Jammu Kashmir Kathua Terrorist Attack 5 Indian Army Soldiers Killed know how they reached Jammu
Jammu Kashmir Terrorist Attack: जम्मू-कश्मीर में फिर से बड़ा आतंकी हमला हुआ है, जिसमें पांच जवानों की शहादत हो गई है. पांच जवान गंभीर रूप से घायल हैं. और सरकार का पुराना बयान है कि जवानों की शहादत का बदला लिया जाएगा. लेकिन इससे भी बड़ा सवाल ये है कि कश्मीर घाटी की तुलना में जो जम्मू हमेशा शांत रहा करता था, वहां अब ऐसा क्या हुआ कि हर छोटी-बड़ी आतंकी वारदात वहीं हो रही है.
आखिर पिछले कुछ साल में जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक परिस्थिति में ऐसा क्या बदलाव हुआ है कि आतंकी संगठनों के निशाने पर अब घाटी नहीं बल्कि जम्मू है, जहां आतंकी घटनाएं और जवानों की शहादत बढ़ती ही जा रही है.
जम्मू रीजन में एक महीने के भीतर हुआ सातवां हमला
8 जुलाई को जो आतंकी हमला हुआ है, वो हुआ है कठुआ में. और कठुआ पड़ता है जम्मू रीजन में. पिछले एक महीने में ये सातवां आतंकी हमला है, जो जम्मू रीजन में हुआ है. पिछले 2 महीने में कुल 11 हमले हुए हैं. साल 2023 में इस जम्मू रीजन में कुल 43 आतंकी हमले हुए हैं. ऐसे में जरूरी है जम्मू रीजन को समझना ताकि समझ में आए कि हुआ क्या है. तो जम्मू-कश्मीर के जम्मू रीजन में हैं कुल 10 जिले. इनमें शामिल हैं कठुआ, जम्मू, सांबा, उधमपुर, रियासी, रजौरी, पूंछ, डोडा, रामबन और किश्तवार. इनमें आतंकियों के लिए सबसे आसान निशाना बनता है कठुआ, उधमपुर, रियासी, रजौरी, पुंछ और डोडा. और इसकी वजह है इलाके की बनावट.
जम्मू रीजन में पहुंचना आतंकियों के लिए आसान?
दरअसल पीओके का एक हिस्सा पीर पंजाल से जुड़ा हुआ है. चार हजार वर्ग किलोमीटर से भी ज्यादा क्षेत्रफल में फैले पीओके से जम्मू के इन इलाकों में घुसपैठ आसान हो जाती है, क्योंकि पीर पंजाल के जो भी पहाड़ी इलाके हैं, चाहे वो पुंछ हो, राजौरी हो या रेयासी हो, या फिर कठुआ, ये इलाके घने जंगलों से ढंके हुए हैं. यहां पहुंचना बेहद मुश्किल काम है. राजौरी के डेरा की गली से बफलियाज के बीच 12 किलोमीटर में जंगल इतना घना है कि उसमें सेना की गाड़ियां जा ही नहीं सकती हैं.
इसके अलावा पहाड़ों में बनी प्राकृतिक गुफाएं ऐसी हैं कि वहां रोशनी भी नहीं जाती और इनमें आतंकी आसानी से छिप सकते हैं. रही सही कसर पूरी हो जाती है स्थानीय लोगों की बदौलत, जो कुछ पैसे की खातिर इन आतंकियों के मुखबिर बन जाते हैं और उन्हें सेना की हर गतिविधि की खबर करते रहते हैं. नतीजा बिना बाहर निकले भी आतंकियों के पास मज़बूत इंटेल होती है, जो सेना की हर हलचल से जुड़ी होती है. और जब कभी सेना इन जंगलों में दाखिल भी होती है तो आतंकी खुद ऊपर चले जाते हैं और नीचे से आ रही सेना पर हमला कर देते हैं, जिससे सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ता है.
भारतीय सेना आतंकियों को क्यों नहीं पकड़ पाती?
बाकी का काम पाकिस्तान के आतंकी संगठन कर देते हैं. जैश-ए-मोहम्मद पर प्रतिबंध लगने के बाद पाकिस्तान की शह पर जैश ने पीएएफएफ, टीआरएफ और कश्मीर टाइगर्स जैसे नए आतंकी संगठन बना लिए हैं, जिनके आतंकी गुरिल्ला टेक्निक में माहिर हैं. ये आतंकी छिपकर हमला करते हैं और फिर भागकर आम लोगों के साथ घुलमिल जाते हैं. इसकी वजह से इन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है. अगर आतंकी वारदात के वक्त सेना से मुठभेड़ हो गई, तब तो आतंकी मारे जाते हैं. लेकिन अगर वो एक बार भाग जाते हैं, तो फिर उन्हें पकड़ना बेहद मुश्किल हो जाता है.
इसके अलावा एक और बड़ी वजह है. और वो है सेना की तैनाती. दरअसल जब लद्दाख में चीन के साथ भारत की टेंशन बढ़ी तो चीन से निबटने के लिए पीर पंजाल में तैनात राष्ट्रीय राइफल्स के जवानों को पीर पंजाल से हटाकर लद्दाख में तैनात कर दिया गया. वहीं पीर पंजाल की सुरक्षा की जिम्मेदारी आ गई डेल्टा और रोमियो फोर्स के पास. अब कश्मीर पर तो दुनिया की नज़र है, तो वहां पर आतंकी घुसपैठ नहीं ही कर सकते. लिहाजा पीर पंजाल में थोड़ी कमजोरी हुई तो आतंकियों ने इसका फायदा उठाया और घुसपैठ करने में कामयाब रहे. और इसकी वजह से ही पिछले तीन साल में इन आतंकी हमलों में 100 से ज्यादा जवानों की शहादत हो चुकी है.
जम्मू-कश्मीर के चुनाव भी आतंकियों के निशाने पर
बाकी तो जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं. और जैसे ही चुनाव होंगे, आतंकियों के बचे-खुचे मददगारों का भी लोकतंत्र में यकीन पुख्ता हो जाएगा. लिहाजा आतंकी कभी नहीं चाहते कि चुनाव हों. और वो कभी घाटी तो कभी जम्मू में लगातार आतंकी वारदात करते ही जा रहे हैं. लिहाजा अब वक्त है अपने इतिहास को दोहराने का. 21 साल पुराना इतिहास जब सेना ने अप्रैल-मई 2003 में ऑपरेशन सर्प विनाश चलाया था जिसे पीर पंजाल के ही हिलकाका-पुंछ-सूरनकोट में अंजाम दिया गया था और तब वहां के सारे आतंकी एक साथ मार दिए गए थे.
बाकी इन आतंकियों को जो स्थानीय लोग मदद कर रहे हैं, उनके लिए भी सेना का प्लान तैयार है. और अब सेना पूरे जम्मू-कश्मीर में 1917 में डोगरा के राजा के बनाए कानून एनिमी एजेंट्स ऐक्ट को लागू करना चाहती है, जिससे आतंकियों के मददगारों की संपत्ति को जब्त किया जा सके और उनको उम्रकैद से फांसी तक की सजा दिलाई जा सके.
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