Jammu and Kashmir Government will get these rights after getting status of state Election Results 2024
Jammu Kashmir Elections 2024: जम्मू-कश्मीर में 10 साल के बाद विधानसभा चुनाव हुआ, अब विधानसभा का गठन होगा और वहां मंत्रिपरिषद की शपथ होगी, लेकिन अभी उसे पूर्ण राज्य का दर्जा नहीं मिला है. जम्मू-कश्मीर में अगस्त 2019 में संविधान के आर्टिकल 370 को निरस्त किए जाने के बाद भी यह पहला चुनाव था.
अनुच्छेद 370 ने तत्कालीन राज्य को विशेष दर्जा दिया था. उस समय केंद्र ने राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों (जम्मू-कश्मीर और लद्दाख) में बांट दिया था. हालांकि जम्मू-कश्मीर को राज्य का दर्जा मिलेगा या नहीं यह केंद्र सरकार तय करेगी वहां की विधानसभा इसको लेकर फैसला नहीं ले सकती है.
दरअसल, केंद्रशासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग इसलिए हो रही है क्योंकि ऐसा होने से प्रशासनिक और राजनीतिक ढांचे में कई महत्वपूर्ण बदलाव होगा, जो राज्य के विकास और स्वायत्तता के लिए फायदेमंद होते हैं. आइए देखें कि अगर किसी केंद्रशासित प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाता है तो क्या-क्या परिवर्तन होते हैं.
1. प्रशासनिक नियंत्रण:
पुलिस और कानून-व्यवस्था: वर्तमान में केंद्रशासित प्रदेशों में पुलिस और कानून-व्यवस्था केंद्र सरकार के अधीन होती है. पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने पर यह पूरी तरह से राज्य सरकार के नियंत्रण में आ जाएगी. इससे राज्य के नेता सीधे तौर पर कानून व्यवस्था पर फैसला कर सकेंगे.
राजस्व और भूमि प्रशासन: भूमि और राजस्व संबंधित मामलों पर निर्णय लेने का अधिकार केंद्र के पास होता है, लेकिन पूर्ण राज्य बनने पर यह अधिकार राज्य सरकार के पास आ जाएगा.
2. विधायी स्वतंत्रता:
अधिक कानून बनाने की शक्ति: दिल्ली जैसे केंद्रशासित प्रदेशों में राज्य सरकार को केवल कुछ विशेष क्षेत्रों में ही कानून बनाने का अधिकार है, लेकिन पूर्ण राज्य बनने के बाद राज्य सरकार को हर विषय पर कानून बनाने का अधिकार होगा, चाहे वह पुलिस, जमीन या लोक व्यवस्था हो.
राज्य का मुख्यमंत्री और कैबिनेट: वर्तमान में, मुख्यमंत्री और मंत्रिमंडल के निर्णयों पर लेफ्टिनेंट गवर्नर की सहमति जरूरी होती है. वहीं, पूर्ण राज्य बनने पर मुख्यमंत्री स्वतंत्र रूप से निर्णय ले सकेंगे और उन्हें हर छोटे निर्णय के लिए उपराज्यपाल से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी.
3. वित्तीय स्वायत्तता:
वित्त आयोग से धन: केंद्रशासित प्रदेश होने की स्थिति में केंद्र से वित्तीय सहायता प्राप्त होती है, लेकिन पूर्ण राज्य बनने पर राज्य को केंद्र से सीधे अनुदान या सहायता लेने की जरूरत नहीं होती. इसके बदले उसे वित्त आयोग से वित्तीय सहायता मिलती है, जो राज्य की स्वायत्तता को बढ़ाता है.
4. संवैधानिक अधिकार:
उपराज्यपाल की भूमिका: पूर्ण राज्य बनने पर उपराज्यपाल का संवैधानिक अधिकार कम हो जाता है. उपराज्यपाल के बजाय राज्यपाल की नियुक्ति होती है, और राज्यपाल सिर्फ औपचारिक भूमिका निभाते हैं, जैसे कि अन्य राज्यों में होता है.
राष्ट्रपति के हस्तक्षेप में कमी: वर्तमान में, अगर उपराज्यपाल और राज्य सरकार के बीच मतभेद होता है तो मामला राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, लेकिन पूर्ण राज्य बनने पर ऐसे मतभेद सीधे राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र में होंगे.
5. स्वतंत्र प्रशासन और निर्णय लेने की क्षमता:
पूर्ण राज्य बनने पर राज्य सरकार को अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को स्वतंत्र रूप से लागू करने की शक्ति मिलती है, जिससे विकास के लिए नए रास्ते खुल सकते हैं और जनता की जरूरतों के हिसाब से स्थानीय नीतियों का निर्माण हो सकता है.
6. केंद्र सरकार पर निर्भरता में कमी:
केंद्र से अनुमति लेने की प्रक्रियाओं में देरी से बचा जा सकता है, जिससे राज्य सरकारें तेजी से निर्णय ले सकती हैं और उन्हें लागू कर सकती हैं. इन परिवर्तनों के चलते केंद्रशासित प्रदेशों की राजनीतिक और प्रशासनिक स्वतंत्रता में वृद्धि होती है और राज्य सरकारें अपने नागरिकों की जरूरतों के हिसाब से योजनाएं और नीतियां बना सकती हैं. यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग लगातार उठ रही है.