Justice Yashwant Varma Cash Recovery Four advocates file plea seeks FIR in Supreme Court ann
Justice Yashwant Varma: सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने के लिए एक याचिका दायर हुई है. मुंबई के रहने वाले 4 वकीलों की याचिका में कहा गया है कि जज के घर पर बड़ी मात्रा में पैसा मिलना एक आपराधिक मामला है. इसके लिए 3 जजों की जांच कमेटी बनाने की बजाय पुलिस समेत दूसरी एजेंसियों को जांच के लिए कहना चाहिए था.
वकील मैथ्यूज नेदुंपरा, हेमाली कुर्ने, राजेश आद्रेकर और मनीषा मेहता की याचिका में 1991 में के वीरास्वामी मामले में आए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का भी विरोध किया गया है. उस फैसले में कहा गया था कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ एफआईआर से पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की सहमति जरूरी है. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि संविधान में सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यपालों को मुकदमे से छूट दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से जजों को आम नागरिकों से अलग विशेष दर्जा दे दिया.
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस, दिल्ली फायर डिपार्टमेंट, ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग को भी पार्टी बनाया गया है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट क चीफ जस्टिस संजीव खन्ना की तरफ से गठित 3 सदस्यीय जांच कमेटी के सदस्यों जस्टिस शील नागू, जस्टिस जी एस संधावालिया और जस्टिस अनु शिवरामन को भी पक्ष बनाया गया है.
याचिका में यह कहा गया है कि 14 मार्च को जज के घर में जली हुई नकदी मिलने के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी और गिरफ्तारी भी होनी चाहिए थी, लेकिन अब जजों की जांच कमेटी को मामला सौंप दिया गया है, जो कि सही नहीं है. जिस तरह आम नागरिकों के खिलाफ आपराधिक मामले में एफआईआर दर्ज होती है, वैसा ही इस मामले में भी होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट 1991 के वीरास्वामी फैसले में की गई टिप्पणी को निरस्त करे और जांच एजेंसियों को केस दर्ज कर जांच के लिए कहे.
याचिका में दावा किया गया है कि जजों को अलग दर्जा दे देने के चलते कुछ मौकों पर पॉक्सो जैसे गंभीर मामलों में भी वह एफआईआर से बच गए हैं. नेशनल लॉयर्स कैंपेन फॉर ज्यूडिशियल ट्रांसपेरेंसी एंड रिफॉर्म्स नाम की संस्था से जुड़े इन याचिकाकर्ताओं ने याद दिलाया है कि जजों के भ्रष्टाचार और दूसरे गलत आचरण की जांच के लिए 2010 में संसद में ज्यूडिशियल स्टैंडर्ड्स एंड अकाउंटेबिलिटी बिल लाया गया था, लेकिन वह कानून नहीं बन सका.