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Jammu Kashmir Issue No Solution For The Last 30 Years Says Justic Sanjay Kaul – Exclusive: जम्मू-कश्मीर में पिछले 30 साल से कोई हल नहीं निकला : रिटायर्ड जस्टिस संजय किशन कौल



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अनुच्छेद 370 पर क्या बोले रिटायर्ड जस्टिस कौल?

जस्टिस कौल जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले और अनुच्छेद 370 को खारिज करने वाली सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच में भी शामिल थे. उन्होंने अलग से अपना फैसला पढ़ा था. जिसमें अनुच्छेद 370 को खारिज करने के साथ ही जम्मू-कश्मीर के हालात पर विशेष टिप्पणी भी की गई. 

जब उनसे पूछा गया कि अनुच्छेद 370 संवैधानिक मुद्दा था लेकिन आपने कश्मीरी पंडितों की पीड़ा को देखा, उनके घाव भरने की बात की, कमेटी बनने की बात की. उसे लिखने के पीछे आपके मन में क्या चल रहा था?

इस सवाल के जवाब में जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि हम सभी की कहीं न कहीं एक सोच होती है, वह जम्मू-कश्मीर से जुड़े हैं, उन्होंने वहां की पीड़ा दोनों तरफ से देखी है. उन्होंने जो भी रखा है उसमें जैसे 1980 से कुछ न कुछ दिक्कत चली आ रही थी, लेकिन वह 1989 में आकर एक तरह से उभर गई. वहां से साढ़े 4 लाख कश्मीरी पंडितों को निकाल दिया गया. लेकिन किसी ने भी इसका कोई भी हल नहीं ढूंढा. स्थिति बहुत खराब हो गई और अच्छा माहौल बिगड़ गया.

उन्होंने कहा कि ये सब कितना मुश्किल है शायद हम इसे समझ ही नहीं पाए. 1989 में जब वह वहां पर रहते थे, उनके कॉटेज के आसपास एक से डेढ़ मील तक कोई भी आबादी नहीं थी. वह अपने कजिन्स के साथ वहां रहते थे, बाहर वॉक पर जाते थे. उनको कभी कोई डर महसूस नहीं हुआ. 

आप बहुत सारे ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे, सेम सेक्स मैरिज, जम्मू-कश्मीर में 370 थी, 2370 को लेकर सहमति से एक बहुत बड़ा फैसला आया, उसे जज की तरह इसे कसे देखते हैं?

किसी भी फैसले पर अक्सर दो तरह के मुद्दे या टिप्पणियां उठती हैं. कुछ लोग उससे खुश होंगे और कुछ नहीं होंगे. एक जज का काम है कि वह या तो किसी के फेवर में या किसी के खिलाफ फैसला देता है. वादी कहीं न कहीं नेगेटिव एनर्जी लेकर आता है. वह इस एनर्जी को वकील के पास छोड़ता है और वकील अपनी नेगेटिव एनर्जी जज के पास छोड़कर चला जाता है. यह हमारा काम हैं, इससे कोई खुश होगा और कोई नहीं होगा. अनुच्छेद 370 संवैधानिक मुद्दा था. इसके दो पहलू थे.

पहला पहलू यह था कि ये हो सकता है या नहीं. पब्लिक डिबेट में भी बहुत ज्यादा व्यूज अलग नहीं हैं,ऐसा भी हो सकता है क्यों कि संवैधानक प्रोवेजन ऐसा था, जो कश्मीर की असेंबलेशन में एक प्रोवेशन था. सही है कि कुछ लोग कहते हैं कि इसको परमानेंट होना चाहिए था. धीरे-धीरे जो अलग-अलग ऑफिशियल ऑर्डर इशू हुए उससे उसकी डायल्यूशन भी हुई है, अब उसको खत्म करना चाहिए था या नहीं करना चाहिए था ये पॉलिटिकल डिसीजन था, जो पॉलिटिकली लिया. जुडीशियली ये हो सकता था या नहीं इस पर एक वर्डिक्ट है. 

 



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