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Kanpur Famous Anandeshwar Mahadev Bhasm Arti type on Ujjain Mahakal ann


Kanpur News: द्वादश ज्योतिर्लिंग में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भस्म आरती से बाबा महाकाल की पूजा ब्रह्ममुहुर्त में शुरू होती है. अब छोटी काशी कहे जाने वाले कानपुर के आनंदेश्वर शिव मंदिर में भी यहां आने वाले श्रद्धालुओं को भगवान भोलेनाथ की भस्म आरती का सौभाग्य मिल सकेगा. भस्म आरती को लेकर जूना अखाड़ा और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की ओर से निर्देश दिए गए हैं. अब इस नई व्यवस्था के निर्देश मिलने के बाद पहली बार भस्म आरती सोमवार को शुरू की गई.

जूना अखाड़े के मीडिया प्रभारी अंश कुमार ने बताया कि कानपुर के परमट धाम के आनंदेश्वर मंदिर में अब से भस्म आरती का आयोजन किया जाएगा. जो श्रद्धालु रोजाना यहां भगवान भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं उन्हें भस्म आरती देखने का सौभाग्य मिलेगा. खास बात यह है कि इस आरती आयोजन उज्जैन में बाबा महाकाल की भस्म आरती की तरह होगा. 

बाबा का श्रृंगार कर की गई भस्म आरती
इस भस्म आरती का आयोजन कानपुर में होने वाली 7 दिन तक होली के दौरान बाबा के रुद्र अवतार के रूप में तैयार कर उन्हें गुलाल ,रंग लगाकर उसके बाद श्मशान से चिता की राख से शृंगार कर आरती की गई. आरती में शामिल हजारों लोगों ने इस दृश्य को देखकर आनंद की अनुभूति की, हर ओर जयघोष सुनाई दे रहा था.

इस भस्म आरती के दौरान श्मशान में जलने वाली चिता साथ गाय के गोबर, पीपल पलाश ,शमी और बेरी के पेड़ की लकड़ियों को जलाकर भस्म तैयार की गई, वहीं इस बात की भी मान्यता है कि शिव की भस्म आरती में जिस चिता की राख प्रयोग की जाती है उस शख्स को मोक्ष प्राप्त होता है.

मंदिर को लेकर ये है पौराणिक कथा
कानपुर के आनंदेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है. मंदिर में स्थापित शिवलिंग के बारे में बताया जाता है कि महाभारत काल के समय के दौरान एक गाय रोजाना चरने के लिए जाया करती थी, लेकिन वापस आने से पहले वो अपना सारा दूध एक स्थान गिरा गिरा देती थी.

इससे गाय का मालिक बहुत परेशान था. एक दिन जब उसने इस बात की जानकारी करने के लिए गया का पीछा किया तो पता चला कि गाय स्वयं अपना पूरा दूध एक स्थान पर गिरा देती है. इस पर गांव के लोगों ने वहां के राजा के साथ मिलकर खुदाई कराई. खुदाई में वहां एक शिवलिंग निकला. खास बात ये है कि जो गाय अपना सारा दूध शिवलिंग वाले स्थान पर गिराती थी उसका नाम आनंदी था. इसी के चलते इस मंदिर का नाम आनंदेश्वर रखा गया.

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