Israel Gaza Hamas Palestine Attack Taslima Nasreen Says Who Are Bothered Should Also Bothered For Minorities In Their Own Country
Taslima Nasrin On Israel Palestine Attack : जिंदगी भर बगावती तेवर अपनाने वाली बांग्लादेशी कवयित्री तस्लीमा नसरीन का मानना है कि उनके जिन देशवासियों को फलस्तीनियों के खिलाफ अत्याचार की चिंता है, उन्हें अपने ही देश में अल्पसंख्यकों की दुर्दशा की उतनी ही फिक्र करनी चाहिए.
तस्लीमा नसरीन के अंदर विद्रोह की चिंगारी अब भी खत्म नहीं हुई है और उनका दृढ़ मत है कि जब और जहां कहीं भी उन्हें नाइंसाफी नजर आएगी, उसके खिलाफ संघर्ष करते रहना ही उनका कर्तव्य है.
‘बांग्लादेश के अल्पसंख्यकों के बारे में भी सोचें’
न्यूज एजेंसी पीटीआई-भाषा को दिए इंटरव्यू में रविवार (15 अक्टूबर) को उन्होंने कहा, “मैं सुनती हूं कि मेरे साथी बांग्लादेशी नागरिक फलस्तीनियों पर अत्याचार से कुपित हैं और उनमें से कुछ तो उनकी मदद के लिए फलस्तीन जाना भी चाहते हैं. इजराइलियों और फलस्तीनियों समेत दुनिया में कहीं भी किसी पर अत्याचार की मैं व्यक्तिगत रूप से निंदा करती हूं.”
उन्होंने कहा, “अगर मेरे देशवासी फलस्तीन में अत्याचार और हमलों के फलस्वरूप आयी शरणार्थियों की बाढ़ से इतने चिंतिंत हैं , तो जब आज भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमला किया जाता है और उनमें से कई अपनी जमीन छोड़कर अन्यत्र शरणार्थी बनने के लिए बाध्य किये जाते हैं, तब भी उनकी अन्तश्चेतना आहत होनी चाहिए.”
‘अल्पसंख्यक समुदाय के साथ अत्याचार’
उन्होंने कहा कि पिछले महीने अल्पसंख्यक समुदाय के करीब 80 साल के एक कवि के साथ मारपीट की गयी थी, जो बांग्लादेश में ऐसे हमलों की लंबी श्रृंखला में एक कड़ी थी. अगस्त, 2023 में ‘श्रृष्टि ओ चेतना’ नामक एक संगठन की मानवाधिकार रिपोर्ट के अनुसार मंदिरों और अन्य समुदायों की संपत्तियों पर हमले, या सामान्य अल्पसंख्यक विरोधी अपशब्द, देश से निकाल देने या उत्पीड़न की धमकी ऐसी घटनाएं थीं जो सामने आयी थीं.
‘बांग्लादेश में सिर उठा रहा कट्टरपंथ’
प्रख्यात कवयित्री ने कहा, “मेरी मातृभूमि में शानदार आर्थिक विकास नजर आने के बावजूद बांग्लादेश में कट्टरपंथ सिर उठाता हुआ दिख रहा है. लैंगिक असंतुलन लगातार एक कारक बना हुआ है. सार्वजनिक और राजनीतिक परिदृश्य में सांप्रदायिक संगठन के लोगों जगह दी जा रही है.”
भारत में रह रहीं है तस्लीमा नसरीन
तस्लीमा नसरीन सिमोन डि बीवयोर पुरस्कार और सैखरोव पुरस्कार से सम्मानित की जा चुकी हैं. उनकी पाखंड और कट्टरपंथ को बेनकाब करती साहित्यिक कृतियों से उनके देश में रूढ़िवादी वर्ग नाराज हो गया और उनमें से कुछ ने उनके खिलाफ फतवे जारी कर दिए. ऐसे में उन्हें यूरोप और अमेरिका जाना पड़ा. बाद में वह भारत आ गयीं और अब दिल्ली में रहती हैं.
‘कट्टरपंथ को बढ़ावा’
तस्लीमा नसरीन ने आरोप लगाया, “एक तरफ बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है और बढ़िया बुनियादी ढांचा सामने आ रहा है, जबकि दूसरी तरफ बच्चों को कट्टरपंथ को बढ़ावा दिया जा रहा है.”