Karnataka High Court reduces life sentence to 10 years jail in POCSO case
कर्नाटक हाईकोर्ट ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) कानून के एक मामले में दोषी की सजा उम्रकैद से घटाकर 10 साल कारावास कर दी और जोर देकर कहा कि अधिकतम सजा देने के लिए उचित कारण होना बेहद जरूरी है. जस्टिस श्रीनिवास हरीश कुमार और जस्टिस सीएम जोशी की खंडपीठ ने चिकमगलुरु के रहने वाले 27 वर्षीय दोषी की अपील को आंशिक रूप से मंजूर कर लिया. हालांकि, अदालत ने उसकी जुर्माना राशि को पांच हजार रुपये से बढ़ाकर 25 हजार रुपये कर दिया.
जून 2016 में दोषी ने अपने पड़ोस में रहने वाली नाबालिग लड़की से दोस्ती कर उसका बार-बार यौन उत्पीड़न किया. लड़की की मां ने दिसंबर 2016 में उस समय शिकायत दर्ज कराई, जब उन्हें पता चला कि उनकी बेटी गर्भवती हो गई है. डीएनए जांच में आरोपी के जैविक पिता होने की पुष्टि हुई. पुलिस ने जांच के बाद प्राथमिकी दर्ज की और आरोपपत्र दाखिल किया.
चिकमगलुरु शहर की एक विशेष अदालत ने 11 जून, 2018 को आरोपी को दोषी करार देते हुए पॉक्सो अधिनियम की धारा छह के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई और उस पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लगाया. दोषी ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती देते हुए दलील दी कि लड़की की उम्र उचित दस्तावेजों के साथ साबित नहीं की गई.
खंडपीठ ने मामले की समीक्षा करने के बाद पाया कि मौखिक गवाही से लड़की की सहमति का पता चलता है हालांकि घटना के समय उसकी वास्तविक आयु 12 वर्ष होने के कारण यह कानूनी रूप से अप्रासंगिक है. खंडपीठ ने कहा कि सहमति होना पॉक्सो अधिनियम की धारा छह के तहत अधिकतम सजा के प्रावधान का विरोध करता है.
खंडपीठ ने कहा कि इस कारण यह निष्कर्ष निकलता है कि विशेष अदालत के पास अधिकतम आजीवन कारावास की सजा देने के लिए पर्याप्त कारण नहीं हैं. खंडपीठ के मुताबिक, अपराध की तिथि पर लागू कानून के अनुसार पॉक्सो अधिनियम की धारा छह के तहत न्यूनतम 10 वर्ष के सश्रम कारावास और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है.
कोर्ट ने फैसला सुनाया कि अधिकतम सजा देने के लिए वैध कारणों की आवश्यकता होती है, जो विशेष अदालत के फैसले में अनुपस्थित है. नतीजतन, अदालत ने अपने हालिया आदेश में सजा को संशोधित कर 10 वर्ष के कारावास में बदल दिया.
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