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It Is Not Completely Anonymous Or Confidential…: CJI Chandrachud During Hearing On Electoral Bonds In SC – सत्तापक्ष को हक, पर विपक्ष क्यों नहीं ले सकता जानकारी? : चुनावी बॉन्ड योजना पर SC का केंद्र से सवाल



मामले पर CJI चंद्रचूड़ ने केंद्र से सवाल पूछा है. CJI ने कहा कि ये योजना चुनिंदा गुमनामी और चुनिंदा गोपनीयता रखती है. इसमें कोई शक नहीं कि इस योजना के पीछे सोच सराहनीय है. यह पूरी तरह से गुमनाम या गोपनीय नहीं है. यह एसबीआई के लिए गोपनीय नहीं है.

CJI ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा, “कानून प्रवर्तन एजेंसी के लिए यह गोपनीय नहीं है. इसलिए कोई बड़ा दानदाता कभी भी चुनावी बांड खरीदने का जोखिम नहीं उठाएगा. इसपर एसजी तुषार मेहता ने कहा कि चेक से देने पर खुलासा हो जाएगा कि किस पार्टी को कितना पैसा दिया गया. उससे अन्य पार्टियां नाराज हो सकती हैं. ऐसे में कंपनियां चंदा दाता नकद ही दे देते है और सब खुश रहते हैं. सैकड़ों करोड़ रुपए नकद चंदा दे दिया जाता है. 

‘आयकर में छूट कैसे मिलती है चंदा दाता को?’

जस्टिस बीआर गवई ने पूछा फिर आयकर में छूट कैसे मिलती है चंदा दाता को? CJI  ने कहा कि बड़े चंदा दाता तो अपने अधिकारिक चैनल्स से छोटी रकम के बॉन्ड्स खरीदते हैं. वो अपनी गर्दन इसमें नहीं फंसाते हैं. हालांकि, इस स्कीम का मकसद नकदी लेनदेन काम करना, सभी के लिए समान अवसर मुहैया कराना और काले धन के इस्तेमाल को खत्म करना है. इससे हमें कोई ऐतराज नहीं है. लेकिन उसका अनुपातिक और सटीक इस्तेमाल हो रहा है क्या? यही बहस का मुद्दा है.

‘आपके दान पर सवाल उठाना उनके लिए नुकसानदेह…’

मामले में सुनवाई करते हुए जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा, “इस चुनिंदा गोपनीयता के कारण, विपक्षी दल को यह नहीं पता होगा कि आपके दानदाता कौन हैं. लेकिन विपक्षी पार्टी को चंदा देने वालों का पता कम से कम जांच एजेंसियों द्वारा लगाया जा सकता है. इसलिए आपके दान पर सवाल उठाना उनके लिए नुकसानदेह है.

एसजी तुषार मेहता ने कहा कि आम तौर पर राजनीति में काले धन का उपयोग को लेकर हर देश इससे जूझ रहा है. प्रत्येक देश द्वारा परिस्थितियों के आधार पर इन मुद्दों से निपटा जा रहा है. भारत भी इस समस्या से जूझ रहा है. सभी सरकारों ने अपने कार्यकाल में चुनावी प्रक्रिया से काले धन को दूर रखने का सिस्टम बनाया. साफ धन बैंकिंग सिस्टम के जरिए ही चुनावी चंदे के रूप में आए इसकी व्यवस्था की. ताकि अन अकाउंटेड मनी या अज्ञात स्रोत वाला धन चुनावी या राजनीतिक चंदे में ना आए. कई कदम समय समय पर उठाए गए. उनमें से ये इलेक्टोरल बांड का भी है. डिजिटाइजेशन भी इसी का चरण है, जिसमें आधिकारिक और बैंकिंग प्रक्रिया से ही धन आए. 

सीजेआई ने पूछा कि जो आदमी बांड खरीद रहा है, वहीं डोनर है ये आखिर कैसे पता चलेगा? हो सकता है खरीदार दाता न हो. खरीदार की बैलेंस शीट में तो बांड खरीद की रकम दिखाई देगी. लेकिन असली दाता के बैलेंस शीट में नहीं. बैलेंस शीट में ये भी नहीं पता चलेगा कि कौन सा बॉन्ड खरीदा? उसमें तो यही पता चलेगा कि कितने बॉन्ड खरीदे. सीजेआई ने पूछा कि बांड खरीद में लगाई रकम का स्रोत भी तो नहीं पता चलेगा? न ही दाता का पता चलेगा. रकम कहां खर्च की गई यानी किसको दी गई? स्कीम में इन तीनों सवालों के जवाब नहीं पता है.

चुनावी बांड योजना पर सुप्रीम कोर्ट के बड़े सवाल

पांच जजों के संविधान पीठ ने सवाल उठाए हैं. केंद्र सरकार से पूछे सवाल, कहा- ये योजना पूरी तरह गोपनीय नहीं है. ये योजना चुनिंदा तौर पर गोपनीय है. जांच एजेंसियां SBI से ब्यौरा ले सकती हैं. सत्ताधारी दल विपक्षियों के चंदे की जानकारी ले सकते हैं. लेकिन विपक्षी दल ये जानकारी नहीं ले सकते. केंद्र ये सुनिश्चित करेगा कि इस योजना में प्रोटेक्शन मनी या बदले में लेन- देन नहीं शामिल होगा.. क्या ये कहना गलत होगा कि इस योजना से किकबैक को बढावा मिलेगा या इसे वैध ठहराया जाएगा.

CJI ने कहा कि हम जानते हैं कि सत्तारूढ़ दल को अधिक दान मिलता है. यह व्यवस्था का हिस्सा है. हमें अभी भी लगता है कि बड़े दानकर्ता KYC विवरण देने में सिर नहीं खपाएंगे. हम सरकार को समान खेल के मैदान,  अधिक पारदर्शी योजना लाने से नहीं रोक रहे. ऐसा करना पूरी तरह विधायिका पर निर्भर है.

सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सौ में से पांच इसका दुरुपयोग कर सकते हैं. इससे इंकार नहीं किया जा सकता. लेकिन हमें कहीं और किसी पर भरोसा करना होगा. हम दुरुपयोग की बात नहीं, स्कीम की सक्षमता की बात कर रहे हैं.

गौरतलब है कि CJI डीवाई चंद्रचूड़,  जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. याचिकाओं में चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है.

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