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Justice BV Nagaratna: रिश्तों और अनुभवों की बुनावट से बनती हमारी जिंदगी में कभी-कभी ऐसे किस्से जन्म लेते हैं, जो इतिहास की किताबों में दर्ज नहीं होते लेकिन यादों के पन्नों पर चमकते रहते हैं. यह कहानी दो ऐसे यात्रियों की है, जो समय की एक ट्रेन में हमसफर बने और दशकों बाद अलग-अलग पड़ावों पर अपनी बुलंदियों के शिखर पर खड़े होकर एक-दूसरे को सलाम किया. एक बने देश के राष्ट्रपति, तो दूसरे देश के सबसे बड़े न्यायाधीश.
सुप्रीम कोर्ट की न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अपने पिता, पूर्व मुख्य न्यायाधीश ईएस वेंकटरमैया की याद में इस दिलचस्प घटना को साझा किया. इसमें उन्होंने बताया कि कैसे एक सफर में मिले दो लोग देश के शीर्ष पदों पर पहुंच जाते हैं.
न्यायमूर्ति नागरत्ना की आंखें पिता की याद में भर आई
सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश, न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने एक कार्यक्रम के दौरान अपने माता-पिता को याद करते हुए भावुक अंदाज में उनकी तारीफ की. वह राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, बेंगलुरु में अपने पिता और भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ईएस वेंकटरमैया की जन्म शताब्दी पर आयोजित एक व्याख्यान में बोल रही थीं. इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा ने भी अपनी बात रखी.
भारत की पहली महिला मुख्य न्यायाधीश बनने की कतार में खड़ी न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि उनके पिता की बहुआयामी शख्सियत ने उन्हें जीवन के कई अहम सबक सिखाए. उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा उनके मार्गदर्शन में कानून की छात्रा के रूप में खुद को देखा. मैंने उनके व्यक्तित्व में वह मजबूती देखी, जिसने मुझे यह विश्वास दिलाया कि एक अच्छी लड़ाई लड़ना सबसे संतोषजनक होता है.”
सुनाया एक दिलचस्प किस्सा
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अपने पिता के न्यायाधीश बनने पर उनकी एक बात को भी साझा किया. उन्होंने कहा, “एक न्यायाधीश हमेशा परीक्षा में रहता है और मैं आशा करती हूं कि अपने कार्यकाल के अंत में मैं सम्मानपूर्वक इस परीक्षा में पास होऊं.”
इसके अलावा, उन्होंने अपने पिता का सुनाया गया एक दिलचस्प किस्सा भी सुनाया. यह किस्सा दो वकीलों से जुड़ा था, जिनमें से एक भारत के राष्ट्रपति बने और दूसरा भारत के मुख्य न्यायाधीश.
ट्रेन में हुई दोस्ती का ऐतिहासिक मुकाम
दरअसल 1946 में नागपुर में ऑल इंडिया लॉयर्स कॉन्फ्रेंस के लिए ईएस वेंकटरमैया और श्री आर वेकेंटरमण ट्रेन से यात्रा कर रहे थे. तब दोनों की मुलाकात हुई थी. न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बताया कि 1946 में नागपुर जाने के लिए बेंगलुरु से मद्रास (अब चेन्नई) होते हुए ग्रैंड ट्रंक एक्सप्रेस से सफर किया जाता था. इस सफर में कई वकीलों के बीच दोस्ती हो जाती थी. इसके 43 साल बाद जून 1989 में राष्ट्रपति भवन के अशोक हॉल में उन्हीं वकीलों में से एक श्री आर वेंकटरमन राष्ट्रपति के खड़े थे और दूसरे वकील न्यायमूर्ति ईएस वेंकटरमैया भारत के मुख्य न्यायाधीश के तौर शपथ लेने पहुंचे.
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने बताया कि शपथ ग्रहण के बाद उनके पिता न्यायमूर्ति ईएस वेंकटरमैया ने जब यह वाकया राष्ट्रपति वेंकटरमन को बताया, तो उन्होंने भी उस सफर को याद किया.
मां की भूमिका को सराहा
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने अपनी मां श्रीमती पद्मा की भूमिका को भी भावुक होकर याद किया. उन्होंने कहा, “मेरी मां ने जल्दी ही समझ लिया था कि मेरे पिता का असली जुनून क्या है और उन्होंने अपने हर सपने को पूरा करने में उनका साथ दिया. उन्होंने यह भी समझा कि एक ईमानदार और मेहनती न्यायाधीश बनने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है. उनकी व्यावहारिकता और धैर्य के लिए वे जानी जाती थीं.”
कार्यक्रम के दौरान जब उन्होंने अपनी मां का जिक्र किया, तो वह अपनी भावनाओं पर काबू नहीं रख सकीं और उन्हें आखों से आंसू बहने लगे.
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