Joint action Committee on Delimitation meeting in chennai kerela telangana karnataka and punjab CM
Delimitation: परिसीमन का जो मुद्दा तमिलनाडु से उठाया गया, अब वह देश के कई राज्यों तक पहुंच गया है. परिसीमन से जिन-जिन राज्यों का संसद में प्रतिनिधित्व कम होने की संभावना है, वह राज्य अब तमिलनाडु सीएम स्टालिन की इस लड़ाई में शामिल हो गए हैं.
अब तक इस मुद्दे पर केवल बयान आ रहे थे लेकिन आज से एक्शन भी शुरू होने वाला है. दरअसल, आज चेन्नई में परिसीमन के मुद्दे पर पहली बड़ी बैठक होनी है. इस बैठक में तमिलनाडु सरकार ने 7 राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आमंत्रित किया था. इनमें से तीन राज्यों के मुख्यमंत्री, एक राज्य के डिप्टी सीएम और बाकी राज्यों से प्रतिनिधि इस बड़ी बैठक में शामिल होने वाले हैं.
बैठक में कौन-कौन आ रहे?
केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन चेन्नई पहुंच चुके हैं. तेलंगाना सीएम रेवंत रेड्डी और पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी आ रहे हैं. कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार भी बैठक में सम्मिलित होने पर सहमति दे चुके हैं. इनके अलावा पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी तृणमूल कांग्रेस, ओडिशा की विपक्षी पार्टी बीजू जनता दल और आंध्र प्रदेश के विपक्षी दल वाईएसआर-कांग्रेस के प्रतिनिधी भी इस बैठक में शामिल होने वाले हैं.
सीएम स्टालिन के नेतृत्व में परिसीमन का विरोध करने के लिए जॉइंट एक्शन कमिटी बना दी गई है. इसी कमिटी की आज पहली बैठक होगी. इस बैठक का उद्देश्य परिसीमन प्रक्रिया को रोकने के लिए हर संभव प्रयास की रूपरेखा तैयार करना और राज्यों के बीच एकजुटता स्थापित करना है.
क्या है परिसीमन और क्या है लड़ाई?
पिछले 5 दशक से देश में परिसीमन नहीं हुआ है. साल 2026 के बाद यह होना तय माना जा रहा है. परिसीमन में जनसंख्या के हिसाब से लोकसभा की सीटों का वितरण होगा. यानी जिस राज्य में ज्यादा जनसंख्या है, वहां ज्यादा सीटें होंगी और जहां कम जनसंख्या है, उस राज्य को कम सीटें मिलेंगी.
साल 2011 की ही जनसंख्या के आंकड़ों को देखें तो उत्तर भारतीय राज्यों में जनसंख्या में भारी इजाफा हुआ है, वहीं दक्षिण भारतीय राज्यों में जनसंख्या नियंत्रण में रही. ऐसे में साफ है कि उत्तर भारत के राज्य जैसे यूपी, बिहार, राजस्थान, एमपी में लोकसभा की सीटों में बड़ा इजाफा होगा, वहीं दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, तेलंगाना का प्रतिनिधित्व संसद में कम हो जाएगा. यही कारण है कि दक्षिण भारतीय राज्य इस मुद्दे पर केंद्र के आमने-सामने हो गए हैं.