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Kanpur News Today: सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को समाज आखिरी छोर पर खड़े व्यक्ति तक पहुंचाने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. उन्हीं में से एक ‘प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र’ हैं. इसका उद्देश्य गरीबों को सस्ती दवाएं उपलब्ध कराना है. जन औषधि केंद्र पर दवाओं पर 90 फीसदी छूट दी जाती है. 

यह छूट उन मरीजों के लिए के संजीवनी का काम करती है, लेकिन इसके उलट कानपुर शहर के सबसे बड़े राजकीय हार्ट सेंटर कार्डियोलॉजी में संचालित होने वाले जन औषधि केंद्र पर ताला पड़ गया है. जिससे मरीज सस्ती और किफायती दवाओं से महरूम हैं. इसकी वजह से वह निजी मेडिकल स्टोर से महंगे दामों पर दवा खरीदने को मजबूर हैं. 

दस जिलों से आते हैं मरीज
कानपुर के हृदय रोग संस्थान में वैसे तो जिले से सटे हुए लगभग दस जनपदों के मरीज इलाज के लिए यहां आते हैं. वह कम कीमत में गुणवत्तापूर्ण इलाज के लिए कई सौ किलोमीटर का सफर तय कर यहां पहुंचते हैं. हालांकि यहां पर डॉक्टर बेहतर इलाज और बचाव के लिए सलाह भी देते हैं, लेकिन इलाज के दौरान मरीजों को जिन दवाओं की जरूरत है वह नहीं मिल पा रही हैं.

‘प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र’ पर दवाएं ना मिलने से मरीजों के तीमारदार परेशान हैं. मजबूरी में उन्हें दवाएं अस्पताल के बाहर संचालित होने वाले निजी मेडिकल स्टोर्स से महंगी कीमतों पर खरीदना पड़ता है. 

केंद्र सरकार और सूबे की योगी सरकार लगातार जन- जन तक बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने का दावा कर रही है. इन दावों को बावजूद हार्ट सेंटर पर किफायती दामों पर मिलने वाली दवाओं का सेंटर बंद हो चुका है. बीते शुरू हुई इस सेवा पर अब ग्रहण लग गया है. 

‘केंद्र का नहीं हुआ टेंडर’
कार्डियोलॉजी के उपमुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर जुगेंद्र सिंह ने बताया कि इस सेवा के लिए टेंडर प्रक्रिया होती है, लेकिन इस बार कोई भी टेंडर नहीं हुआ. जिसकी वजह से इस औषधि केंद्र को बंद करना पड़ा. 

दूसरी तरफ सरकारी संस्थान में चल रहे जन औषधि केंद्र के बंद होने पर विभागीय अधिकारियों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है. अधिकारी इस बात से बेखबर हैं कि गरीब और आर्थिक रुप से कमजोर वर्ग के मरीजों को निजी  मेडिकल स्टोर से दवाएं खरीदने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है.  

‘लापरवही पैदा कर रही संदेह’
उपमुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर जुगेंद्र सिंह ने स्वीकार किया कि इस सेवा को शुरू करने के लिए शासन से दोबारा निवेदन किया जा सकता है, लेकिन यह लापरवाही संदेह पैदा करती है. कहीं इसके पीछे कमीशनखोरी का कालाबाजारी तो जिम्मेदार नहीं है, जिसकी वजह से औषधि केंद्रों पर ताले पड़ गए हैं.

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