Judicial Activism Is Like A Peacemaker And Judicial Excesses Are Like Trespassers: Former CJI Ranjan Gogoi – न्यायिक सक्रियता शांतिदूत और न्यायिक अतिरेक अतिचारी के समान : पूर्व CJI रंजन गोगोई
उन्होंने कहा, ‘‘बदलाव के लिए कब उत्प्रेरक के तौर पर कार्य करना चाहिए और कब यथास्थिति बनाए रखना है, इसका चयन न्यायपालिका की अपार जिम्मेदारी को रेखांकित करता है. इस संदर्भ में ‘न्यायिक सक्रियता’ और ‘न्यायिक अतिरेक’ के बीच अंतर काफी महत्वपूर्ण हो जाता है.”
जस्टिस रंजन गोगोई गुवाहाटी हाईकोर्ट के 76वें स्थापना दिवस पर मुख्य वक्ता के रूप में बोल रहे थे.
राज्यसभा सदस्य जस्टिस गोगोई ने कहा, ‘‘न्यायिक सक्रियता, न्यायिक अतिरेक के समान नहीं है. पहला शांतिदूत है तो दूसरा एक अतिचारी है.”
उन्होंने कहा कि पर्याप्त संसाधनों और कर्मियों से संपन्न एक कार्यात्मक न्यायपालिका अब विलासिता नहीं, बल्कि राष्ट्र के निरंतर विकास के लिए एक अनिवार्यता है.
पूर्व सीजेआई ने कहा कि न्यायिक संस्थाएं केवल ईंटों और गारे से नहीं बनी हैं, बल्कि ये आशा के गलियारे हैं.
उन्होंने कहा कि ‘साहसी’ न्यायिक सक्रियता अपने साथ यह जोखिम लेकर आती है कि फैसले भले ही नेक इरादे से किए गए हों, कभी-कभी अनपेक्षित परिणामों की ओर ले जाते हैं, जिससे कानूनी निश्चितता का पानी गंदा हो जाता है.
उन्होंने कहा कि जनहित याचिका (PIL) के आगमन से कानूनी परिदृश्य में एक क्रांतिकारी बदलाव आया है,उन्होंने कहा, “न्यायपालिका को विवादों के निष्क्रिय मध्यस्थ से सामाजिक परिवर्तन के लिए एक सक्रिय शक्ति में बदल दिया है और कभी-कभी राजनीतिक जीवन और मूल्यों में भी विवादास्पद बदलाव लाए हैं.”
हालांकि पूर्व सीजेआई ने आगाह किया कि जनहित याचिका भी दोधारी तलवार की तरह है. उन्होंने कहा, “एक तरफ पीआईएल पर्यावरण संरक्षण, मानवाधिकार और सरकारी जवाबदेही सहित विभिन्न क्षेत्रों में ऐतिहासिक बदलाव लाने में सहायक रही है. दूसरी तरफ पीआईएल द्वारा प्रदान की गई व्यापक छूट के कारण कभी-कभी जो देखा जा सकता है वह न्यायिक अतिरेक के रूप में है. अदालतें पारंपरिक रूप से विधायी और कार्यकारी शाखाओं के लिए आरक्षित डोमेन का अतिक्रमण कर रही हैं और राजनीतिक नैतिकता को खत्म कर रही हैं.”