्षेत्रों के आदान-प्रदान पर बांग्लादेश के प्रति इसी तरह का “मैत्रीपूर्ण कदम” उठाया था.
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