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Jammu Kashmir Assembly Election 2024 Mehbooba Mufti PDP On Jamaat e Islami


Jammu Kashmir Assembly Election 2024: पीडीपी प्रमुख महबूबा मुफ्ती ने रविवार (25 अगस्त) को कहा कि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) का जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव लड़ने की इच्छा जताना एक अच्छा कदम है. उन्होंने ये भी कहा कि इस संगठन पर से प्रतिबंध हटाया जाना चाहिए.

PDP प्रमुख मुफ्ती ने मीडिया से बातचीत में कहा, “यह अच्छी बात है. मैं चाहती हूं कि भारत सरकार जेईआई से प्रतिबंध हटाए. सरकार देश में जहर फैलाने वाले, रैलियां निकालने वाले, मस्जिदों पर पथराव करने वाले, मुसलमानों की पीट-पीट कर हत्या करने वाले सांप्रदायिक संगठनों पर प्रतिबंध नहीं लगाती है तो JEI पर बैन क्यों लगाया गया?

पूर्व मुख्यमंत्री ने आगे कहा, ”जेईआई ने शिक्षा क्षेत्र में बहुत योगदान दिया है और 2014 की बाढ़ और कोविड के दौरान लोगों की मदद की है. मीडिया में आई खबरों के मुताबिक, जमात के पूर्व नेता जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में लड़ने पर विचार कर रहे हैं. पीडीपी प्रमुख ने कहा कि उनकी पार्टी विधानसभा चुनाव अकेले लड़ेगी.”

उन्होंने कहा, “हमने उम्मीदवारों का ऐलान लगभग कर दिया है. कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस ने अब तक घोषणा नहीं की है, लेकिन हमने पहले ही ऐलान कर दिया है.” अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर मुफ्ती ने कहा, “पीडीपी का एजेंडा स्पष्ट है कि जम्मू-कश्मीर का समाधान इस तरह से होना चाहिए कि यहां के लोग सम्मान के साथ जी सकें और अपना सिर ऊंचा रख सकें.

महबूबा मुफ्ती ने कहा, ”अनुच्छेद 370 को हटाए जाने से यह मुद्दा और जटिल हो गया है और जब भी जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का समाधान होगा, तो इसकी शुरुआत अनुच्छेद 370 (की बहाली) से होगी. उत्तर कश्मीर के लोगों ने जेल में बंद शेख अब्दुल रशीद उर्फ ​​इंजीनियर रशीद को चुनकर लोकसभा चुनाव में “जनमत संग्रह की भावना” के आधार पर मतदान किया.”

उन्होंने ये भी कहा, ”उत्तरी कश्मीर में कुपवाड़ा की पूर्ववर्ती लंगेट सीट से दो बार विधायक रहे रशीद ने जम्मू-कश्मीर के लिए जनमत संग्रह का समर्थन किया था. यह वही बीजेपी है, जिसके प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने माना था कि कश्मीर एक मुद्दा है, जिस पर ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने पाकिस्तान और यहां के अलगाववादी नेताओं से बात की थी. इसका मतलब था कि यहां एक मुद्दा है.”

पूर्व सीएम ने आगे कहा, “अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर और देश के बीच एक सेतु था. उन्होंने उस सेतु को तोड़ दिया और उन्हें इसका असर संसदीय चुनावों में देखने को मिला, जब उत्तर कश्मीर के लोगों ने जनमत संग्रह की भावना के आधार पर मतदान किया, जिसके बारे में उन्होंने (केंद्र ने) सोचा था कि शायद वह खत्म हो चुका है. कश्मीर मुद्दे का समाधान देश के संविधान के दायरे में ही निकाला जाना चाहिए.”

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